शरीर कभी एक समान नहीं रहता, हर पल उसमें परिवर्तन होता रहता है। ये परिवर्तन इतने सूक्ष्म होते हैं कि हम न तो उन्हें देख पाते हैं और न ही महसूस कर पाते हैं। दूसरी ओर, आत्मा (शरीरि) कभी नहीं बदलती। शरीर जन्म से पहले भी नहीं था और मरने के बाद भी नहीं रहेगा, और वर्तमान में भी वह प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। वास्तव में, गर्भ में आते ही शरीर के मरने का क्रम (परिवर्तन) शुरू हो जाता है। बाल्यावस्था समाप्त होती है तो युवावस्था आती है, युवावस्था समाप्त होती है तो वृद्धावस्था आती है, और वृद्धावस्था समाप्त होती है तो देहांत अवस्था, अर्थात् दूसरे शरीर की प्राप्ति होती है। ये सभी अवस्थाएं शरीर की हैं। बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था स्थूल शरीर की अवस्थाएं हैं, और देहांत की प्राप्ति सूक्ष्म शरीर तथा कारण शरीर की अवस्थाएं हैं।
शरीर बदलता है लेकिन जीव (आत्मा) नहीं बदलता
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परंतु आत्मा की सत्ता इन सभी अवस्थाओं से पुरातन है। अवस्थाएं बदलती हैं पर आत्मा वही रहती है। इस प्रकार, शरीर (शरीर नाशवान हैं लेकिन हम सभी अविनाशी हैं) और आत्मा के विभाजन को जानने वाला व्यक्ति कभी किसी अवस्था में मोहित नहीं होता। जीव अपने कर्मों का फल भोगने के लिए अनेक योनियों में जाता है, नर्क और स्वर्ग में जाता है। 84 लाख योनियों को पार करते हुए, स्वर्ग और नरक को अनुभव करते हुए, आत्मा (शरीरि) योनियाँ बदलती हैं, शरीर बदलता है लेकिन जीव (आत्मा) नहीं बदलता। जीव एक ही रहता है, इसलिए वह अनेक योनियों में और अनेक लोकों में जा सकता है। वह स्वयं किसी के साथ लिप्त नहीं होता। यदि वह लिप्त हो जाए, फंस जाए तो फिर 84 लाख योनियों को कौन पार करेगा? स्वर्ग और नरक में कौन जाएगा? मुक्त कौन होगा?
हमारा जीवन किसी एक शरीर के अधीन नहीं है
हमारी आयु अनादि और अनंत है, जिसके अंतर्गत अनेक शरीर उत्पन्न होते रहते हैं और मरते रहते हैं। जैसे हम अनेक वस्त्र बदलते रहते हैं, पर वस्त्र बदलने पर हम नहीं बदलते, हम वही रहते हैं। ऐसे ही अनेक योनियों में जाने पर भी हमारी सत्ता नित्य और निरंतर वही रहती है। तात्पर्य यह है कि हमारा जीवन किसी एक शरीर के अधीन नहीं है। ध्यान से देखें तो साथ होते हुए भी हम सभी से अलग होते हैं। हम अनेक शरीरों में जाने पर भी नहीं बदलते, वही रहते हैं। पर शरीर के साथ संबंध मान लेने के कारण हम अनेक शरीरों को धारण करते रहते हैं। माना हुआ संबंध टिकता नहीं, पर हम नए-नए संबंध पकड़ते रहते हैं। यदि हम नए संबंध न पकड़ें और माया के जाल में न फंसे, तो हमारी मुक्ति स्वयं सिद्ध हो जाएगी।
डिस्क्लेमर: इस लेख में कोई जानकारी नही दी गई है बल्कि धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक ग्रंथों, व्यक्तिगत चिंतन और मनन के द्वारा एक सोच है प्रस्तुत की गई है। प्रत्येक व्यक्ति की सोच इस संबंध मे अलग हो सकती है adhyatmikaura.in प्रत्येक व्यक्ति एवं समाज की सोच का सम्मान करता हैं। व्यक्ति को इस लेख से जुड़ी जानकारी अपने जीवन मे उतारने से पहले अपने विवेक का पूर्ण इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए।
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