दुर्योधन की राजनीति: धर्मराज युधिष्ठर की नीतियों से 9 अक्षौहिणी सेना का नियंत्रण

दुर्योधन की राजनीति: धर्मराज युधिष्ठर की नीतियों से 9 अक्षौहिणी सेना का नियंत्रण

महाभारत के महायुद्ध में कुल 18 अक्षौहिणी सेनाओं ने भाग लिया था, जिसमें कौरवों के पक्ष में 11 और पांडवों के पक्ष में केवल 7 अक्षौहिणी सेना थी। दुर्योधन के पक्ष में 11 अक्षौहिणी सेना होना संभव नहीं था, परंतु जब पांडव वनवास में चले गए, तब दुर्योधन ने धर्मराज युधिष्ठिर की राज्य करने की नीति को अपनाया। जैसे युधिष्ठिर ने अपना कर्तव्य समझकर प्रजा को सुख देने के लिए धर्म और न्यायपूर्वक राज्य किया था और अपनी धर्मनीति से प्रजा को संतुष्ट किया था, वैसे ही दुर्योधन ने भी अपना राज्य स्थापित करने और प्रभाव जमाने के लिए प्रजा के साथ युधिष्ठिर के समान ही व्यवहार किया।

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13 वर्षों तक प्रजा के साथ अच्छा व्यवहार करने के कारण युद्ध के समय कई सेनाएं, जो पहले पांडवों के पक्ष में थीं, दुर्योधन की तरफ हो गईं। इस प्रकार, 9 अक्षौहिणी सेना प्रजा के साथ अच्छे व्यवहार के कारण दुर्योधन के पक्ष में हो गईं। भगवान श्रीकृष्ण की एक अक्षौहिणी नारायणी सेना और महाराज शल्य की एक अक्षौहिणी सेना को दुर्योधन ने चालाकी से अपने पक्ष में कर लिया, जो कि पांडवों के पक्ष में थीं। अतः दुर्योधन के पक्ष में 11 अक्षौहिणी सेना और पांडवों के पक्ष में 7 अक्षौहिणी सेना महाभारत युद्ध के समय थीं।

महाभारत और अन्य शास्त्रों में वर्णित संख्या के अनुसार, एक अक्षौहिणी सेना में निम्नलिखित संख्या में योद्धा होते हैं:

21,870 रथ (रथी)

21,870 हाथी (गज)

65,610 घुड़सवार (अश्व)

109,350 पैदल सैनिक (पदाति)

इन संख्याओं के आधार पर, एक अक्षौहिणी सेना में कुल योद्धाओं की संख्या होती है:

21,870 (रथ) + 21,870 (हाथी) + 65,610 (घुड़सवार) + 109,350 (पैदल सैनिक) = 218,700 योद्धा

इस प्रकार, एक अक्षौहिणी सेना में कुल 218,700 योद्धा होते हैं।

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डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |

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