जब बुराई अच्छाई का वेश धरती है; तो पहचानना मुश्किल क्यों हो जाता है?

जब बुराई अच्छाई का वेश धरती है; तो पहचानना मुश्किल क्यों हो जाता है?

परिस्थिति को देखने का नजरिया

महाभारत के युद्ध से ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के कल्याण की दृष्टि से उन्हें कायरता को छोड़कर युद्ध करने की आज्ञा देते हैं, परंतु अर्जुन इसे उल्टा ही समझ लेते हैं। अर्जुन का मानना था कि भगवान उन्हें राज्य का भोग करने की दृष्टि से युद्ध की आज्ञा दे रहे हैं। उनका सोचना था कि वे तो धर्म को जानते हैं, पर दुर्योधन (जब दुर्योधन ने 9 अक्षौहिणी सैना अपनी तरफ कर लिए था) धर्म और अन्य नैतिक मूल्यों को नहीं जानता। इसलिए वह धन और राज्य के लिए युद्ध करने के लिए तैयार खड़ा है। अर्जुन इस बात को अपने लिए भी कहते हैं कि यदि वे श्रीकृष्ण की आज्ञा के अनुसार युद्ध करते हैं, तो परिणामस्वरूप अपने मित्रों, कुटुम्बियों और गुरुजनों के रक्त से सने हुए धन और राज्य को ही प्राप्त करेंगे।

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जो बुराई अच्छाई के रूप में आती है, उसे पहचानना और मिटाना बहुत कठिन होता है

इस तरह, अर्जुन को युद्ध करने में केवल बुराई ही बुराई दिखाई देती है। जो बुराई स्पष्ट रूप से बुराई के रूप में आती है, उसे मिटाना आसान होता है, परंतु जो बुराई अच्छाई के रूप में आती है, उसे पहचानना और मिटाना बहुत कठिन होता है। उदाहरण के रूप में, सीताजी के सामने रावण और हनुमानजी के सामने कालनेमि राक्षस साधुओं का वेश धरकर आए थे, जिन्हें पहचानना कठिन था। अर्जुन की मान्यता में युद्ध रूपी कर्तव्य कर्म करना बुराई है और युद्ध न करना भलाई है।

अर्जुन के मन में धर्म हिंसा का त्याग भलाई के वेश में कर्तव्य का त्याग रूपी बुराई आई है। अर्जुन को कर्तव्य त्याग रूपी बुराई बुराई के रूप में नहीं दिख रही क्योंकि उनके भीतर अपने प्रियजनों के प्रति मोह है। इस बुराई को मिटाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण को बड़ा जोर लगाना पड़ रहा है। अर्जुन के मन में धर्म के रूप में बुराई आई है कि वे भीष्म, द्रोण आदि महानुभावों को कैसे मार सकते हैं, क्योंकि वे धर्म को जानने वाले हैं।

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अर्जुन के सामने भी बुराई अछाई का रूप लेकेर आई थी

तात्पर्य यह है कि अर्जुन ने जिसको अच्छाई माना है, वह वास्तव में बुराई ही है, परंतु उसमें अच्छाई की मान्यता होने से वह बुराई के रूप में दिखाई नहीं दे रही है। इस भ्रम को दूर करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण को अर्जुन को सही दिशा में मार्गदर्शन देना पड़ रहा है। अर्जुन के भीतर जो मोह और भ्रम है, उसे समाप्त करके ही वे युद्ध के वास्तविक कर्तव्य को समझ पाएंगे और धर्म के पथ पर सही तरीके से चल पाएंगे। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि युद्ध करना उनका धर्म और कर्तव्य है, और इससे पीछे हटना ही असली बुराई है। अर्जुन के भीतर के मोह और भ्रम को दूर करके ही उन्हें वास्तविक धर्म का बोध कराया जा सकता है, जिससे वे अपने कर्तव्यों का निर्वाह सही ढंग से कर सकें। इसी कारण से भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता का उपदेश दिया, ताकि अर्जुन को धर्म और अधर्म, कर्तव्य और अकर्तव्य का सही भेद समझ में आ सके।

डिस्क्लेमर: इस लेख में कोई जानकारी नही दी गई है बल्कि धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक ग्रंथों, व्यक्तिगत चिंतन और मनन के द्वारा एक सोच है प्रस्तुत की गई है। प्रत्येक व्यक्ति की सोच इस संबंध मे अलग हो सकती है adhyatmikaura.in प्रत्येक व्यक्ति एवं समाज की सोच का सम्मान करता हैं। व्यक्ति को इस लेख से जुड़ी जानकारी अपने जीवन मे उतारने से पहले अपने विवेक का पूर्ण इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए।

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