जब पांडव वनवास में थे, एक दिन वायु ने एक दिव्य सहस्त्र कमल लाकर द्रौपदी के सामने रख दिया। इसे देखकर द्रौपदी बहुत प्रसन्न हो गई और महाबली भीमसेन से कहा, “वीरवार, आप ऐसे बहुत से कमल लाकर मुझे दीजिए, ऐसी मेरी इच्छा है।”
यह सुनकर भीमसेन ने द्रौपदी की इच्छा पूरी करने के लिए हिमालय पर्वत की ओर प्रस्थान किया। जब वह कदली वन में पहुंचे, तो रास्ते में उन्होंने एक विशाल बंदर की पूंछ को देखा जो रास्ते में पड़ी हुई थी। भीमसेन ने बंदर से कहा कि वह अपनी पूंछ हटाए ताकि वह आगे बढ़ सके। बंदर ने कहा कि वह बहुत कमजोर है और अपनी पूंछ नहीं हटा सकता। उसने भीमसेन से कहा कि वह खुद ही उसकी पूंछ को हटा दे।
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भीमसेन को समझ में आया कि यह कोई साधारण बंदर नहीं है
भीमसेन ने अपनी पूरी ताकत लगाई, लेकिन पूंछ को हिला भी नहीं सके। भीमसेन को समझ में आया कि यह कोई साधारण बंदर नहीं है। उन्होंने नम्रता से बंदर से उसका परिचय पूछा। तब बंदर ने अपना असली रूप प्रकट किया और बताया कि वह स्वयं हनुमानजी हैं, जो उनके बड़े भाई हैं। दोनों में कई बातें हुईं।
हनुमानजी ने भीमसेन को समझाया कि वे दोनों वायु के पुत्र हैं और इसलिए भाई हैं। हनुमानजी ने भीमसेन को आशीर्वाद दिया और उनकी शक्ति और साहस की सराहना की। इसके बाद हनुमानजी ने भीमसेन को दिव्य सहस्त्र कमल फूलों का रास्ता दिखाया और उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया।
हनुमानजी ने भीमसेन को वरदान दिया
अंत में, हनुमानजी ने भीमसेन से वरदान मांगने के लिए आग्रह किया। भीमसेन ने कहा, “मेरे ऊपर सदैव आपकी कृपा बनी रहे।” इस पर हनुमानजी ने कहा, “हे वायुपुत्र, जब तुम युद्धभूमि में अपने दुश्मनों से घिरे रहोगे और निर्बल होने लगोगे, उस समय मैं तुम्हारी गर्जना को अपने गर्जन के साथ जोड़कर और बढ़ा दूंगा, जिससे वह गर्जन शत्रु के प्राण हरने वाला हो जाएगा। इसके अलावा, अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठकर मैं ऐसी भयंकर गर्जना करूंगा जो शत्रुओं के प्राणों को हरने वाली होगी, जिससे तुम लोग अपने शत्रुओं को सुगमता से मार सकोगे।”
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