रक्षाबंधन सनातन धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता का प्रतीक है। यह पर्व हर साल सावन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।
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पौराणिक कथाएं और रक्षाबंधन का आरंभ
लक्ष्मी जी ने राजा बली को बांधी थी राखी
स्कंद पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद्भागवत पुराण की कथाओं के अनुसार, असुर राजा दानवीर बली भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार, वे भगवान को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ कर रहे थे। एक बार वह भगवान को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ कर रहे थे। अपने भक्त की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में राजा बली के द्वार भिक्षा मांगने पहुंचे। वामन भगवान ने तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा ने ब्राह्मण की मांग स्वीकार कर ली। ब्राह्मण ने पहले पग में पूरी भूमि और दूसरे पग ने पूरा आकाश नाप दिया। फिर भगवान वामन ने पूछा कि तीसरा पग कहां रखें। इस पर राजा बलि ने अपना सिर आगे करके कहा कि आप तीसरा पग मेरे सिर पर रख दें। उनकी इस अद्वितीय भक्ति को देखकर भगवान वामन ने उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया। साथ ही, राजा बलि ने वरदान मांगा कि भगवान वामन उनके साथ पाताल लोक में रहें। साथ ही राजा बलि ने यह भी वरदान मांगा कि आप मेरे साथ पाताल लोक में रहें। उधर भगवान विष्णु के वापिस न लौटने के कारण माता लक्ष्मी परेशान हो उठीं। उन्होंने एक गरीब महिला का वेष बनाया और राजा बलि के पास पहुंचकर उन्हें राखी बांध दी। राखी के बदले राजा ने कुछ भी मांग लेने को कहा। तब माता लक्ष्मी ने अपने असली रूप में आकर भगवान विष्णु को वापिस लौटाने की मांग रख दी। राखी का मान रखते हुए राजा बलि ने भगवान विष्णु को मां लक्ष्मी के साथ वापस भेज दिया।
महाभारत काल की कथाएं
महाभारत के युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने 100 गाली देने पर राजा शिशुपाल का सुदर्शन चक्र से वध कर दिया था। जिससे उनकी उंगली से खून बहने लगा और वहां मौजूद द्रौपदी ने अपने साड़ी का टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली में बांध दिया। इसके बाद भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को हर संकट से बचाने का वचन दिया। उन्होंने अपने इस वचन का मान रखते हुए द्रौपदी के चीरहरण के समय उनकी रक्षा की थी। तभी से रक्षाबंधन के दिन बहनों द्वारा भाई की कलाई में राखी बांधी जाती है। महाभारत काल की एक और प्रचलित कथा है, जिसमें महाभारत के युद्ध के समय युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि वे सभी संकटों को कैसे पार कर सकते हैं, तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि वह अपने सभी सैनिकों को रक्षा सूत्र बांधें। युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और अपनी पूरी सेना में सभी को रक्षा सूत्र बांधा।
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मुगल काल की कथा
राजपूत, मुस्लिम आक्रमण के खिलाफ लड़ रहे थे। अपने पति राणा सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ की कमान रानी कर्णावती ने संभाली हुई थी। चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के आक्रमण से अपने राज्य और अपनी रक्षा के लिए सम्राट हुमायूं को एक पत्र के साथ राखी भेजकर रक्षा का अनुरोध किया था। हुमायूं ने राखी को स्वीकार कर रानी कर्णावती की रक्षा के लिए चित्तौड़ रवाना हो गए। लेकिन उन्हें पहुंचने में देरी हो गई और रानी ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर (खुद को आग लगा ली) कर लिया। लेकिन वचन निभाते हुए हुमायूं की सेना ने चित्तौड़ से शाह को खदेड़ कर रानी के पुत्र विक्रमजीत सिंह को चित्तौड़ का शासन सौंप दिया।
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निष्कर्ष
रक्षाबंधन भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता और सुरक्षा का पर्व है। विभिन्न पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस त्योहार का महत्व अत्यधिक है।
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |
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