हाँ मैं ईश्वर हूँ “अहम् ब्रह्मास्मि”

हाँ मैं ईश्वर हूँ “अहम् ब्रह्मास्मि”

सृष्टि से पूर्ण परमात्मा में, यह संकल्प हुआ कि मैं एक ही अनेक रूपों में हो जाऊं। इस संकल्प से परमात्मा ने लीला करने के लिए स्वयं कई रूपों में प्रकट हुए। उन्होंने परस्पर लीला करने के लिए एक खेल रचा। इस खेल के लिए प्रभु के संकल्प से अनंत जीवों (जो अनादिकाल से थे) और खेल के पदार्थों (जैसे शरीर आदि) की रचना हुई। इस प्रकार भगवान ने सृष्टि की रचना की।

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खेल तभी होता है जब दोनों तरफ के खिलाड़ी स्वतंत्र हों, इसलिए भगवान (कर्मयोग, ज्ञानयोग तथा भक्तियोग की व्याख्या) ने जीवों को स्वतंत्रता प्रदान की। अब खेल शुरू हुआ और उसमें बाकी जितने भी जीव थे, वे भूल से खेल के पदार्थों (उत्पत्ति एवं विनाशशील प्रकृति) के साथ अपना संबंध मान बैठे। इसके कारण वे अपना मूल स्वरूप भूल गए और जन्म-मरण के चक्र में फंस गए। खेल के पदार्थ केवल खेल के लिए होते हैं, किसी के व्यक्तिगत नहीं होते। परंतु वे जीव खेल खेलना भूल गए और मिली हुई स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर खेल के पदार्थों को अर्थात शरीरादि को व्यक्तिगत मानने लगे। इससे वे उन पदार्थों में फंस गए और भगवान से विमुख हो गए।

अपने असली स्वरूप को जान जाएंगे और इस भवसागर से सदा के लिए मुक्त हो जाएंगे

अब यदि वे जीव, शरीरादि उत्पत्ति एवं विनाशशील पदार्थों से विमुख होकर भगवान के सम्मुख फिर से आ जाएं, तो वे पुनः अपने असली स्वरूप को जान जाएंगे और इस भवसागर मायालोक के जन्म-मरण के महान दुःख से सदा के लिए मुक्त हो जाएंगे। इस जगत की बड़ी विडंबना यह भी है कि मनुष्य बेवजह अपनी परिस्थितियों को कोसता रहता है। सत्य तो यह है कि मनुष्य चाहे किसी भी स्थिति में क्यों न हो, उसका कल्याण हर परिस्थिति में संभव है। मनुष्य को चाहिए कि वह हर परिस्थिति में परमात्मा से जुड़ा रहे क्योंकि आत्मा का मनुष्य योनि में जन्म केवल उसके अपने कल्याण के लिए ही होता है। संसार में ऐसी कोई भी स्थिति नहीं है जिसमें मनुष्य का कल्याण न हो सकता हो क्योंकि परमात्मा हर परिस्थिति में समान रूप से विद्यमान हैं।

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अपना अच्छा समय दूसरों की सेवा में लगाना चाहिए

तो मानव के सामने कोई भी और कैसी भी परिस्थिति आए, उसे केवल सदुपयोग करना है। सदुपयोग का अर्थ है दुःख की स्थिति आने पर उसे तटस्थ होकर स्वीकार करना और उससे भागना नहीं; सुख की स्थिति में भी समान भाव रखते हुए समय के चक्र को समझना और संघर्ष के साथ कर्म करना। अपना अच्छा समय दूसरों की सेवा में लगाना चाहिए। इस प्रकार सदुपयोग करने से मनुष्य दुःखदाई और सुखदाई दोनों परिस्थितियों से ऊंचा उठ जाता है, अर्थात उसका कल्याण हो जाता है।

तो इस लेख को पढ़ने एवं बड़ी ही गहराई और सूक्ष्मता से समझने के बाद, मुझे यकीन है आपने गहरी सांस लिया होगा और अपने मन में बोला होगा – हाँ मैं ईश्वर हूँ “अहम् ब्रह्मास्मि”

डिस्क्लेमर: इस लेख में कोई जानकारी नही दी गई है बल्कि धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक ग्रंथों, व्यक्तिगत चिंतन और मनन के द्वारा एक सोच है प्रस्तुत की गई है। प्रत्येक व्यक्ति की सोच इस संबंध मे अलग हो सकती है adhyatmikaura.in प्रत्येक व्यक्ति एवं समाज की सोच का सम्मान करता हैं। व्यक्ति को इस लेख से जुड़ी जानकारी अपने जीवन मे उतारने से पहले अपने विवेक का पूर्ण इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए।

2 responses to “हाँ मैं ईश्वर हूँ “अहम् ब्रह्मास्मि””

  1. Sanjeev Kumar Avatar
    Sanjeev Kumar

    Vinashil pardhrato se vimukh hone ke liye manush ko kya krna chahiye jisse vo eshwar ko uplabadh ho.

    1. Vikas Soni Avatar

      sambhav ho jana chahiye manushya ko sukh aur dukh, prapti aur viyog me sambhav ho kr karm kare fal kesa bhi ho acha ho ya bura ho karm ka fal ki icha me bina karm krta jaye to uske karm use maya me nhi fasayenge. aur ek bar maya tut gyi to ishwar ke sammukh swyam ko hm payenge

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