विक्रम संवत् का नया वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (एकम्) से आरंभ होता है। होली के बाद चैत्र कृष्ण अमावस्या को वर्ष का समापन हो जाता है। हर माह में दो पक्ष होते हैं: शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
- शुक्ल पक्ष: अमावस्या के बाद प्रतिपदा से शुरू होता है।
- कृष्ण पक्ष: पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से शुरू होता है।
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दोनों पक्षों में 15 तिथियाँ होती हैं, जिनमें 14 तिथियों के नाम समान होते हैं। ये तिथियाँ इस प्रकार हैं:
- प्रतिपदा (एकम)
- द्वितीया (दूज)
- तृतीया (तीज)
- चतुर्थी (चौथ)
- पंचमी (पाँचें)
- षष्ठी (छठ)
- सप्तमी (सातें)
- अष्टमी (आठें)
- नवमी (नौमी)
- दशमी
- एकादशी (ग्यारस)
- द्वादशी (बारस)
- त्रयोदशी (तेरस)
- चतुर्दशी (चौदस)
शुक्ल पक्ष की पंद्रहवीं तिथि को पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की पंद्रहवीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है। हर तिथि के साथ एक वार जुड़ा होता है, जो सात दिन होते हैं: रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार।
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विक्रम संवत के महीने
वर्ष में 12 महीने होते हैं, जिनके नाम और समय इस प्रकार हैं:
- चैत्र (अप्रैल)
- वैशाख (मई)
- ज्येष्ठ (जून)
- आषाढ़ (जुलाई)
- श्रावण (अगस्त)
- भाद्रपद (सितंबर)
- आश्विन (अक्तूबर)
- कार्तिक (नवंबर)
- मार्गशीर्ष (दिसंबर)
- पौष (जनवरी)
- माघ (फरवरी)
- फाल्गुन (मार्च)
मलमास का महत्व
हर तीन वर्षों के बाद एक अतिरिक्त महीना जुड़ता है, जिससे वर्ष तेरह महीने का हो जाता है। इस अतिरिक्त महीने को मलमास, अधिक मास, पुरुषोत्तम मास, और लौंद कहा जाता है। पौष मास को भी मलमास और चैत्र को खर मास कहा जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता, केवल भगवान का कीर्तन और कथाएँ होती हैं।
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सारांश
विक्रम संवत का समय विभाजन और इसके महीने भारतीय जीवन और संस्कृति में गहरी मान्यता रखते हैं। शुक्ल और कृष्ण पक्षों के अनुसार तिथियों का क्रम और मासों का क्रम न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
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