बरूथिनी एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनाई जाती है। यह व्रत सुख, सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को अनेक प्रकार के पुण्य प्राप्त होते हैं। इसके फलस्वरूप न केवल सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि आत्मा की उन्नति और मोक्ष की ओर भी अग्रसर होती है।
बरूथिनी एकादशी का महत्व और पुण्य ऐसा है कि इस व्रत का पालन करने वाले को कन्यादान, करोड़ों वर्षों की नग्न तपस्या और ब्राह्मणों को दान देने से भी अधिक फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने के दौरान विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। इस दिन झूठ बोलना, क्रोध करना, परनिंदा करना और दातुन फाड़ना निषिद्ध माना जाता है। इसके अलावा, व्रतधारी को तेलयुक्त भोजन का भी परहेज करना चाहिए।
इस व्रत के माहात्म्य के अनुसार, बरूथिनी एकादशी के व्रत का श्रवण मात्र से सहस्त्र गऊओं की हत्या जैसे पापों का भी नाश हो जाता है। यह व्रत न केवल पापों का नाश करता है, बल्कि व्यक्ति को सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार के लाभ प्रदान करता है।
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बरूथिनी एकादशी की कथा
प्राचीन काल की बात है, नर्मदा नदी के तट पर मांधाता नामक एक राजा राज्य करता था। राजा मांधाता न केवल एक शक्तिशाली शासक था, बल्कि अत्यंत दानशील और तपस्वी भी था। राजा ने अपने जीवन में अनेक दान और तपस्या की, जिससे वह अपनी प्रजा और संतों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया था।
राजकाज के कार्यों में व्यस्त रहने के बावजूद, राजा का मन सदैव धर्म और तपस्या में लगा रहता था। वह नियमित रूप से नर्मदा तट पर जाकर भगवान की पूजा और तप करता था। उसकी तपस्या इतनी गहन थी कि देवता भी उसकी भक्ति से प्रभावित थे।
भालू का आक्रमण
एक दिन, जब राजा मांधाता तपस्या में लीन थे, उसी समय एक जंगली भालू वहाँ आ पहुँचा। भालू भूखा और क्रूर था, और उसने राजा को तपस्या करते हुए देख, उस पर आक्रमण करने का निश्चय किया। बिना किसी चेतावनी के, भालू ने राजा का पैर चबाना शुरू कर दिया। राजा मांधाता इस अचानक हमले से विचलित हुए, लेकिन उन्होंने अपने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए हिंसा या क्रोध का सहारा नहीं लिया।
भालू ने राजा को घसीटते हुए जंगल के भीतर ले जाने की कोशिश की। उस कष्टप्रद समय में भी राजा ने संयम नहीं खोया। उन्होंने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए भगवान विष्णु से प्रार्थना की, क्योंकि वे जानते थे कि केवल भगवान ही उन्हें इस संकट से मुक्ति दिला सकते हैं।
भगवान विष्णु का प्रकट होना
राजा की गहन प्रार्थना से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और तुरंत प्रकट हो गए। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से भालू का वध कर दिया और राजा को भालू के आक्रमण से मुक्त कर दिया। लेकिन भालू ने राजा के पैर को गंभीर रूप से घायल कर दिया था, जिससे राजा बहुत दुखी हो गए। राजा का पैर भालू खा चुका था, और वह विकलांग हो चुके थे।
भगवान विष्णु ने राजा के शोक को देखकर कहा, “हे वत्स! तुम्हारा यह कष्ट तुम्हारे पूर्वजन्म के कर्मों का परिणाम है। लेकिन तुम चिंता मत करो। मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूँ जिससे तुम अपने अंगों को पुनः प्राप्त कर सकोगे। तुम मथुरा जाओ और वहाँ मेरी वाराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। इसके साथ ही, वैशाख कृष्ण पक्ष की बरूथिनी एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम पुनः अपने अंग प्राप्त करोगे और सुन्दर शरीर के स्वामी बन जाओगे।”
भगवान विष्णु की यह बात सुनकर राजा मांधाता को बहुत आशा मिली। उन्होंने भगवान विष्णु को प्रणाम किया और मथुरा जाने का निश्चय किया।
बरूथिनी एकादशी व्रत का पालन
भगवान विष्णु के आदेशानुसार, राजा मांधाता मथुरा पहुँचे और वहाँ जाकर वाराह अवतार की मूर्ति की विधिपूर्वक पूजा की। इसके साथ ही, उन्होंने पूरे नियम और विधि के साथ बरूथिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के दौरान राजा ने तेलयुक्त भोजन का त्याग किया, सत्य का पालन किया और भगवान विष्णु की भक्ति में पूरी तरह से लीन हो गए।
राजा ने व्रत के दिन पूरी श्रद्धा और भक्ति से भगवान विष्णु का ध्यान किया और उनके समक्ष अपने पापों की क्षमा मांगी। राजा ने तपस्या के साथ-साथ भगवान विष्णु के नाम का जाप किया और उन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत का पालन किया।
व्रत का परिणाम
बरूथिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा मांधाता का शाप समाप्त हो गया। उनका शरीर पुनः सुन्दर और पूर्ण हो गया। राजा अपने पूर्व शरीर के साथ पुनः स्वस्थ और समृद्ध बन गए। उनकी विकलांगता समाप्त हो गई और उन्होंने भगवान विष्णु की कृपा से एक नए जीवन की प्राप्ति की।
व्रत के बाद, राजा ने भगवान विष्णु को धन्यवाद दिया और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्होंने अपने राज्य में लौटकर धर्म और न्याय का पालन किया और अपनी प्रजा की सेवा की। राजा मांधाता के जीवन में इस व्रत के प्रभाव से सुख और समृद्धि लौट आई।
बरूथिनी एकादशी का महत्व
बरूथिनी एकादशी का व्रत न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि यह व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक सुख भी प्रदान करता है। इस व्रत के पालन से जीवन की सभी बाधाएँ समाप्त होती हैं और व्यक्ति को सफलता प्राप्त होती है।
इस एकादशी का महत्व विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो अपने पूर्वजन्म के पापों या किसी भी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति पाना चाहते हैं। इस व्रत के दौरान भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को न केवल इस जन्म के, बल्कि पूर्वजन्म के पापों से भी छुटकारा मिलता है।
बरूथिनी एकादशी का व्रत यह सिखाता है कि ईश्वर की भक्ति और धर्म का पालन करने से व्यक्ति अपने जीवन में आने वाले किसी भी प्रकार के संकट से बाहर निकल सकता है। चाहे कितना ही बड़ा कष्ट क्यों न हो, भगवान की शरण में जाने से हर प्रकार की समस्या का समाधान हो जाता है।
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व्रत विधि
बरूथिनी एकादशी व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। व्रतधारी को इस दिन तेलयुक्त भोजन का त्याग करना चाहिए और सत्य, संयम, और धर्म का पालन करना चाहिए। भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष दीपक जलाएं और उन्हें ताजे फूल, तुलसी दल और प्रसाद अर्पित करें।
पूजन के बाद, भगवान विष्णु के समक्ष प्रार्थना करें और अपने पापों की क्षमा मांगे। इस दिन भगवान विष्णु के नाम का जाप करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। रात्रि में जागरण करके विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और भगवान की महिमा का गुणगान करें।
बरूथिनी एकादशी का फल
इस व्रत के पालन से व्यक्ति को सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। उसकी आयु, धन और समृद्धि में वृद्धि होती है और उसे जीवन में आने वाली सभी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
बरूथिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत का फल करोड़ों वर्षों की तपस्या और दान-पुण्य से भी बढ़कर है, और यह व्यक्ति को ईश्वर के करीब लाता है।
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