अचला एकादशी, जिसे अपरा एकादशी भी कहा जाता है, ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है। यह दिन विशेष रूप से उन भक्तों के लिए महत्वपूर्ण होता है जो अपने पापों से मुक्ति पाने और पुण्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होते हैं। इस दिन व्रत करने से न केवल ब्रह्महत्या, परनिन्दा, और भूत योनि जैसे पापों से छुटकारा मिलता है, बल्कि यह कीर्ति, पुण्य, और धन-धान्य में भी वृद्धि करता है।
अचला एकादशी 2025 तिथि, दिन और पूजा का समय
तिथि | 23 मई 2025 |
दिन | शुक्रवार |
पूजा का शुभ मुहूर्त | सुबह 5:26 बजे से सुबह 8:11 तक |
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अचला एकादशी का व्रत: विधि और महत्व
इस दिन व्रत करने के लिए भक्तजन निम्नलिखित विधियों का पालन करते हैं:
- स्नान और शुद्धता: प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें और मन को शांत रखें।
- भगवान की पूजा: इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु या भगवान श्रीराम की पूजा की जाती है। पूजा के लिए घर के मंदिर को सजाना और वहां दीप जलाना आवश्यक है।
- उपवास: व्रति को इस दिन उपवास करना चाहिए। उपवास का अर्थ केवल भोजन का त्याग नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि और मन को एकाग्र करने का भी एक माध्यम है।
- ब्राह्मणों को भोजन: इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना और उन्हें दान-दक्षिणा देना भी महत्वपूर्ण है। यह कार्य पुण्य का फल देता है और सामाजिक सद्भावना को बढ़ावा देता है।
- भजन और कीर्तन: रात को भगवान के भजन और कीर्तन का आयोजन करें। इससे मन में सकारात्मकता बनी रहती है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
अचला एकादशी की कथा
अचला एकादशी की कथा प्राचीन काल के एक धर्मात्मा राजा महीध्वज से संबंधित है। राजा महीध्वज अपने राज्य में सत्य, धर्म, और न्याय का पालन करते थे। उनका राज्य समृद्ध था और प्रजा उन पर गर्व करती थी। राजा महीध्वज का एक छोटा भाई था, जिसका नाम वज्रध्वज था। वज्रध्वज का स्वभाव क्रूर, अधर्मी, और अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई की सफलता और समृद्धि से जलता था और हमेशा उसकी हत्या करने का अवसर ढूंढता रहता था।
एक दिन, वज्रध्वज ने एक कुटिल योजना बनाई और राजा महीध्वज को धोखे से मारा। उसने अपने भाई की लाश को जंगल में, एक पुरातन पीपल के वृक्ष के नीचे गाड़ दिया। राजा की हत्या के बाद, उसकी आत्मा शांति नहीं पाई और वह पीपल के वृक्ष पर भटकने लगी। राजा महीध्वज की आत्मा अपने ही छोटे भाई के अन्याय के कारण व्यथित थी। वह पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर आने-जाने वाले व्यक्तियों को परेशान करने लगी। लोग उसकी आत्मा की पीड़ा और उस वृक्ष से आती अजीब आवाजों को सुनकर डरने लगे।
ऋषि धौम्य का आगमन
एक दिन, जब धौम्य ऋषि उस जंगल से निकले, तो उन्होंने उस पीपल के वृक्ष के नीचे अजीब स्थिति देखी। ऋषि ने तपोबल से प्रेत की उत्पत्ति का कारण समझ लिया। उन्होंने देखा कि राजा की आत्मा परेशान है और उस पर दैहिक बंधन है। ऋषि ने ध्यान की मुद्रा में बैठकर राजा की आत्मा को बुलाया। राजा की आत्मा ने ऋषि से अपनी कहानी सुनाई, जिसमें उसने अपने छोटे भाई के द्वारा किए गए अन्याय का उल्लेख किया।
ऋषि का उपदेश
धौम्य ऋषि ने राजा की आत्मा को कहा, “हे धर्मात्मा, तुमने जो किया है, उसके लिए तुम्हें पछतावा करना होगा। तुम्हें अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए ‘अचला’ एकादशी का व्रत करना होगा। इस व्रत को करने से तुम्हारी आत्मा को शांति और मुक्ति मिलेगी।” राजा ने ऋषि की बातों को ध्यानपूर्वक सुना और उन्हें स्वीकार किया।
अचला एकादशी का व्रत
राजा महीध्वज ने पूरे मन और श्रद्धा से अचला एकादशी का व्रत किया। उन्होंने सभी विधियों का पालन करते हुए पूजा अर्चना की और अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना की। व्रत के प्रभाव से उनकी आत्मा को शांति मिली, और उन्होंने दिव्य शरीर धारण कर लिया।
स्वर्गलोक की यात्रा
राजा महीध्वज ने अंततः स्वर्गलोक की ओर यात्रा की। उनकी आत्मा ने अपने पापों का प्रायश्चित किया और एक नई शुरुआत की। अचला एकादशी का व्रत उनके लिए मुक्ति का मार्ग बना, और वह स्वर्ग में जाकर अपने पूर्वजों के साथ पुनः मिल गए।
अचला एकादशी का महत्व
अचला एकादशी का व्रत केवल व्यक्तिगत मुक्ति का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज में धर्म और नैतिकता की स्थापना में भी सहायक है। यह व्रत व्यक्ति को उसकी गलतियों का अहसास कराता है और सुधार की प्रेरणा देता है। इस दिन व्रत करने से न केवल आत्मा की शुद्धि होती है, बल्कि यह व्यक्ति को सामाजिक और पारिवारिक जीवन में भी सकारात्मकता लाने में मदद करता है।
इस प्रकार, अचला एकादशी का व्रत एक साधारण दिन को एक महान अवसर में बदल सकता है। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्चे मन से किए गए व्रत और भक्ति से व्यक्ति अपने पापों का प्रायश्चित कर सकता है और अपने जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त कर सकता है। इस दिन का व्रत श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से भगवान की कृपा से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है। इस अचला एकादशी पर व्रत करें, और अपने जीवन को धर्म और भक्ति के मार्ग पर अग्रसर करें।
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