अक्षय तृतीया, जिसे आखातीज के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के सबसे पवित्र और शुभ दिनों में से एक है। यह पर्व वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। अक्षय तृतीया का मतलब है “अक्षय” अर्थात “जो कभी क्षीण न हो, जो कभी समाप्त न हो”। यह दिन हर तरह की समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक है, और इस दिन किए गए किसी भी कार्य का फल अक्षय (अविनाशी) होता है। ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए शुभ कार्यों का पुण्य कभी समाप्त नहीं होता, और यह जीवन में धन, वैभव, शांति, और समृद्धि का संचार करता है।
अक्षय तृतीया 2025 तिथि, दिन और पूजा का समय
तिथि | 30 अप्रैल 2025 |
दिन | बुधवार |
पूजा का शुभ मुहूर्त | सुबह 5:54 बजे से 12:24 तक |
इसे जरूर पढ़ें: सावन का सोमवार: शिव पूजन का महत्व और पूजा विधि
अक्षय तृतीया का महत्व
अक्षय तृतीया के दिन को हिंदू धर्म में विशेष रूप से पवित्र माना जाता है क्योंकि इस दिन से जुड़ी कई पौराणिक घटनाएँ हैं। यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष अवसर होता है। इस दिन भगवान विष्णु के वराह अवतार ने पृथ्वी को समुद्र से निकाला था, और इसी दिन भगवान परशुराम का जन्म भी हुआ था। इसलिए, अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
व्रत का फल इतना महान होता है कि इसे करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और वह मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इस दिन किए गए किसी भी शुभ कार्य, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, व्यवसाय की शुरुआत, या जमीन खरीदने के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
व्रत की विधि
अक्षय तृतीया का व्रत अत्यंत सरल होते हुए भी फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रतधारी को सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए और शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजा का प्रारंभ भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराने से होता है। इसके बाद भगवान को पुष्प, माला, चंदन, और तुलसी दल अर्पित करना चाहिए। विशेष रूप से इस दिन मिश्री और भीगे हुए चने भगवान को भोग स्वरूप अर्पित किए जाते हैं। पूजा के दौरान धूप, दीप और आरती का आयोजन किया जाता है और भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किया जाता है।
अक्षय तृतीया पर ब्राह्मणों को दान का भी अत्यंत महत्व है। दान के रूप में नया घड़ा, पंखा, चावल, चीनी, घी, नमक, दाल, इमली, और रुपया आदि वस्त्रों के साथ श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है। यह दिन दान-पुण्य के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दिन दिया गया दान कभी क्षय नहीं होता। इस दिन पक्के भोजन और तले हुए पदार्थों का सेवन वर्जित है। खासतौर पर, इस दिन मूँग और चावल की खिचड़ी बिना नमक के बनाई जाती है, और पापड़ भी नहीं सेंके जाते।
विशेष पूजा विधान
इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा का भी विशेष महत्व है। पूजा में भगवान विष्णु के चरणों में तुलसी के पत्ते अर्पित किए जाते हैं, और भक्तजन उनसे अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं। पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा सहित विदा किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान लक्ष्मीनारायण की आराधना करने से जीवन में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती। वृंदावन में इसी दिन भगवान बिहारीजी के पांव के दर्शन होते हैं, जो कि साल में केवल एक बार ही होते हैं।
अक्षय तृतीया की पौराणिक कथा
अत्यन्त प्राचीन काल में कुशावती नामक नगरी में महोदय नाम का एक वैश्य रहता था। वह अपनी ईमानदारी और श्रद्धा से भरपूर जीवन जीता था, लेकिन आर्थिक दृष्टि से उसकी स्थिति अच्छी नहीं थी। एक बार महोदय वैश्य को एक पंडित के द्वारा अक्षय तृतीया व्रत का महात्म्य सुनने को मिला। पंडित ने उसे बताया कि इस व्रत का पालन करने से जीवन में न केवल आर्थिक समृद्धि आती है, बल्कि सभी प्रकार के पापों से भी मुक्ति मिलती है। पंडित की बातों से प्रभावित होकर महोदय ने इस व्रत को पूरे नियम और विधि के साथ करने का निश्चय किया।
महोदय वैश्य ने पूरी श्रद्धा और भक्ति से अक्षय तृतीया का व्रत रखा और भगवान विष्णु की पूजा की। व्रत के प्रभाव से उसकी किस्मत चमक उठी, और वह न केवल धनी बन गया बल्कि कुशावती का महाप्रतापी शक्तिशाली राजा भी बन गया। उसके राज्य में सदैव सुख-शांति और समृद्धि का वास रहा, और उसका खजाना हमेशा स्वर्ण-मुद्राओं, हीरे-जवाहरातों से भरा रहता था।
महोदय वैश्य राजा बनने के बाद भी अत्यंत दानी और धर्मपरायण बने रहे। वह उदार मन से दान करते थे और अपनी प्रजा की हर संभव सहायता करते थे। एक बार, उनके राज्य के कुछ जिज्ञासु व्यक्तियों ने उनसे पूछा, “राजन, आपकी समृद्धि का रहस्य क्या है? आप इतना वैभव और ऐश्वर्य कैसे प्राप्त कर सके?”
राजा महोदय ने हँसते हुए कहा, “मेरी समृद्धि का रहस्य अक्षय तृतीया व्रत है। इस व्रत के पालन से ही मुझे यह सब मिला है। इस व्रत का फल अक्षय है, इसलिए इसे करने से कभी क्षय नहीं होता। यह भगवान लक्ष्मीनारायण की कृपा का परिणाम है।”
राजा से यह सुनकर उनकी प्रजा और अन्य लोग भी इस व्रत को करने लगे। व्रत के पुण्य प्रताप से धीरे-धीरे पूरा नगर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। वहाँ के सभी निवासी समृद्ध, वैभवशाली और सुखी हो गए। इस प्रकार, अक्षय तृतीया व्रत का महत्व धीरे-धीरे पूरे राज्य और अन्य क्षेत्रों में फैल गया।
इसे जरूर पढ़ें: लक्ष्मी जी ने राजा बली को बांधी थी राखी
अक्षय तृतीया का पुण्य
अक्षय तृतीया का व्रत करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन किए गए दान-पुण्य से मनुष्य को जीवन में धन-धान्य, सुख-शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। जो लोग इस दिन भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते हैं, उन्हें न केवल इस जन्म में, बल्कि अगले जन्म में भी पुण्य का फल मिलता है। अक्षय तृतीया का व्रत भगवान लक्ष्मीनारायण को अत्यंत प्रिय है और इसे करने से मनुष्य के सभी दुखों का नाश होता है।
इस व्रत के प्रभाव से पूर्वजन्म के पाप भी धुल जाते हैं, और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। अक्षय तृतीया का दिन न केवल शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त है, बल्कि यह जीवन में नए अध्याय की शुरुआत करने का भी आदर्श समय है।
अक्षय तृतीया का व्रत जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का संचार करता है। इस दिन की गई पूजा और दान कभी निष्फल नहीं होते और इसका पुण्य हमेशा अक्षय बना रहता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस व्रत के पालन से व्यक्ति को धन, वैभव, और सुख की प्राप्ति होती है, और भगवान लक्ष्मीनारायण की कृपा सदैव उस पर बनी रहती है। हे अक्षय तीज माता! जैसे आपने महोदय वैश्य को धन और वैभव दिया, वैसे ही अपने भक्तों पर अपनी कृपा बनाए रखें।
इसे जरूर पढ़ें: हस्तिनापुर का पांडेश्वर महादेव मंदिर
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |
Leave a Reply