सूतजी बोले— “हे ऋषियों! अब मैं आपको आमलकी एकादशी के व्रत और उसकी कथा के बारे में विस्तार से बताने जा रहा हूँ। यह व्रत हर वर्ष फाल्गुन मास की शुक्ल एकादशी को किया जाता है। इस दिन आँवले के वृक्ष की पूजा की जाती है, क्योंकि मान्यता है कि इस वृक्ष में भगवान का निवास है।”
इसे जरूर पढ़ें: पद्मिनी एकादशी
आमलकी एकादशी की महिमा
आमलकी एकादशी का व्रत केवल भक्ति का ही नहीं, बल्कि शुद्धता और तप का भी प्रतीक है। इसे करने से भक्त को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और यह व्रत मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी खोलता है। इस दिन श्रद्धालु आँवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं।
राजा चित्रसेन का परिचय
प्राचीन काल में भारत देश में चित्रसेन नामक एक प्रतापी राजा राज्य करते थे। राजा चित्रसेन बहुत धर्मात्मा और सज्जन थे। उन्होंने अपने राज्य में एकादशी व्रत का बहुत महत्त्व बताया और अपने प्रजाजनों को भी इसे करने के लिए प्रेरित किया। उनकी प्रजा उनके आदर्शों का पालन करती थी और एकादशी के दिन विशेष रूप से व्रत रखती थी।
राजा का वन में शिकार
एक दिन राजा चित्रसेन जंगल में शिकार करने गए। वह शिकार खेलते-खेलते काफी दूर निकल गए। जैसे-जैसे राजा गहरे जंगल में जाते गए, वहाँ की बर्बरता और म्लेच्छ जातियों का सामना करना पड़ा। अचानक, कुछ जंगली जातियों ने राजा को घेर लिया और उन पर अस्त्र-शस्त्रों का कठिन प्रहार किया। राजा ने वीरता से सामना किया, परंतु यह देखकर म्लेच्छ आश्चर्यचकित रह गए कि राजा पर उनका कोई अस्त्र प्रभावी नहीं हो रहा था।
राजा की विजय और दिव्य शक्ति का प्रकट होना
जैसे-जैसे जंगली जातियों की संख्या बढ़ती गई, राजा धीरे-धीरे संज्ञाहीन होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। इस संकट के क्षण में, राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई, जिसने उन सभी राक्षसों को मारकर अदृश्यता धारण कर लिया।
जब राजा की चेतना लौटी, तो उन्होंने देखा कि समस्त म्लेच्छ मरे पड़े हैं। अब राजा सोच में पड़ गए कि उन्हें किसने बचाया? तभी आकाशवाणी हुई, “हे राजन्! ये समस्त आक्रामक तुम्हारे पिछले जन्म की आमलकी एकादशी के व्रत के प्रभाव से मरे हैं।”
इसे जरूर पढ़ें: श्री लक्ष्मी कवच
एकादशी का उपदेश
इस वाणी को सुनकर राजा चित्रसेन अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्हें यह समझ में आ गया कि एकादशी का व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह एक अदृश्य शक्ति का भी प्रतीक है। राजा ने तुरंत निर्णय लिया कि वह अपने राज्य में इस एकादशी के माहात्म्य को फैलाएँगे।
प्रजा का उत्सव
राजा ने पूरे राज्य में आमलकी एकादशी के महत्व को बताने के लिए भव्य समारोह का आयोजन किया। उन्होंने अपने मंत्रियों और प्रजाजनों को एकत्रित किया और उन्हें बताया कि कैसे इस व्रत के प्रभाव से उन्हें संकट से मुक्ति मिली। राजा ने कहा, “इस दिन जो भी भक्त इस एकादशी का व्रत रखेगा, उसे सभी पापों से मुक्ति मिलेगी और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी।”
राजा की प्रेरणा से पूरे राज्य में एकादशी का पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा। प्रजा ने एकादशी के दिन व्रत रखा, आँवले के वृक्ष की पूजा की और भक्ति भाव से भगवान विष्णु का ध्यान किया। सभी लोग राजा के प्रति आभार व्यक्त करते हुए एक-दूसरे के साथ प्रेम और स्नेह से रहने लगे।
आमलकी एकादशी का स्थायी प्रभाव
इस प्रकार, आमलकी एकादशी का पर्व राजा चित्रसेन के राज्य में एक स्थायी परंपरा बन गया। लोग इस दिन व्रत रखते, आँवले के वृक्ष की पूजा करते और अपने पापों से मुक्ति पाते। राजा चित्रसेन ने यह भी तय किया कि प्रत्येक वर्ष इस दिन विशेष उत्सव मनाया जाएगा और सभी को आमलकी एकादशी के महत्व के बारे में बताया जाएगा।
इस प्रकार, आमलकी एकादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि एक अवसर बन गया जिससे लोगों के जीवन में सुख और समृद्धि का संचार हुआ। राजा चित्रसेन के नेतृत्व में, राज्य में हर एक व्यक्ति भक्ति और धर्म के मार्ग पर चलने लगा।
इति आमलकी एकादशी व्रत कथा सम्पूर्ण।
श्री मन नारायण-नारायण-नारायण। भज मन नारायण-नारायण-नारायण। आमलकी एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
इसे जरूर पढ़ें: मौनी अमावस्या
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |
Leave a Reply