आसमाई की पूजा एक प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो खासतौर पर बाल-बच्चों वाली महिलाएँ करती हैं। यह पूजा विशेष रूप से वैशाख, आषाढ़, और माघ के महीनों में किसी भी रविवार को की जाती है। इस पूजा का उद्देश्य परिवार के सुख, समृद्धि, और संतानों की सुरक्षा के लिए देवी आसमाई का आशीर्वाद प्राप्त करना होता है। पूजा के दिन कुछ खास नियमों का पालन किया जाता है, जैसे भोजन में नमक का प्रयोग वर्जित होता है, और सफेद चंदन से बनी पुतली की पूजा की जाती है। इस पूजा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है, और इसे करने वाली महिलाओं को देवी आसमाई का विशेष आशीर्वाद मिलता है।
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आसमाई की पूजा का विधान
आसमाई की पूजा का विधान बेहद विशेष और पारंपरिक होता है। पूजा की शुरुआत में ताम्बूल पर सफेद चंदन से पुतली बनाई जाती है और उस पर चार कौड़ियाँ रखी जाती हैं। इन कौड़ियों का देवी आसमाई की कृपा का प्रतीक माना जाता है। पूजा की अन्य प्रमुख विधियों में चौक पूरना और कलश स्थापित करना शामिल हैं। चौक पूरने के बाद, कलश को पूजा स्थल पर स्थापित किया जाता है और उसके समीप देवी आसमाई की प्रतिमा को रखा जाता है। पूजा के दौरान देवी को धूप-दीप अर्पित किए जाते हैं, और भोग के रूप में फल, मिठाइयाँ और अन्य सामग्री चढ़ाई जाती है।
पूजन समाप्त होने के बाद, पंडित द्वारा पूजा करने वाली महिला को बारह पोटियों वाला मांगलिक सूत्र दिया जाता है। इस सूत्र का विशेष महत्व होता है और इसे पूजा के समय धारण करना चाहिए। इसे पहनने से देवी की कृपा प्राप्त होती है और व्रत करने वाली महिला के जीवन में सुख, समृद्धि, और संतानों की सुरक्षा बनी रहती है।
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आसमाई की कथा
आसमाई की पूजा से जुड़ी एक पुरानी और दिलचस्प कथा है, जो धार्मिक आस्था और विश्वास का प्रतीक है। कथा के अनुसार, एक समय की बात है, एक राजा था जिसका एक बेटा था। राजा का बेटा, अपनी माँ और पिता के लाड़-प्यार के कारण बेहद मनमानी करने लगा। वह एक नटखट और शरारती युवक बन गया था, जो लोगों को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ता था। उसकी सबसे बड़ी शरारत यह थी कि वह अक्सर पनघट पर बैठकर पनिहारियों की गगरियाँ (मिट्टी के घड़े) गुलेल से फोड़ देता था।
जब यह बात राजा के कानों तक पहुँची, तो वह बेहद क्रोधित हुआ। राजा ने घोषणा की कि कोई भी स्त्री अब पनघट पर मिट्टी के घड़े लेकर पानी भरने नहीं जाएगी। इसके परिणामस्वरूप सभी स्त्रियाँ पीतल और ताँबे के घड़े लेकर पानी भरने लगीं। लेकिन राजा के बेटे की शरारतें यहीं नहीं रुकीं। उसने अब लोहे और शीशे के टुकड़ों से पनिहारियों के पीतल और ताँबे के घड़े फोड़ने शुरू कर दिए।
इससे राजा की सहनशीलता खत्म हो गई, और उसने अपने बेटे को देश से निर्वासित करने का आदेश दे दिया। राजकुमार को घोड़े पर बैठाकर जंगल की ओर भेज दिया गया।
जंगल की चार बुढ़ियों से मुलाकात
वन में भटकते हुए राजकुमार की मुलाकात चार बुढ़ियों से हुई। ये बुढ़ियाँ देवी के रूप में थीं, लेकिन राजकुमार को यह ज्ञात नहीं था। तभी राजकुमार का चाबुक गिर गया, और जब उसने घोड़े से उतरकर चाबुक उठाया, तो बुढ़ियों ने सोचा कि वह उन्हें प्रणाम कर रहा है। इस पर बुढ़ियाँ राजकुमार से पूछने लगीं, “तू हमें प्रणाम कर रहा है या किसी और को?”
राजकुमार ने उत्तर दिया, “मैं आप चारों में से चौथी बुढ़िया (आसमाई देवी) को प्रणाम कर रहा हूँ।” यह सुनकर आसमाई देवी बहुत प्रसन्न हुईं और राजकुमार को चार कौड़ियाँ दीं। उन्होंने कहा, “जब तक ये कौड़ियाँ तुम्हारे पास रहेंगी, तब तक तुम्हें कोई पराजित नहीं कर सकेगा। तुम्हारे समस्त कार्यों में सफलता मिलेगी।” देवी का आशीर्वाद पाकर राजकुमार आत्मविश्वास से भर गया और अपनी यात्रा पर आगे बढ़ गया।
राजकुमार की सफलता और विवाह
राजकुमार अपनी यात्रा करते हुए एक अन्य राज्य की राजधानी पहुँचा, जहाँ का राजा जुआ खेलने में निपुण था। राजकुमार ने राजा के साथ जुआ खेला और देवी आसमाई के आशीर्वाद से राजा को जुए में हरा दिया। जुए में राजा का पूरा राजपाट हार गया, और अब राजकुमार उस राज्य का नया शासक बन गया।
राजा की हार से दुखी होकर, उसके मंत्री ने सलाह दी कि राजा को अपनी राजकुमारी का विवाह राजकुमार से कर देना चाहिए, ताकि राज्य को बचाया जा सके। राजा ने मंत्री की बात मानी, और राजकुमारी का विवाह राजकुमार से कर दिया। राजकुमारी अत्यंत शीलवान और सदाचारिणी थी। विवाह के बाद वह महल में आई और सास-ननद के अभाव में कपड़े की गुड़ियों द्वारा उनकी परिकल्पना कर उनके चरणों को आँचल से छूने लगी। वह सास-ननद की सेवा करने की तीव्र इच्छा रखती थी।
राजकुमार का घर वापसी
एक दिन, जब राजकुमारी ने सास-ननद की सेवा करने की अपनी इच्छा प्रकट की, तो राजकुमार ने अपने पैतृक राज्य में वापस जाने का निर्णय लिया। वह अपनी सेना के साथ अपने पिता के राज्य की ओर चल दिया। वहाँ पहुँचने पर उसे पता चला कि उसके माता-पिता निरंतर दुःख में रहने के कारण अंधे हो गए थे।
पुत्र के आगमन की खबर सुनकर राजा-रानी अत्यंत प्रसन्न हुए। जब बहू ने सास के चरण छुए, तो सास ने उसे आशीर्वाद दिया। कुछ ही दिनों बाद, बहू ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। इस घटना के बाद, देवी आसमाई की कृपा से राजा-रानी के नेत्रों की ज्योति लौट आई और उनके जीवन के सारे कष्ट समाप्त हो गए।
आसमाई की कृपा और पूजा का महत्व
आसमाई देवी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले सभी प्रकार के संकट और कष्ट समाप्त हो जाते हैं। देवी का आशीर्वाद जीवन को सुख, शांति, और समृद्धि से भर देता है। यह पूजा विशेष रूप से उन महिलाओं द्वारा की जाती है जो अपने परिवार और संतानों की सुरक्षा और समृद्धि की कामना करती हैं। आसमाई की पूजा का महत्व इतना अधिक है कि इसे करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी विपत्तियाँ समाप्त हो जाती हैं और देवी की कृपा से समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
आसमाई की कृपा से ही राजकुमार का जीवन सफल हुआ और उसने अपनी सारी कठिनाइयों को पार कर लिया। यह पूजा उन सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है जो जीवन में शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।
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