शरीर नश्वर है आत्मा अमर है

शरीर नश्वर है आत्मा अमर है

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥

अर्थात: आत्मा को कोई औजार नहीं काट सकता, आग उसे जला नहीं सकती, पानी उसे भिगो नहीं सकता और हवा उसे सुखा नहीं सकती। आत्मा अजर और अमर है।

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मृत्यु के बाद शोक के बजाय आत्मा की यात्रा को समझें

अक्सर हम शरीर और आत्मा के बीच का फर्क भूल जाते हैं। जब हमारा कोई करीबी मृत्यु को प्राप्त होता है, तो हम शोक में डूब जाते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि नष्ट होने वाला केवल शरीर है, आत्मा नहीं। आत्मा अनश्वर है, अजर-अमर है, और उसकी कभी मृत्यु नहीं होती। वह एक शरीर से दूसरे शरीर की यात्रा करती रहती है, एक जन्म से दूसरे जन्म का फेरा लगाती है।

जो नष्ट हुआ, वह केवल मिट्टी थी। जिस जीवन शक्ति ने उस मिट्टी को संचालित किया, वह जस की तस बनी रहती है, बस अब वह किसी और मिट्टी में प्राण फूंकने चली गई है। इस नश्वर दुनिया के रंगमंच पर वह अब किसी दूसरे अभिनय को निभाने जा रही है, जैसे उसने इस जन्म में फलाने व्यक्ति के रूप में अभिनय किया था।

शरीर के नष्ट होने पर शोक करना व्यर्थ है, और आत्मा के प्रति शोक करना उस आत्मा का अपमान भी है। इसलिए, जाने वाले को सम्मान के साथ विदा करना ही समझदारी है। हमारे मोह-माया के बंधन हमें सच्चे लगते हैं, लेकिन सच्चाई केवल एक है—जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को बताया: “आत्मा अजर और अमर है।” इसीलिए, शरीर के प्रति प्रेम रखना व्यर्थ प्रतीत होता है।

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हमें यह समझना होगा कि बिछड़ने वाले का साथ बस यहीं तक का था। इस सत्य को कड़वी दवाई की तरह स्वीकार कर, हमें जीवन में आगे बढ़ना चाहिए और जाने वाले व्यक्ति से हर प्रकार का मोह त्याग देना चाहिए। यही सही दिशा में उस आत्मा के लिए उचित होगा, क्योंकि इससे वह आपके मोह के बंधन से मुक्त होकर अपनी आगे की यात्रा कर सकेगी।

माता-पिता, पति-पत्नी, बेटा-बेटी, भाई-बहन—ये सब रिश्ते देह से जुड़े हैं। आत्मा इन रिश्तों से मुक्त है, और वह किसी अभिनेता की तरह बस अभिनय करने के लिए इस नश्वर देह में रहती है। अभिनय समाप्त होते ही आत्मा किसी और अभिनय को निभाने निकल जाती है। जो समय हमने उस आत्मा के साथ बिताया, उसकी अच्छी यादों को संजोएं और उसे प्रणाम कर खुद को शरीर के मोह से मुक्त करें।

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डिस्क्लेमर: इस लेख में कोई जानकारी नही दी गई है बल्कि धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक ग्रंथों, व्यक्तिगत चिंतन और मनन के द्वारा एक सोच है प्रस्तुत की गई है। प्रत्येक व्यक्ति की सोच इस संबंध मे अलग हो सकती है adhyatmikaura.in प्रत्येक व्यक्ति एवं समाज की सोच का सम्मान करता हैं। व्यक्ति को इस लेख से जुड़ी जानकारी अपने जीवन मे उतारने से पहले अपने विवेक का पूर्ण इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए।

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