बैकुण्ठ चतुर्दशी 2024

बैकुण्ठ चतुर्दशी 2024

बैकुण्ठ चतुर्दशी का व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बड़े उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता है। यह पर्व भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति और मोक्ष की ओर अग्रसर होने का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। इसे करने से मनुष्य केवल सांसारिक सुख ही नहीं, बल्कि बैकुण्ठधाम की भी प्राप्ति कर सकता है। इस व्रत में स्नान, आचमन और विधिपूर्वक पूजा का विशेष महत्व होता है। विष्णु भगवान की आराधना करने के बाद पुष्प, दीप और चंदन जैसे सुगंधित पदार्थों से उनकी आरती की जाती है, जिससे भगवान प्रसन्न होकर भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

तिथि 14 नवम्बर 2024 से सुबह 9:43 पर आरम्भ होगा और अगले दिन 15 नवम्बर 2024 को सुबह 6:19 तक रहेगा
दिन बृहस्पतिवार तथा शुक्रवार
पूजा का शुभ मुहूर्तदोपहर 2:00 बजे से 2:48 तक

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एक समय की बात है, जब नारद मुनि ने अपनी दिव्य यात्रा के दौरान बैकुण्ठ धाम की ओर प्रस्थान किया। नारद मुनि, जो सदा भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे, जब भगवान के समक्ष पहुँचे, तो भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उनसे आने का कारण पूछा। नारद मुनि ने हाथ जोड़कर कहा, “हे भगवन्! आप जगत के पालनहार और करुणा के सागर हैं। आपके भक्तों को आपकी असीम कृपा प्राप्त होती है, परंतु साधारण नर-नारी जिन्हें पूजा-पाठ का ज्ञान नहीं होता, वे इस कृपा से वंचित रह जाते हैं। क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे साधारण मनुष्य भी आपकी कृपा के पात्र बन सकें?”

श्रीहरि ने हल्की मुस्कान के साथ उत्तर दिया, “हे नारद! तुमने जो प्रश्न किया है वह अति महत्त्वपूर्ण है। मैं उन साधारण नर-नारियों के लिए एक सरल मार्ग बताता हूँ। कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी भक्तिपूर्वक मेरा नाम स्मरण कर मेरी पूजा करेंगे, उन्हें स्वर्ग प्राप्त होगा। इस दिन व्रत रखकर यदि वे तनिक भी भक्ति से मेरा स्मरण करेंगे, तो भी उन्हें बैकुण्ठधाम प्राप्त होगा।”

इसके पश्चात भगवान विष्णु ने अपने द्वारपाल जय और विजय को आदेश दिया कि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन बैकुण्ठ के द्वार सदैव खुले रहें। “जो भी इस दिन भक्तिपूर्वक पूजा करेगा और मेरा नाम लेगा, उसे बिना किसी संदेह के मोक्ष की प्राप्ति होगी,” भगवान ने कहा। नारद मुनि अत्यंत प्रसन्न हुए और धरती पर जाकर इस व्रत की महिमा का प्रचार-प्रसार करने लगे, ताकि साधारण नर-नारी भी भगवान विष्णु की कृपा से बैकुण्ठधाम को प्राप्त कर सकें।

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महाभारत के युद्ध के उपरांत, जब भीष्म पितामह शरशय्या पर लेटे सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण और पाँचों पांडव उनके पास पहुँचे। धर्मराज युधिष्ठिर ने  पितामह भीष्म से प्रार्थना की, “हे पितामह! कृपया हमें राजधर्म और जीवन के अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर उपदेश दें, ताकि हम अपने राज्य का संचालन धर्मपूर्वक कर सकें।”

भीष्म पितामह ने पाँच दिनों तक लगातार युधिष्ठिर और अन्य पांडवों को राजधर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म और जीवन के अन्य महत्वपूर्ण धर्मों पर उपदेश दिया। उनका यह उपदेश इतना गहन और सारगर्भित था कि श्रीकृष्ण भी अत्यंत प्रसन्न हुए। श्रीकृष्ण ने प्रसन्न मन से कहा, “पितामह! आपने जो कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक पाँच दिनों तक धर्ममय उपदेश दिया है, उससे मैं अत्यधिक प्रसन्न हूँ। इस उपदेश की स्मृति में मैं ‘भीष्म पंचक व्रत’ की स्थापना करता हूँ।”

भगवान श्रीकृष्ण ने आगे कहा, “जो भी इस व्रत का पालन करेगा, वह जीवन भर विविध सुखों का भोग करेगा और अंत में उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। भीष्म पंचक व्रत करने वाले व्यक्ति को राजधर्म का ज्ञान प्राप्त होगा और वे अपने कर्तव्यों का पालन धर्मपूर्वक कर सकेंगे।”

इस प्रकार, भगवान श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह के उपदेशों की महत्ता को प्रतिष्ठित किया और इस व्रत को भीष्म के नाम से जोड़ दिया, जिससे यह व्रत युगों-युगों तक पवित्र और पूजनीय बना रहा।

बैकुण्ठ चतुर्दशी का व्रत न केवल भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का साधन है, बल्कि यह एक ऐसी यात्रा भी है जो भक्तों को अध्यात्म और मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करती है। इस व्रत के माध्यम से, व्यक्ति अपने जीवन की कठिनाइयों को पार कर सुख और शांति की प्राप्ति कर सकता है। भीष्म पंचक व्रत, जो कि भीष्म पितामह के धर्मोपदेश के आधार पर स्थापित हुआ, जीवन में नीति, धर्म और कर्तव्य की महत्वपूर्ण धारणाओं को सिखाता है।

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