ग्रहण का समय हिन्दू धर्म में विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व रखता है। यह समय न केवल खगोलीय घटना के रूप में महत्वपूर्ण होता है, बल्कि इसे आत्मशुद्धि और पुण्य कमाने के अवसर के रूप में भी देखा जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, सूर्य और चन्द्र ग्रहण के दौरान किए गए कर्म जैसे दान, जप, और हवन का फल कई गुना अधिक होता है।
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ग्रहण के समय का महत्व
ग्रहण को अशुभ समय माना जाता है, इसलिए इस दौरान विशेष रूप से ध्यान और साधना की आवश्यकता होती है। ऐसा कहा जाता है कि जब चन्द्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण होता है, तो वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है। यही कारण है कि इस समय में दान, जप और ध्यान करने से पापों का नाश होता है और मनुष्य को अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
दान और पुण्य का महत्त्व
ग्रहण के समय दान करने की विशेष महिमा मानी जाती है। अगर संभव हो तो इस समय गरीबों को सात प्रकार के अनाज, सात धातु, घी, और सोना दान देना चाहिए। ग्रहण के दौरान किया गया दान साधारण समय से कई गुना अधिक फलदायी माना जाता है। इस समय किसी धार्मिक व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराना और आशीर्वाद लेना भी अत्यंत शुभ माना गया है।
साथ ही, ग्रहण के समय भगवान का ध्यान करना और उनकी पूजा-अर्चना करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस समय हवन करना भी अत्यधिक पुण्यदायी माना गया है। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।
ग्रहण के समय खाने-पीने के नियम
ग्रहण के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए। जैसे ग्रहण शुरू होने के बाद कुछ भी खाना-पीना वर्जित माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस समय में खाना विषाक्त हो जाता है और इसके सेवन से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। जब चन्द्र ग्रहण हो, तो चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद ही भोजन करना चाहिए। इसी प्रकार, सूर्य ग्रहण के दौरान भी सूर्य के दर्शन करने के बाद ही भोजन करना उचित माना गया है। इसके बाद सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है।
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गर्भवती स्त्रियों के लिए विशेष सावधानियां
ग्रहण के समय गर्भवती स्त्रियों के लिए विशेष रूप से सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि ग्रहण के दौरान किए गए किसी भी गलत कार्य का असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ सकता है। इसलिए, गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के दौरान किसी भी प्रकार का शारीरिक श्रम नहीं करना चाहिए और उन्हें भगवान का भजन या पाठ करना चाहिए। इस दौरान गोदी में नारियल रखकर बैठने की परंपरा भी है, ताकि बच्चे पर ग्रहण का कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े। इस दौरान कैंची, चाकू या कोई नुकीली चीज़ों का उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे गर्भस्थ शिशु के शरीर के किसी अंग पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
नहाने और गंगा स्नान का महत्व
ग्रहण समाप्त होने के बाद पवित्र नदी, विशेष रूप से गंगा में स्नान करने की मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि गंगा स्नान से सारे पाप धुल जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। ग्रहण के समय गंगा स्नान करने से व्यक्ति की आत्मा शुद्ध हो जाती है और उसे आशीर्वाद मिलता है। इसके बाद, भगवान की पूजा करके प्रसाद ग्रहण करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
ग्रहण के समय का ध्यान और साधना
ग्रहण का समय साधना और आत्ममंथन का भी समय होता है। इस दौरान मंत्रों का जाप, ध्यान और भजन करने से आत्मा की शुद्धि होती है और मन की शांति प्राप्त होती है। ग्रहण के समय विशेष रूप से “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” जैसे मंत्रों का जाप करने से अद्वितीय लाभ प्राप्त होता है
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