धनतेरस का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। यह दिन देवी लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि के पूजन का विशेष महत्व रखता है। इस दिन को ‘धन त्रयोदशी’ भी कहा जाता है, और यह दीपावली उत्सव की शुरुआत का प्रतीक होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन नए बर्तन, आभूषण, और अन्य मूल्यवान वस्तुओं की खरीदारी से समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है।
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धनतेरस की पूजा विधि
धनतेरस के दिन मिट्टी का दीपक बनाना शुभ माना जाता है। जब शाम को घर के सभी सदस्य भोजन कर लें, तब घर की स्त्रियां दीपक की पूजा करती हैं। दीपक में तेल डालकर चार बत्तियाँ लगाई जाती हैं और उसमें एक कोड़ी में छेद कर के रख दिया जाता है। पूजा में रोली, चावल, चार सुहाली, गुड़, फूल, और धूप का उपयोग किया जाता है। दीपक के चार फेरे देकर उसे उठाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है। अगले दिन, सुबह उस दीपक से कोड़ी निकालकर सुरक्षित रखी जाती है, ताकि वह समृद्धि का प्रतीक बनी रहे।
इस दिन, पुराने बर्तन बदलने की भी परंपरा है। अगर आपके घर में पुराना बर्तन है, तो उसे देकर नया बर्तन लेना शुभ माना जाता है। चांदी के बर्तन खरीदना और भी फलदायी माना जाता है, क्योंकि यह लक्ष्मी जी की कृपा का प्रतीक है।
धनतेरस की पौराणिक कथा
धनतेरस से जुड़ी एक लोकप्रिय पौराणिक कथा है। एक दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी मृत्यु लोक में भ्रमण करने आए। भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी को चेतावनी दी कि वह दक्षिण दिशा में न देखें, क्योंकि इससे अनिष्ट होने की संभावना थी। परंतु, जिज्ञासावश लक्ष्मीजी ने उनकी बात नहीं मानी और दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ीं। वहां उन्हें सरसों का खेत और गन्ने के खेत मिले, जिनसे वह मोहित हो गईं। गन्ने का रस निकालकर पीने लगीं, और इस प्रकार उन्होंने भगवान विष्णु की आज्ञा का उल्लंघन किया।
जब भगवान विष्णु लौटे और यह सब देखा, तो वे क्रोधित हो गए और लक्ष्मीजी को शाप दिया कि वह अगले 12 वर्षों तक किसान के घर में रहकर उसकी सेवा करेंगी। लक्ष्मीजी ने किसान के घर जाकर उसे धन-धान्य से संपन्न कर दिया। 12 वर्ष के बाद जब भगवान विष्णु लक्ष्मीजी को लेने आए, तब किसान ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। भगवान ने किसान से कहा कि लक्ष्मीजी चंचल हैं और किसी के पास स्थायी रूप से नहीं रुक सकतीं, इसलिए उन्हें जाने देना उचित होगा। परंतु, किसान ने हठपूर्वक कहा कि वह लक्ष्मीजी को नहीं जाने देगा।
भगवान ने किसान को समझाया कि अगर वह लक्ष्मीजी को रोकना चाहता है, तो उसे धनतेरस के दिन घर को साफ-सुथरा रखना होगा और घी का दीपक जलाना होगा। लक्ष्मीजी ने कहा कि वह किसान के घर आएंगी, लेकिन उसे वह दिखाई नहीं देंगी। किसान ने लक्ष्मीजी की आज्ञा का पालन किया, और उसके घर में समृद्धि की वर्षा हो गई।
इसके बाद से किसान हर साल धनतेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा करने लगा, और देखते ही देखते यह परंपरा पूरे गांव में फैल गई। इस प्रकार, धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजन की परंपरा आरंभ हुई।
धनतेरस पर अपमृत्यु टालने का उपाय
धनतेरस के दिन अपमृत्यु (अचानक मृत्यु या दुर्घटना) से बचने के लिए यमराज की पूजा का भी विधान है। इस दिन परिवार के सभी सदस्य दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके दीप जलाते हैं और निम्न मंत्र का उच्चारण करते हैं:
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् पूर्यजः प्रीयतां मम ॥
इसका अर्थ है: “हे यमराज, जो काल में पाश और दण्ड धारण करते हैं, मैं आपको त्रयोदशी के दिन दीपदान कर रहा हूँ। कृपया मुझे अकाल मृत्यु और दुर्घटनाओं से बचाएं।”
इस मंत्र का जाप करके दीपदान करने से परिवार की सुरक्षा और कल्याण की कामना की जाती है। धनतेरस का यह अद्भुत पर्व न केवल भौतिक समृद्धि, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शांति का भी प्रतीक है।
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