हिन्दू धर्म में देवी दुर्गा को शक्ति और ऊर्जा का परम स्रोत माना गया है। पुराणों और शास्त्रों में माँ दुर्गा के 9 रूपों का विस्तृत वर्णन मिलता है, जो अनन्त शक्ति, साहस और धैर्य का प्रतीक हैं। इन नौ रूपों की कथाएँ हमें न केवल देवी दुर्गा की महिमा से अवगत कराती हैं, बल्कि धर्म की रक्षा के लिए उनके असाधारण पराक्रम को भी दर्शाती हैं। आइए, इन 9 रूपों के प्रेरणादायक किस्सों को विस्तार से जानते हैं:
इसे जरूर पढ़ें: श्री दुर्गा चालीसा
महाकाली: समय के अंत में प्रलय और दुर्गा का रूप
एक समय संसार में प्रलय का भयावह दृश्य था। हर ओर केवल जल था और जीवन का कोई निशान नहीं था। भगवान विष्णु गहरी निद्रा में थे, और उनके नाभि से एक सुंदर कमल का फूल उत्पन्न हुआ। इस कमल से सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी का जन्म हुआ। वहीं, भगवान विष्णु के कानों से मैल के रूप में दो भयंकर राक्षस मधु और कैटभ उत्पन्न हुए। इन दोनों राक्षसों ने ब्रह्माजी को देखते ही उन पर आक्रमण कर दिया, क्योंकि उनके सिवा कुछ और नहीं दिख रहा था।
ब्रह्माजी अत्यंत भयभीत हो गए और भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु की निद्रा भंग हुई, और उनकी आँखों में निवास करने वाली महामाया लोप हो गई। इसके बाद मधु और कैटभ ने विष्णु से युद्ध किया। यह युद्ध पाँच हजार वर्षों तक चलता रहा। तब महामाया ने महाकाली का रूप धारण कर दोनों राक्षसों की बुद्धि को भ्रमित कर दिया। वे अपने आप विष्णुजी को वरदान देने के लिए तैयार हो गए। भगवान विष्णु ने उनसे उनकी मृत्यु का वरदान माँगा, और इस प्रकार दोनों दैत्यों का अंत हो गया।
महालक्ष्मी: महिषासुर के अंत की कहानी
महिषासुर नामक एक अत्याचारी राक्षस ने पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। उसने समस्त राजाओं को हराकर अपने अधीन कर लिया और देवताओं पर आक्रमण कर दिया। सभी देवता अपने जीवन की रक्षा के लिए भगवान विष्णु और शिव की शरण में गए। उनकी स्तुति से महालक्ष्मी का अवतार हुआ, जिन्होंने महिषासुर को युद्ध में पराजित किया और देवताओं को उनका खोया हुआ स्वर्गलोग वापस दिलाया। महालक्ष्मी के इस अवतार ने देवताओं के साहस और आस्था को पुनर्जीवित किया।
इसे जरूर पढ़ें: स्वस्तिक, 9 निधियाँ और ऋद्धि-सिद्धि का महत्व
चामुण्डा: शुम्भ-निशुम्भ के अहंकार का अंत
शुम्भ और निशुम्भ दो शक्तिशाली राक्षस थे, जिन्होंने पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग पर आक्रमण कर सब कुछ जीत लिया। उनकी शक्ति और क्रूरता से सभी देवता भयभीत थे। वे भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना करने लगे। विष्णु के शरीर से एक अद्भुत ज्योति प्रकट हुई, जो अत्यंत सुंदर और आकर्षक थी। यही ज्योति माँ चामुण्डा के रूप में प्रकट हुईं।
शुम्भ और निशुम्भ ने देवी के सौंदर्य पर मोहित होकर उन्हें विवाह का प्रस्ताव भेजा। देवी ने कहा कि वह उसी से विवाह करेंगी जो उन्हें युद्ध में पराजित करेगा। इसके बाद युद्ध शुरू हुआ। शुम्भ-निशुम्भ ने अपने सेनापति धूम्राक्ष को भेजा, जिसे देवी ने मार गिराया। फिर चण्ड और मुण्ड को भी देवी ने परास्त किया। रक्तबीज नामक असुर, जिसके शरीर से गिरने वाली रक्त की बूँद से एक नया वीर पैदा हो जाता था, उसे भी देवी ने अपनी चमत्कारी शक्ति से हराया। अंत में शुम्भ और निशुम्भ को भी माँ चामुण्डा ने पराजित कर उनका वध कर दिया।
योगमाया: श्रीकृष्ण की रक्षक
जब कंस ने वासुदेव और देवकी के छः पुत्रों का वध कर दिया, तब सातवें गर्भ में शेषनाग के अवतार बलरामजी आए। आठवें गर्भ में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उसी समय, गोकुल में योगमाया का जन्म हुआ। वासुदेवजी ने श्रीकृष्ण को गोकुल में यशोदाजी के पास छोड़ दिया और योगमाया को मथुरा ले आए। जब कंस ने योगमाया को मारने की कोशिश की, तो वह उसके हाथ से छूटकर आकाश में चली गईं और देवी का रूप धारण कर लिया। योगमाया ने ही आगे चलकर भगवान श्रीकृष्ण को कंस और अन्य राक्षसों से बचाया।
रक्तदन्तिका: वैप्रचिति असुर का अंत
एक समय वैप्रचिति नामक असुर ने पृथ्वी और स्वर्ग के जीवों को कष्ट में डाल दिया। उसके अत्याचार से देवताओं का जीवन दूभर हो गया। देवताओं और पृथ्वीवासियों ने माँ दुर्गा की प्रार्थना की, और देवी ने रक्तदन्तिका के रूप में अवतार लिया। इस रूप में, उन्होंने असुरों का रक्तपान किया और उन्हें पराजित कर दिया। उनकी विजय के बाद उन्हें रक्तदन्तिका कहा जाने लगा।
इसे जरूर पढ़ें: मां दुर्गा के 108 नाम
शाकुम्भरी: सूखे का अंत करने वाली देवी
एक समय ऐसा आया जब पृथ्वी पर सौ वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। सूखे के कारण हर ओर हाहाकार मच गया। पेड़-पौधे और वनस्पतियाँ सूख गईं। जीवन संकट में आ गया। मुनियों ने देवी की उपासना की, और माँ दुर्गा ने शाकुम्भरी के रूप में अवतार लिया। उनकी कृपा से पृथ्वी पर फिर से जल की वर्षा हुई और हरियाली लौट आई। शाकुम्भरी देवी ने सभी जीवों और वनस्पतियों को जीवनदान दिया।
दुर्गा देवी: दुर्गम राक्षस का संहार
दुर्गम नामक राक्षस ने तीनों लोकों में भयंकर आतंक मचा रखा था। उसने देवताओं, मनुष्यों और पाताल के निवासियों को असीमित कष्ट दिए। उसकी शक्तियों से हाहाकार मचा हुआ था। तब माँ दुर्गा ने अवतार लिया और दुर्गम राक्षस का संहार कर पृथ्वीवासियों को इस विपत्ति से मुक्ति दिलाई। उनके इस पराक्रम के कारण उनका नाम “दुर्गा देवी” पड़ा।
इसे जरूर पढ़ें: निर्जला एकादशी: व्रत और कथा
भ्रामरी: देव पत्नियों की रक्षक
अरुण नामक असुर ने देव पत्नियों के सतीत्व को नष्ट करने का घिनौना प्रयास किया। भयभीत देव पत्नियाँ माँ दुर्गा की शरण में गईं। उनकी प्रार्थना पर माँ दुर्गा ने भ्रामरी का रूप धारण किया और भौंरों के रूप में असुर का संहार कर दिया। भ्रामरी देवी ने अपनी शक्ति से देवताओं की पत्नियों की रक्षा की और न्याय की पुनर्स्थापना की।
चण्डिका: चण्ड और मुण्ड का अंत
चण्ड और मुण्ड दो भयंकर राक्षस थे, जिन्होंने पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। उनके अत्याचार से त्रस्त होकर देवताओं ने माँ दुर्गा की आराधना की। माँ दुर्गा ने चण्डिका के रूप में अवतार लिया और चण्ड और मुण्ड का वध कर देवताओं को उनका खोया हुआ साम्राज्य वापस दिलाया।
माँ दुर्गा के ये 9 रूप हमें साहस, धर्म और शक्ति के महत्व को समझाते हैं। वे हमें सिखाते हैं कि जब भी धर्म और सत्य पर संकट आता है, माँ दुर्गा अपने विभिन्न रूपों में अवतरित होकर संकट को दूर करती हैं और संसार को पुनः संतुलित करती हैं। उनके ये रूप मानवता के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत रहेंगे।
इसे जरूर पढ़ें: पंच-देवों की पूजा और हिन्दू धर्म के मुख्य नियम
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |
Leave a Reply