गंगा दशहरा: कथा और पूजा विधि

गंगा दशहरा: कथा और पूजा विधि

गंगा दशहरा हर साल जेठ सुदी दशमी को मनाया जाता है। यह दिन गंगा नदी के महत्व और उसकी पवित्रता को याद करने का एक विशेष अवसर है। इस दिन श्रद्धालु गंगा में स्नान कर उसके प्रति अपनी भक्ति प्रकट करते हैं।

पूजा की विधि

गंगा दशहरे के दिन प्रातःकाल गंगा जी में स्नान करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। स्नान के बाद गंगाजी की पूजा की जाती है, जिसमें निम्नलिखित सामग्री शामिल होती है:

  • दूध और बताशे: गंगा में दूध और बताशे चढ़ाए जाते हैं।
  • जल, रोली, चावल: इन सामग्रियों का उपयोग गंगाजी की पूजा में किया जाता है।
  • मौली, नारियल, दक्षिणा: नारियल और दक्षिणा का चढ़ावा दिया जाता है।
  • दीया और धूप: पूजा में दीया जलाकर और धूप दिखाकर गंगा जी का आह्वान किया जाता है।

चूरमा और पूड़ी का भोग

गंगा दशहरे के दिन, घर के सभी पुरुषों और बेटों की संख्या के अनुसार सवा सेर आटे का चूरमा और पूड़ी बनानी चाहिए। इस चूरमे और पूड़ी को हनुमान जी की पूजा कर उन्हें भोग लगाया जाता है। पूजा के बाद, इस भोग को अपने नौकरों और ब्राह्मणों में बांट दिया जाता है। इसमें से रात को कोई भी बासी न रखें और घर का कोई भी सदस्य उसमें से न खाए। चूरमा और पूड़ी का एक अलग से तैयार किया गया हिस्सा खाने के लिए रखा जा सकता है।

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गंगावतरण की कथा

गंगा दशहरा का महत्व गंगावतरण की कथा से गहराई से जुड़ा हुआ है।

राजा सगर और उनका वंश

प्राचीन काल में अयोध्या में राजा सगर का राज था। राजा सगर की दो रानियाँ थीं: केशिनी और सुमति। केशिनी से उन्हें एक पुत्र अंशुमान प्राप्त हुआ, जबकि सुमति के साठ हजार पुत्र थे।

अश्वमेध यज्ञ

एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ की पूर्ति के लिए उन्होंने एक घोड़ा छोड़ने का निर्णय लिया। लेकिन, इंद्र ने यज्ञ को बाधित करने के लिए उस घोड़े को चुरा लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।

राजा सगर के पुत्रों की खोज

राजा सगर ने अपने साठ हजार पुत्रों को यज्ञ का घोड़ा खोजने भेजा। वे घोड़े को खोजते-खोजते कपिल मुनि के आश्रम पहुँचे और वहाँ घोड़ा बंधा पाया। लेकिन, जब राजा के पुत्रों ने कपिल मुनि को चोर कहकर पुकारा, तो कपिल मुनि की समाधि टूट गई और उन्होंने क्रोध में आकर सभी साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया।

अंशुमान की तपस्या

जब अंशुमान अपने भाइयों को खोजते हुए वहाँ पहुंचे, तो उन्हें गरुड़ ने बताया कि यदि वे अपने भाइयों की मुक्ति चाहते हैं, तो उन्हें गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाना होगा। अंशुमान ने पिता की आज्ञा मानकर घोड़े के साथ यज्ञ में वापस लौटकर राजा सगर को सब वृत्तांत सुनाया।

गंगा लाने की कोशिशें

राजा सगर की मृत्यु के बाद, अंशुमान ने गंगाजी को धरती पर लाने के लिए कठोर तपस्या की, लेकिन वह असफल रहे। इसके बाद, उनके पुत्र दिलीप ने भी तपस्या की, लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली।

भगीरथ की तपस्या

अंत में, दिलीप के पुत्र भगीरथ ने गंगाजी को पृथ्वी पर लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। तप करते-करते कई वर्ष बीत गए, अंततः ब्रह्माजी प्रसन्न हुए और गंगाजी को धरती पर लाने का वरदान दिया।

गंगा का वेग

अब समस्या यह थी कि ब्रह्माजी के कमंडल से गंगा के वेग को धरती पर कौन संभालेगा। ब्रह्माजी ने बताया कि भगवान शिव के अलावा किसी में यह शक्ति नहीं है। इसलिए, भगीरथ को भगवान शिव से प्रार्थना करनी होगी।

शिव की आराधना

भगीरथ ने अपने एक अँगूठे पर खड़ा होकर भगवान शिवजी की तपस्या की। भागीरथ की कठोर तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में संभालने के लिए तैयार हो गए। जब गंगाजी देवलोक से पृथ्वी की ओर बढ़ीं, तब शिव जी ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेट लिया।

गंगा का जनुपुत्री बनना

गंगाजी को जटाओं से मुक्त करने के लिए भगीरथ ने पुनः प्रार्थना की। अंततः, शिव जी ने गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त किया। इस प्रकार, गंगाजी हिमालय की घाटियों में कलकल निनाद करते हुए मैदान की ओर बढ़ीं।

ऋषि जनु और गंगा

गंगाजी के मार्ग में ऋषि जनु का आश्रम था। ऋषि ने गंगाजी को पी लिया, लेकिन भगीरथ की प्रार्थना करने पर उन्होंने गंगा को पुनः जाँघ से बाहर निकाल दिया। तब से गंगा जनुपुत्री या जाह्नवी कहलाने लगीं।

गंगा का मोक्ष

गंगाजी ने आगे बढ़ते हुए कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचकर सागर के साठ हजार पुत्रों के भस्म अवशेषों को तारकर मुक्त किया। इस पर ब्रह्माजी ने प्रकट होकर भगीरथ की तपस्या और सागर के पुत्रों के अमर होने का वरदान दिया। उन्होंने कहा कि तुम्हारे नाम पर गंगाजी का नाम भागीरथी होगा।

इस प्रकार, गंगा दशहरा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह हमें भक्ति, तपस्या और त्याग का महत्व भी सिखाता है। गंगा जी की पवित्रता और उनके जल में स्नान करने से मनुष्य को पवित्रता, शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इस दिन, भक्त गंगा जी की पूजा करते हैं, उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं और इस पावन नदी के माध्यम से अपने पापों का प्रक्षालन करते हैं। गंगा दशहरा एक ऐसा पर्व है जो हमें याद दिलाता है कि जैसे भगीरथ ने कठिन तप से गंगा को धरती पर लाने का कार्य किया, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना करके अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की प्रेरणा लेनी चाहिए।

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डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |

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