गृह-प्रवेश

गृह-प्रवेश

गृह-प्रवेश की परंपरा भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखती है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नए घर में प्रवेश करने का एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिसमें देवी-देवताओं, पूर्वजों और पूरे परिवार का आशीर्वाद लिया जाता है। इसका उद्देश्य नए घर में सकारात्मक ऊर्जा, शांति और समृद्धि का प्रवेश सुनिश्चित करना है। गृह-प्रवेश का आयोजन विशेष विधियों और रीति-रिवाजों के साथ किया जाता है, जिसमें पंडितजी द्वारा हवन और पूजा-पाठ प्रमुख होते हैं।

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जब कोई नया घर बनाया या खरीदा जाता है, तो गृह-प्रवेश से पहले घर की शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा के लिए पूजा-पाठ और हवन करवाया जाता है। इस पूजा की शुरुआत हवन और वास्तुशास्त्र की पूजा से होती है। हवन से पहले ही पंडितजी को पाँच-सात दिन पहले बुलाकर वास्तुशास्त्र के अनुसार पूजन और जाप करवाया जाता है। वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करना इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह मान्यता है कि इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।

हवन के दिन से एक रात पहले, एक और विशेष अनुष्ठान किया जाता है जिसे “रतजगा” कहा जाता है। इस रात को जागरण कर परिवार के सदस्य पूजा की तैयारी करते हैं और दीवार पर नारियल की तरह का एक विशेष प्रतीक “थापा” बनाया जाता है। थापे का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है, जो घर में शुभता और देवी-देवताओं की कृपा को आकर्षित करता है।

थापा लगाना गृह-प्रवेश की एक अत्यंत महत्वपूर्ण परंपरा होती है। यह एक धार्मिक प्रक्रिया होती है जिसमें विभिन्न सामग्रियों का उपयोग कर थापा बनाया जाता है। थापे के आगे चार बर्तन रखे जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक में अलग-अलग सामग्री रखी जाती है—पहले बर्तन में गेहूँ, दूसरे में मैदा, तीसरे में बेसन और चौथे में चावल। इन सामग्रियों के साथ ही ब्लाउज पीस और रुपये भी रखे जाते हैं। यह सामग्री समृद्धि और घर की सम्पन्नता का प्रतीक मानी जाती है।

इन बर्तनों के अलावा, एक थाली में मेंहदी, रोली और मैदा रखा जाता है, जिससे थापा बनाया जाता है। हल्दी के साथ चावल पीसकर एक मिश्रण तैयार किया जाता है, और इस मिश्रण से थापे को बनाया जाता है। थापा लगाने की प्रक्रिया में मेंहदी और रोली का उपयोग किया जाता है, जो थापे पर बनाई गई लाइनों पर टिक्की के रूप में लगाई जाती है।

रतजगा की रात को घर का सबसे बड़ा पुरुष सीधे हाथ से दीवार पर मेंहदी का थापा लगाता है। यह एक विशेष प्रक्रिया होती है, जिसे बड़ी सावधानी और धार्मिकता के साथ किया जाता है। सुबह होते ही थापे पर घर के बड़े पुरुष द्वारा घी का थापा लगाया जाता है। घी का थापा लगाने के बाद सभी देवी-देवताओं और पूर्वजों के नाम का स्मरण कर किया जाता है, ताकि उनकी कृपा और आशीर्वाद घर पर बना रहे।

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गृह-प्रवेश के दिन हवन से पहले घर की ननद, भाई और भाभी के गठजोड़ा बाँधती हैं। गठजोड़ा बाँधना शुभ संकेत माना जाता है, जो परिवार के एकता और स्नेह को दर्शाता है। जब भाभी मंदिर से पानी की दोगड लेने जाती है, तब भाई हाथ में एक मिट्टी के सकोरे में दही लेकर साथ चलता है। भाभी सिर पर ओढ़नी ओढ़कर दोगड रखती है और दोनों मंदिर जाते हैं। मंदिर से पानी लेने के समय पारंपरिक गीत गाए जाते हैं और वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं, जिससे माहौल और भी आनंदमय हो जाता है।

जब भाभी घर के द्वार पर आती है, तब घर के प्रवेश द्वार पर घर की बहन और ननद बंधाई का नेग माँगती हैं। यह एक परंपरा होती है, जहाँ घर में प्रवेश से पहले द्वार पर विशेष पारंपरिक वस्त्र बाँधे जाते हैं। इस प्रक्रिया को द्वार रुकाई भी कहा जाता है, जिसमें नेग दिया जाता है। इसके बाद प्रवेश-द्वार के दोनों ओर सतिया (स्वस्तिक चिन्ह) बनाया जाता है, जिसे शुभ और मंगलकारी माना जाता है।

घर में प्रवेश करने के बाद भाभी सबसे पहले रसोई में जाकर हाथ जोड़ती है, जो घर की समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद, पति-पत्नी दोनों मिलकर हवन के लिए बैठते हैं। हवन की अग्नि को पवित्र माना जाता है, और इसमें घी, हवन सामग्री और जड़ी-बूटियों को समर्पित किया जाता है। यह हवन घर की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर उसे सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। हवन समाप्त होने पर घर के सभी बड़े-बुजुर्ग और परिवार के सदस्य नवविवाहित जोड़े के माथे पर तिलक करते हैं।

तिलक की यह परंपरा नए घर में प्रवेश करने वाले दंपति के लिए शुभ मानी जाती है। इसके बाद, नवविवाहिता बहू अपने से बड़ी सभी औरतों और ननदों के पैर छूती है। यह एक सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक होता है, जिससे परिवार में स्नेह और आदर का संबंध मजबूत होता है।

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पूरे अनुष्ठान के समाप्त होने के बाद, परिवार के लोग ब्राह्मणों को आदरपूर्वक भोजन कराते हैं। ब्राह्मणों को भोजन कराना शुभ माना जाता है, और उनके आशीर्वाद से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है और उन्हें विदा किया जाता है। यह अंतिम विधि गृह-प्रवेश की संपूर्णता और धार्मिकता का प्रतीक होती है।

डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |

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