अर्थात: क्रोध से मनुष्य की मति, अर्थात बुद्धि, का नाश हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति मुर्खता की ओर अग्रसर हो जाता है, उसकी सोचने-समझने की शक्ति मंद पड़ जाती है। बुद्धि का नाश हो जाने पर, व्यक्ति अक्सर स्वयं ही अपना विनाश कर बैठता है।
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।
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भगवान श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन और गुस्से पर विजय
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के इस श्लोक में महत्वपूर्ण शिक्षा दी, जो न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि हर व्यक्ति के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझा रहे हैं कि कोई भी युद्ध केवल शारीरिक ताकत से नहीं जीता जा सकता। केवल बाहरी दुश्मनों से लड़कर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती, जब तक कि आप अपने भीतर के दुश्मनों को नहीं हराते। इन आंतरिक दुश्मनों में सबसे बड़ा और विनाशकारी दुश्मन है—क्रोध।
क्रोध, इंसान की सोचने-समझने की शक्ति को नष्ट कर देता है। जब हमें गुस्सा आता है, तो हम सबसे पहले अच्छे-बुरे का विवेक खो देते हैं। हम सामने वाले के सम्मान की परवाह किए बिना कुछ भी बोल जाते हैं, या फिर ऐसा कदम उठा लेते हैं जिससे हमें पछतावे के सिवा कुछ नहीं मिलता। क्रोध आने पर, हम खुद के ही दुश्मन बन जाते हैं। यह व्यक्ति की शारीरिक ताकत को कम कर देता है, आत्म-नियंत्रण को भंग करता है, और मन की शांति को छीन लेता है।
क्रोध, बड़े से बड़े वीरों की शक्ति को एक क्षण में समाप्त कर सकता है। महान ज्ञानियों के ज्ञान को नष्ट कर सकता है और जीवनभर की कमाई हुई प्रतिष्ठा को पल भर में चकनाचूर कर सकता है। इसलिए, भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही संदेश दिया कि सबसे पहले अपने क्रोध को जीतना सीखें। जब आप अपने क्रोध पर विजय प्राप्त कर लेते हैं, तभी आप जीवन की बाकी लड़ाइयों में सफल हो सकते हैं। बाहरी युद्ध से पहले, यह आंतरिक युद्ध अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
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क्रोध का नाशक प्रभाव और उसे नियंत्रित करने के उपाय
अब सवाल यह उठता है कि गुस्से को नियंत्रित कैसे किया जाए? इसका उत्तर है कि गुस्से को नियंत्रित करने के लिए हमें अपने मन और मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना होगा, जैसे हम अपने अन्य काम करते हैं। हमें अपने दिमाग को यह संदेश देना होगा कि चाहे कुछ भी हो जाए, चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, हमें अपना आपा नहीं खोना है। दूसरों की स्थिति में खुद को रखकर सोचने की आदत डालें। इससे हम उनके दृष्टिकोण को समझ पाएंगे और हमारे अंदर सहानुभूति का विकास होगा, जो गुस्से को शांत करने में मददगार होगा।
अगर कभी किसी से कोई गलती हो भी जाए जिससे हमारा नुकसान हुआ हो, तब भी हमें पूरी कोशिश करनी चाहिए कि गुस्से की बजाय शांति और धैर्य से सामने वाले को उसकी भूल का एहसास कराएं। शांति से कही गई बातें और धैर्य से किए गए कार्य अधिक प्रभावशाली होते हैं और परिणामस्वरूप हमारी प्रतिष्ठा भी बनी रहती है।
निरंतर छोटे-छोटे प्रयासों से स्वयं को बदलना
यह सच है कि एक दिन में कोई भी खुद को पूरी तरह नहीं बदल सकता। लेकिन अगर हम हर दिन छोटे-छोटे संकल्प लें और सही दिशा में जीवन को ले जाएं, तो एक दिन हम खुद को पूरी तरह से बदलकर एक बेहतर इंसान जरूर बना सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण का यह मार्गदर्शन हमें अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई—आंतरिक शत्रुओं से लड़ने और उन्हें हराने—के लिए प्रेरित करता है। जब हम क्रोध पर विजय प्राप्त कर लेंगे, तब ही हम जीवन में सच्ची सफलता का स्वाद चख पाएंगे।
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डिस्क्लेमर: इस लेख में कोई जानकारी नही दी गई है बल्कि धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक ग्रंथों, व्यक्तिगत चिंतन और मनन के द्वारा एक सोच प्रस्तुत की गई है। प्रत्येक व्यक्ति की सोच इस संबंध मे अलग हो सकती है adhyatmikaura.in प्रत्येक व्यक्ति एवं समाज की सोच का सम्मान करता हैं। व्यक्ति को इस लेख से जुड़ी जानकारी अपने जीवन मे उतारने से पहले अपने विवेक का पूर्ण इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए।
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