हरिहरनाथ मंदिर की महिमा अद्वितीय है, और यह क्षेत्र अपने अनेक मंदिरों और आध्यात्मिक महत्व के लिए विख्यात है। गंडकी नदी के दोनों किनारों पर छोटे-बड़े 50 से अधिक मंदिर हैं, जिनमें हरिहरनाथ मंदिर विशेष स्थान रखता है। इस मंदिर में भगवान शिव (हर) और विष्णु (हरि) की संयुक्त प्रतिमा स्थापित है, जो अत्यंत प्राचीन और विशिष्ट मानी जाती है। भारत में ऐसी कोई दूसरी मूर्ति नहीं है, जो इस अनूठी परंपरा को दर्शाती हो।
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विशेष शिवलिंग और भगवान विष्णु की विलक्षण मूर्ति

मंदिर में स्थित शिवलिंग भी विशेष है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वाममार्गी साधकों के मंदिरों में ऐसे शिवलिंग पाए जाते हैं। शिवलिंग से जुड़ी विष्णु की मूर्ति भी विलक्षण है, जिसमें नाक चपटी और पैर कटा हुआ है। यह कटे हुए पैर प्राचीनता का संकेत देते हैं।
पौराणिक कथा
कहा जाता है कि महर्षि वेदशिरा गंगा के उत्तरी तट पर तपस्यालीन थे, जब देवराज इंद्र ने उनकी तपस्या भंग करने के लिए एक अप्सरा भेजी। अप्सरा की चंचलता से क्रोधित होकर महर्षि ने उसे शाप दिया कि वह नदी के रूप में बहती रहेगी। तब अप्सरा ने मुनि से शाप-विमोचन का उपाय पूछा, और मुनि ने उसे आशीर्वाद दिया कि भगवान विष्णु उसके उदर में शालिग्राम के रूप में वास करेंगे। इसी पवित्र गंडकी नदी को शालिग्रामी के नाम से भी जाना जाता है। यह वह नदी है, जहाँ विष्णु ने गज (हाथी) की रक्षा की थी।
पद्मपुराण में गंडकी नदी और शालिग्रामी क्षेत्र का विशेष उल्लेख मिलता है, जहाँ भगवान हरि और हर की पूजा होती है। यह क्षेत्र कुरुक्षेत्र और वाराह क्षेत्र की तरह पवित्र माना गया है। हरिहरनाथ मंदिर का विशेष महत्त्व इस संगम स्थल पर स्थित होने के कारण है, जहाँ गंगा और गंडकी का संगम होता है। इस स्थल को हरिहर क्षेत्र कहा जाता है।
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हरि और हर का महासम्मेलन
प्राचीन काल में हिंदू समाज में शैव और वैष्णव संप्रदायों के बीच मतभेद थे। शैव शिव (हर) के उपासक थे, जबकि वैष्णव विष्णु (हरि) की पूजा करते थे। मतभेद को समाप्त करने के लिए एक महासम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि हरि और हर वस्तुतः एक ही सर्वेश्वर के रूप हैं। इस महासम्मेलन में हरि और हर की संयुक्त प्रतिमा की स्थापना की गई, और यही प्रतिमा हरिहरनाथ मंदिर में प्रतिष्ठित है।
गज-ग्राह (हाथी और मगरमच्छ) युद्ध और मोक्ष की कथा

हरिहर क्षेत्र से जुड़ी एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा गज-ग्राह युद्ध की है। गजेंद्र नामक हाथी जब अपनी हस्तनियों के साथ नदी में स्नान कर रहा था, तो एक ग्राह (मगरमच्छ) ने उसका पैर पकड़ लिया। गजेंद्र और ग्राह के बीच कई वर्षों तक युद्ध चला, और जब गजेंद्र हारने लगा, तो उसने भगवान विष्णु का आह्वान किया। विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ग्राह का वध कर गजेंद्र का उद्धार किया। यही कारण है कि हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर हरिहरनाथ मंदिर में विशाल मेला लगता है, जहाँ लाखों श्रद्धालु भगवान हरि और हर की पूजा करते हैं।
तंत्र साधना का केंद्र
हरिहर क्षेत्र तंत्र साधना के लिए भी विख्यात है। इसे सिद्ध तंत्रपीठ माना जाता है, जहाँ वाममार्गी साधक साधना किया करते थे। गंडकी नदी के दक्षिण में बहने से इस स्थल को तांत्रिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। यहाँ स्थित नेपाली मंदिर और काली मंदिर भी वाममार्गियों के साधना केंद्र माने जाते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा मेला
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर हरिहर क्षेत्र में एक विशाल मेला लगता है, जिसे एशिया के सबसे बड़े पशु मेलों में से एक माना जाता है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु हरिहरनाथ मंदिर में जल अर्पण करते हैं और मोक्ष की कामना करते हैं। मेला और यह क्षेत्र, धार्मिक आस्था, पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है, जहाँ हरि और हर का अद्वितीय संगम एकता का संदेश देता है।
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महत्वपूर्ण जानकारियां – Information
State: Bihar
Country: India
Nearest City/Town: Sonepur
Best Season To Visit: Winter (October – December)
Temple Timings: Morning: 4:30 am – 9:00 pm
Photography: Allowed with temple’s permission
Entry Fees: Free
कैसे पहुचें – How To Reach
Road: Old Chhapra Patna Road, Barbatta, Sonepur, Bihar
Nearest Railway: Sonpur Junction railway station
Air: The nearest airport is Jay Prakash Narayan Airport
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