हिंदू धर्म में हवन का अत्यधिक महत्व है। भारत में किसी भी पूजा की समाप्ति पर, हर घर में हवन किया जाता है। चाहे कोई शुभ अवसर हो, त्योहार हो, या विशेष अनुष्ठान, हवन के माध्यम से पूजा का समापन किया जाता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, हवन किए जाने वाले स्थान की पवित्रता सदैव बनी रहती है। हवन की अग्नि के माध्यम से आसपास की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है, जिससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। ऐसा माना जाता है कि हवन करने से देवी-देवताओं का आशीर्वाद हमारे ऊपर बना रहता है, और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
हवन न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमारे जीवन और पर्यावरण को शुद्ध करने का एक तरीका भी है। इस कारण से, हर हिंदू धर्म से जुड़े व्यक्ति को हवन से संबंधित जानकारी अवश्य होनी चाहिए, ताकि वे इस पवित्र क्रिया का सही तरीके से पालन कर सकें और इसका पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकें।
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वेदी की स्थापना
- सबसे पहले एक चौकोर वेदी बनाएं।
- एक थाली में स्वस्तिक (सतिया) का चिह्न बीच में बनाएं।
- स्वस्तिक के बाएं ओर “ॐ” और दाएं ओर “श्रीः” अंकित करें।
- स्वस्तिक के केंद्र में दो सुपारियाँ रखें, जिन्हें कलावा या रोली से लपेटा गया हो।
- स्वस्तिक के नीचे नवग्रह के नौ वर्गाकार खाने बनाएं।
- वेदी के बाएं किनारे पर, सामने के कोण के पास एक लोटा रखें, जिसमें जल, गंगाजल, दूब, सुपारी और पुष्प डालें।
आचमन और प्रारंभिक पूजन
- एक गिलास में गंगाजल भरें और उसमें चम्मच डालें।
- बाएं हाथ से चम्मच पकड़ें और सीधी हथेली पर तीन बार जल डालकर आचमन करें। साथ में निम्नलिखित मंत्र बोलें:
- ॐ केशवाय नमः
- ॐ माधवाय नमः
- ॐ नारायणाय नमः
इसके बाद बाएं हाथ से चम्मच से जल लेकर दाएं हाथ को धो लें और ‘गोविन्दाय नमः’ मंत्र का उच्चारण करें।
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देवताओं का पूजन
- श्री गणेश और श्री गौरी की भावना के साथ सुपारियों का पूजन और प्रार्थना करें।
- वरुण देवता की पूजा के लिए कलश की पूजा करें। कलश के कंठ में मौली बाँधें और मध्य भाग पर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।
- कलश के नीचे घी का दीपक और धूप जलाएं।
- ॐकाराय नमः बोलकर “ॐ” की पूजा करें और श्रियै नमः बोलकर “श्री” की पूजा करें।
- नवग्रह के नौ खानों में नवग्रह की पूजा और प्रार्थना करें:
- ब्रह्मा, मुरारी, त्रिपुरान्तकारी
- भानुः शशी भूमि सुतो बुधश्च
- गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः
- सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु
हवन की तैयारी
- बनाई हुई वेदी को रंगों से सजाएं और चारों ओर जल का छिड़काव करें।
- एक कटोरी में घी और एक में जल भरकर रखें।
- धूप का दीपक बनाकर वेदी के बीच में रखें, उसमें कपूर रखकर प्रज्वलित करें।
- चारों ओर समिधाएँ लगाएं। अग्नि पूरी तरह जलने के बाद, घी की आहुतियाँ दें। क्रमशः मंत्र बोलें:
- ॐ प्रजापतये स्वाहा
- ॐ इन्द्राय स्वाहा
- ॐ अग्नये स्वाहा
- ॐ सोमाय स्वाहा
- ॐ अग्नये स्वाष्टकृते स्वाहा
- ॐ भूः स्वाहा इदं अग्नाये
- ॐ भुवः स्वाहा इदं वायवे
- ॐ स्वः स्वाहा इदं सोमाय
नवग्रह और गायत्री मंत्र से हवन
नवग्रह की हवन सामग्री से नौ आहुति दें। हर आहुति के साथ निम्न मंत्र बोलें:
- ॐ सूर्याय नमः स्वाहा
- ॐ चन्द्राय नमः स्वाहा
- ॐ भौमाय नमः स्वाहा
- ॐ बुधाय नमः स्वाहा
- ॐ गुरवे नमः स्वाहा
- ॐ शुक्राय नमः स्वाहा
- ॐ शनये नमः स्वाहा
- ॐ राहवे नमः स्वाहा
- ॐ केतवे नमः स्वाहा
इसके बाद गायत्री मंत्र का जाप करें और स्वाहा बोलते हुए आहुति दें:
- ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं…
- भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
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अन्य मंत्र और पूर्णाहुति
इच्छानुसार अन्य मंत्रों से हवन करें:
- ॐ भगवते वासुदेवाय नमः स्वाहा
- ॐ नमः शिवाय स्वाहा
- ॐ दुर्गायै नमः स्वाहा
अन्त में पूर्णाहुति दें। सभी उपस्थित जनों को इसमें शामिल करें। पूर्णाहुति के लिए निम्न मंत्र का उच्चारण करें:
- ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम्
पूर्णाहुति के लिए गोले का प्रयोग करना हो तो उसके चारों ओर पान के पत्ते लपेटकर कलावे से बाँध दें। इसके पहले गोले का मुँह खोलकर उसमें घी और सामग्री भरें।
आरती और प्रसाद वितरण
अंत में किसी भी प्रार्थना के साथ आरती करें, भगवान को भोग लगाएं और फिर प्रसाद का वितरण करें।
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