जीवितपुत्रिका व्रत (जिउतिया)

जीवितपुत्रिका व्रत (जिउतिया)

जीवितपुत्रिका व्रत, जिसे ‘जिउतिया’ व्रत भी कहते हैं, विशेष रूप से माताओं द्वारा अपने संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है और इसका महत्व पौराणिक कथाओं और धार्मिक परंपराओं में बहुत गहरा है। यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश, और नेपाल के तराई क्षेत्र में व्यापक रूप से मनाया जाता है। इस दिन माताएं अपने पुत्रों की लंबी आयु और समृद्ध जीवन के लिए कठोर उपवास करती हैं, जिससे उनकी संतानों की रक्षा हो सके और उन्हें सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिले।

इसे जरूर पढ़ें: रामेश्वरम: भारत के 4 धामों और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक

जीवितपुत्रिका व्रत का आरंभ सूर्योदय से पहले होता है। व्रत रखने वाली महिला पहले स्नान करती है, और फिर भगवान सूर्य नारायण की मूर्ति या प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराती है। इसके बाद भगवान सूर्य को विशेष रूप से बाजरा और चने से बने व्यंजन का भोग अर्पित किया जाता है। इस दिन माताएं किसी भी प्रकार के कटे हुए फल या शाक (सब्जी) नहीं खातीं, और न ही इन्हें काटने की अनुमति होती है। यह व्रत पूर्णतः निराहार और निर्जला होता है, जिसका अर्थ है कि पूरे दिन माताएं बिना अन्न और पानी के रहती हैं।

व्रत के समय भगवान सूर्य नारायण और भगवान विष्णु की पूजा धूप, दीप और नैवेद्य अर्पण के साथ की जाती है। व्रत के दौरान की गई पूजा का विशेष महत्व होता है, और पूजा के उपरांत भोग को प्रसाद के रूप में परिवार के सदस्यों में बांटा जाता है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से माताओं के उन बच्चों का जीवन सुरक्षित रहता है, जो अकाल मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। यह व्रत ‘मृतवत्सा दोष’ को दूर करने के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।

इसे जरूर पढ़ें: स्वस्तिक, 9 निधियाँ और ऋद्धि-सिद्धि का महत्व

पुराणों में इस व्रत की महिमा का वर्णन एक विशेष कथा के माध्यम से किया गया है। द्वारिकापुरी में भगवान कृष्ण का निवास था। वहां एक ब्राह्मण भी अपनी पत्नी के साथ निवास करता था। यह ब्राह्मण बड़ा ही धर्मनिष्ठ और तपस्वी था, परंतु उसकी एक पीड़ा थी—उसके सात पुत्र जन्म के बाद शीघ्र ही काल के गाल में समा गए। इस दुख ने ब्राह्मण और उसकी पत्नी को अत्यंत कष्ट में डाल रखा था। वह दिन-रात भगवान से प्रार्थना करते रहते थे, परंतु कोई समाधान नहीं मिल रहा था।

एक दिन अत्यधिक दुखी होकर ब्राह्मण भगवान कृष्ण के पास पहुंचे और कहा, “हे भगवान! आपके राज्य में रहते हुए भी मेरे सात पुत्रों की अकाल मृत्यु हो चुकी है। मेरे दुख का कारण क्या है? यदि आप सचमुच मेरे दुख को समाप्त करना चाहते हैं, तो कृपया इसका कोई उपाय बताएं।”

भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण की ओर करुणा से देखा और कहा, “हे ब्राह्मण! तुम्हारे दुख का कारण तुम्हारे परिवार पर लगा मृतवत्सा दोष है। इसका निवारण केवल सूर्य नारायण की पूजा और पुत्रजीवी व्रत के पालन से ही संभव है। इस व्रत को धारण करने से तुम्हारे होने वाले पुत्र की आयु बढ़ जाएगी।”

भगवान के आदेशानुसार, ब्राह्मण ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर पुत्रजीवी व्रत का पालन किया। व्रत के दौरान उन्होंने विशेष रूप से सूर्य नारायण की पूजा की और भोग अर्पित किए। ब्राह्मण और उसकी पत्नी सूर्यदेव के चरणों में गिरकर प्रार्थना करने लगे:

“सूर्यदेव विनती सुनो, पाऊँ दुख अपार, उम्र बढ़ाओ पुत्र की, कहता बारम्बार।”

उनकी करुण प्रार्थना सुनकर सूर्य नारायण का रथ वहीं रुक गया। सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर अपने गले से एक माला निकालकर ब्राह्मण के पुत्र के गले में डाल दी और आगे चल पड़े।

लेकिन थोड़ी ही देर में यमराज ब्राह्मण के पुत्र के प्राण लेने के लिए वहां पहुंचे। यमराज को देखकर ब्राह्मण और उसकी पत्नी अत्यधिक घबरा गए और भगवान कृष्ण से सहायता मांगने लगे। उन्होंने कहा, “हे भगवान! आपने कहा था कि हमारा पुत्र जीवित रहेगा, फिर यमराज उसके प्राण लेने क्यों आए हैं?”

भगवान कृष्ण ने तुरंत अपने सुदर्शन चक्र को बुलाया और ब्राह्मण से कहा, “उस माला को यमराज के ऊपर डाल दो।” जैसे ही ब्राह्मण ने माला को उठाया, यमराज डर के मारे वहां से भाग गए। परंतु यमराज की छाया माला पर पड़ी, जिससे वह छाया शनिदेव के रूप में प्रकट हुई और भगवान से प्रार्थना करने लगी।

भगवान कृष्ण ने शनिदेव की प्रार्थना को सुनकर उन्हें पीपल के वृक्ष पर निवास करने का आदेश दिया, और इस प्रकार शनिदेव पीपल के वृक्ष पर निवास करने लगे। ब्राह्मण का पुत्र जीवित हो गया और उसकी आयु बढ़ गई। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मण के सारे दुख समाप्त हो गए, और वह सुखपूर्वक अपने परिवार के साथ रहने लगा।

जीवितपुत्रिका व्रत का महत्व अत्यधिक है। यह व्रत न केवल माताओं के संतान की दीर्घायु के लिए किया जाता है, बल्कि यह व्रत उन माताओं के लिए भी अत्यंत फलदायी है, जिनके बच्चों की अकाल मृत्यु हो जाती है। इस व्रत के पालन से बच्चों के जीवन में आने वाले संकटों का नाश होता है और माता-पिता का जीवन खुशहाल होता है। व्रत करने वाली स्त्रियों का यह विश्वास होता है कि भगवान सूर्य और भगवान कृष्ण उनकी संतानों की रक्षा करेंगे और उन्हें लंबी उम्र प्रदान करेंगे।

जीवितपुत्रिका व्रत का पालन निष्ठा और श्रद्धा के साथ करने से व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता है और भगवान की कृपा प्राप्त करता है। इस व्रत की महिमा अपरंपार है, और जो भी इसे सच्चे हृदय से करता है, उसकी संतानें स्वस्थ, दीर्घायु और समृद्ध होती हैं।

इसे जरूर पढ़ें: श्री दुर्गा चालीसा

डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Follow Us On Social Media

भाग्य खुलने के गुप्त संकेत