कामदा एकादशी: पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति का व्रत

कामदा एकादशी: पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति का व्रत

कामदा एकादशी हिंदू धर्म में चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी के रूप में मनाई जाती है। यह व्रत अत्यंत फलदायक माना जाता है और कहा जाता है कि इसके पालन से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे समस्त कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि सांसारिक इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति भी करता है। इसे करने वाले भक्त को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, और अंत में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कामदा एकादशी की कथा विशेष रूप से गंधर्वों, नागों, और ऋषियों से जुड़ी है, जिससे इस व्रत की महिमा और भी बढ़ जाती है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किस प्रकार भक्ति और धर्म के पालन से व्यक्ति अपने पापों से मुक्ति पा सकता है, चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो।

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कामदा एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

प्राचीन काल में नागलोक नामक एक अद्भुत स्थान था, जहाँ पर नागों का राजा पुण्डरीक शासन करता था। उसका राज्य बहुत विशाल और सम्पन्न था। पुण्डरीक राजा बहुत ही विलासी प्रवृत्ति का था और उसकी सभा में अप्सराएँ, किन्नर, और गंधर्व नृत्य और गान करके उसका मनोरंजन करते थे। उसकी सभा हमेशा नृत्य और संगीत से गूंजती रहती थी, जहाँ विभिन्न कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते थे।

इसी सभा में एक गंधर्व ललित और उसकी पत्नी ललिता भी नृत्य और गायन करते थे। दोनों अपनी कला में बहुत निपुण थे और राजा की सभा में उनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण मानी जाती थी। एक दिन, ललित राजा पुण्डरीक की सभा में नृत्य कर रहा था। लेकिन नृत्य करते हुए अचानक उसे अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई। उसकी यादों में खो जाने के कारण ललित का ध्यान बँट गया और उसका नृत्य और गान अपनी लय और ताल से भटक गया।

इस बदलाव को वहाँ उपस्थित एक नाग, कर्कट ने तुरंत भांप लिया। कर्कट नाग ने राजा पुण्डरीक से इस बारे में कहा कि ललित का ध्यान नृत्य में नहीं है और वह अपनी पत्नी के बारे में सोच रहा है। राजा पुण्डरीक को यह बात बहुत बुरी लगी और वह क्रोध से भर गया। राजा ने गुस्से में आकर ललित को एक भयंकर शाप दे दिया।

राजा ने कहा, “तूने सभा में अपना कर्तव्य नहीं निभाया है, इसलिए मैं तुझे शाप देता हूँ कि तू अब एक राक्षस बनेगा।” और इस प्रकार, ललित गंधर्व एक भयंकर राक्षस में बदल गया।

राक्षस योनि का कष्ट

शापित ललित ने अपनी सुंदर गंधर्व योनि को खो दिया और एक भयानक राक्षस बन गया। उसका शरीर विकराल हो गया, उसकी सुंदरता विलीन हो गई, और अब वह भयानक और डरावना दिखने लगा। उसकी पत्नी ललिता भी इस शाप से बहुत दुखी हुई और वह भी अपने पति के साथ उन्मत्त हो गई। ललिता अपने पति के बिना विचलित रहने लगी और दोनों शापित दंपति लंबे समय तक दुख और पीड़ा में भटकते रहे।

ललित और ललिता ने सहस्रों वर्षों तक अलग-अलग लोकों में राक्षस योनि में भटकते हुए असहनीय कष्ट झेले। उनका जीवन अंधकारमय हो गया था और उन्हें कहीं भी शांति नहीं मिल रही थी। ललिता अपने पति के दुख से दुखी होकर हर समय उसकी मुक्ति के लिए प्रार्थना करती रहती थी।

मुनि श्रृंगी का आश्रम

भटकते-भटकते एक दिन ललित और ललिता विन्ध्याचल पर्वत के शिखर पर स्थित एक प्रसिद्ध मुनि श्रृंगी के आश्रम में पहुँचे। मुनि श्रृंगी अपने ज्ञान और तपस्या के लिए विख्यात थे और वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे। जब मुनि ने ललित और ललिता की दुखद स्थिति को देखा, तो उनके हृदय में उनके लिए करुणा जागृत हुई। मुनि ने उनसे उनके दुख का कारण पूछा, और ललिता ने अपने पति के शापित होने की सारी कथा सुनाई।

मुनि श्रृंगी ने उनकी कथा सुनी और उन्हें आश्वस्त किया कि भगवान विष्णु की कृपा से उनका शाप अवश्य दूर हो सकता है। मुनि ने उन्हें बताया कि चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत बहुत ही प्रभावशाली होता है। उन्होंने कहा, “यदि तुम चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे कामदा एकादशी कहा जाता है, का विधिपूर्वक व्रत करोगे, तो तुम्हारा शाप अवश्य समाप्त हो जाएगा।”

व्रत का पालन और शाप से मुक्ति

श्रृंगी मुनि की सलाह पर ललित और ललिता ने पूरे नियमों का पालन करते हुए कामदा एकादशी का व्रत किया। उन्होंने उपवास रखा, भगवान विष्णु की भक्ति की, और मुनि द्वारा बताए गए सभी विधियों का पालन किया।

व्रत के दिन, उन्होंने ध्यानमग्न होकर भगवान विष्णु की आराधना की और उनसे अपने शाप से मुक्ति की प्रार्थना की। उनके भक्ति-भाव और एकादशी व्रत के प्रभाव से, भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। भगवान विष्णु की कृपा से ललित का शाप समाप्त हो गया और वह फिर से अपने दिव्य गंधर्व स्वरूप में वापस आ गया।

दोनों पति-पत्नी ने दिव्य शरीर प्राप्त किया और वे फिर से स्वर्गलोक में वापस लौट गए। उनकी यह दुखद यात्रा और शापित जीवन समाप्त हुआ और वे आनंदमय जीवन जीने लगे।

कामदा एकादशी का महत्व

कामदा एकादशी की कथा यह सिखाती है कि भगवान विष्णु की भक्ति और एकादशी व्रत के पालन से व्यक्ति को अपने पापों से मुक्ति मिलती है, चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो। ललित और ललिता का जीवन इसका जीवंत उदाहरण है कि भक्ति और धर्म का पालन करने से कोई भी व्यक्ति अपने कठिन समय से बाहर निकल सकता है।

कामदा एकादशी न केवल पापों के नाश का प्रतीक है, बल्कि यह यह भी सिखाती है कि हमारी इच्छाएँ और कामनाएँ भी भगवान की कृपा से पूरी हो सकती हैं। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और उसे सांसारिक सुखों के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त होती है।

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कामदा एकादशी का व्रत विधि

कामदा एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। व्रत के दिन उपवास रखना आवश्यक होता है और रात्रि में जागरण करके भगवान विष्णु के नाम का जाप करना चाहिए। भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने दीपक जलाएं, उन्हें तुलसी के पत्ते अर्पित करें, और विधिपूर्वक पूजन करें। साथ ही, इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।

कामदा एकादशी का व्रत करने से न केवल भौतिक इच्छाओं की पूर्ति होती है, बल्कि व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। इस व्रत के प्रभाव से जीवन में आने वाली सभी बाधाएँ दूर होती हैं, और व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।

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