जब अर्जुन कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर अपने सगे संबंधी, गुरु, भाई, और मित्रों को देखकर युद्ध से विमुख हो जाते हैं, तब श्रीकृष्ण उन्हें भगवद गीता का उपदेश देते हैं। गीता का यह श्लोक समस्त ज्ञान का सार है। अगर व्यक्ति इस श्लोक का अर्थ समझ ले, तो उसके जीवन की सभी परेशानियाँ समाप्त हो सकती हैं। श्रीकृष्ण इस श्लोक में कहते हैं, “हे अर्जुन, तेरा अधिकार केवल कर्म करने में है न की उसके फल की प्राप्ति मे, तू कर्म के फल की आसक्ति में पड़कर अकर्मण्य न बन।“
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
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परिणाम पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है
हममें से हर कोई कुछ भी करने से पहले उसके परिणाम के बारे में सोचने लगता है। जैसे बच्चे पढ़ाई शुरू करने से पहले प्रथम आने की आशा करते हैं, व्यापारी दिन की शुरुआत में ही अपने सभी सामान के बिक जाने की उम्मीद करते हैं, और गृहणी खाना बनाते समय सोचती है कि उसके परिवार वाले खाने की प्रशंसा करेंगे। हर कोई अपने कर्म से श्रेष्ठतम फल की अपेक्षा करता है, जबकि वास्तव में हमारे हाथ में केवल कर्म करना है। उसके परिणाम पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है।
फल की इच्छा ही नहीं होगी तो प्रेरणा कहाँ से मिलेगी?
यह प्रश्न स्वाभाविक है कि यदि हम फल की इच्छा नहीं करेंगे तो कर्म करने की प्रेरणा कहाँ से मिलेगी? और फल की अपेक्षा करने में बुराई क्या है?
इसका उत्तर यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि उसके नियंत्रण में केवल उसका कर्म है, न कि उससे आने वाला परिणाम। उदाहरण के लिए, किसी छात्र का कार्य है पूरे वर्ष मन लगाकर पढ़ाई करना। लेकिन परीक्षा का परिणाम कई अन्य बातों पर निर्भर करता है, जैसे परीक्षा में पढ़े हुए पाठ्यक्रम से हटकर प्रश्नों का आ जाना अथवा कॉपी जांचने वाले मास्टर जी का मूड। ऐसे में यदि छात्र के अंक कम आ जाएँ, तो उसे अपनी प्रतिभा पर संदेह नहीं करना चाहिए और न ही भविष्य में मेहनत में कमी करनी चाहिए। उसे हर स्थिति में अपना सर्वोत्तम देना है और परिणाम को ईश्वर पर छोड़ देना है। किसान जब खेत मे बीज बोता है और रातों तक जागकर फसल को पानी देता है तब वो अपना काम कर रहा है लेकिन अगर सूखा पड़ जाए या उसकी फसल को कीड़े खा जाए तब किसान को अपने आप को इसकी वजह नहीं समझनी चाहिए क्योंकि यह बात उसके कंट्रोल मे नहीं थी |
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कर्म करते रहो, फल की चिंता छोड़ो
जीवन में बहुत कुछ ऐसा है जिस पर हमारा कोई वश नहीं है, लेकिन अपने कर्म पर हमारा पूरा नियंत्रण है। इसलिए उसमें कोई कमी नहीं होनी चाहिए। जब हम इस बात को समझ लेंगे, तो जीवन के सुख-दुःख और उतार-चढ़ाव में भी हमारा आत्मविश्वास बना रहेगा। हमें खुद पर विश्वास रखना चाहिए और हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए तैयार रहना चाहिए।
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डिस्क्लेमर: इस लेख में कोई जानकारी नही दी गई है बल्कि धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक ग्रंथों, व्यक्तिगत चिंतन और मनन के द्वारा एक सोच प्रस्तुत की गई है। प्रत्येक व्यक्ति की सोच इस संबंध मे अलग हो सकती है adhyatmikaura.in प्रत्येक व्यक्ति एवं समाज की सोच का सम्मान करता हैं। व्यक्ति को इस लेख से जुड़ी जानकारी अपने जीवन मे उतारने से पहले अपने विवेक का पूर्ण इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए।
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