करवा चौथ 2024 का विस्तृत व्रत और कथा

करवा चौथ 2024 का विस्तृत व्रत और कथा

करवा चौथ का व्रत, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत करती हैं। इस दिन विशेष रूप से मिट्टी के करवे का पूजन किया जाता है, और शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं व्रत तोड़ती हैं।

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शाम के करीब चार बजे मिट्टी के करवे को सजाया जाता है। करवे पर मौली (धागा) बांधकर, रोली से सतिया (स्वस्तिक) बनाया जाता है। करवे पर रोली से तेरह बिंदियां लगाई जाती हैं। इसके बाद जल से भरा हुआ लोटा रखा जाता है, जो चंद्रमा को अर्घ्य देने के काम आता है। एक थाली में रोली, गेहूं के दाने, और लोटा रखकर महिलाएं अपने माथे पर रोली से तिलक करती हैं। लोटे पर भी मौली बांधकर सतिया बनाते हैं, और हाथ में तेरह गेहूं के दाने लेकर करवा चौथ की कथा सुनी जाती है।

कथा सुनने के बाद महिलाएं कुछ गेहूं के दाने लोटे में डालती हैं और कुछ साड़ी के पल्ले में बांध लेती हैं, जो कि रात में चंद्रमा को अर्घ्य देते समय हाथ में लिया जाता है। लोटे का जल सूरज को दिया जाता है। पूजा के अंत में एक थाली में फल, मिठाई, चावल, खांड का करवा और रुपए रखकर बायना सास, ननद, या जिठानी को दिया जाता है। पूजा के बाद जल गमले में डाल दिया जाता है।

एक साहूकार के सात बेटे और एक प्यारी बहन थी। बहन अपने भाइयों की लाडली थी और हमेशा उनके साथ ही खाना खाती थी। करवा चौथ के दिन जब बहन ने व्रत रखा, तो सातों भाई अपने बहन से बहुत प्यार करते थे और उसका इंतजार कर रहे थे। शाम को जब भाइयों ने देखा कि उनकी बहन भूखी है और चाँद निकलने का इंतजार कर रही है, तो उन्होंने उसकी भूख मिटाने के लिए एक चाल चली। उन्होंने जंगल में जाकर आग जलाकर छलनी के माध्यम से एक नकली चांद दिखा दिया।

बहन, जो अपने भाइयों पर अटूट विश्वास करती थी, तुरंत नकली चांद को देखकर अर्घ्य दे दिया और भाइयों के साथ खाना खाने बैठ गई। जैसे ही उसने पहला टुकड़ा खाया, उसमें बाल निकला। दूसरा टुकड़ा खाया, तो छींक आई। तीसरे टुकड़े के बाद राजा के घर से बुलावा आया कि राजा का बेटा बीमार है, और उसे ससुराल भेजना होगा। यह सब अपशकुन थे, क्योंकि बहन ने नकली चांद को अर्घ्य दिया था।

माँ ने बेटी को ससुराल भेजने से पहले उसकी साड़ी के पल्ले में सोने का सिक्का बांधा और कहा, “रास्ते में जो भी तुझे सुहाग का आशीर्वाद दे, उसे यह सिक्का दे देना।” लेकिन रास्ते में सभी लोगों ने उसे ठंडी और धैर्यवान रहने का आशीर्वाद दिया, सुहाग का नहीं। जब वह ससुराल पहुँची, तो उसकी छोटी ननद ने उसे आशीर्वाद दिया, “सपूती हो, सात बेटों की माँ हो, मेरे भाई का सुख देखो।” तभी बहन ने सोने का सिक्का ननद को दे दिया और अपने पल्ले में गाँठ बांध ली।

ससुराल पहुंचकर उसे पता चला कि उसका पति मर चुका है। वह ऊपर की कोठरी में चली गई और वहीं अपने पति की सेवा करने लगी। उसकी सास उसे दासी के हाथ से बची-खुची रोटी भेजती थी, और वह अपने पति के शरीर की सेवा करते हुए एक साल बिताती रही। करवा चौथ का व्रत फिर से आया, और इस बार पड़ोस की औरतों ने उसे भी व्रत करने की सलाह दी। वे बोलीं, “चौथ माता की कृपा से तेरा सुहाग लौट आएगा।”

तब बहू ने भी व्रत रखा और करवा वाली से करवा लेने की कोशिश की। करवा वाली ने कहा कि उसकी बहन आकर उसे करवा देगी। इस तरह, पाँच करवा वालियाँ आईं, पर किसी ने भी उसे करवा नहीं दिया। फिर छठी करवा वाली ने कहा कि सातवीं करवा वाली आएगी और उसे करवा देगी। साथ ही उसे सलाह दी कि वह रास्ते में काँटे बिखेर दे ताकि सातवीं बहन का पैर काँटों में चुभ जाए। उसने वैसा ही किया, और सातवीं बहन जब आई, तो उसके पैर में काँटा चुभ गया।

बहू ने उसके पैर से काँटा निकाल दिया और आशीर्वाद माँगा। तब सातवीं बहन ने उसे काजल, मेंहदी, सिंदूर, और चित्तली अंगूठी का छींटा और करवे दे दिए। अब बहू ने उद्यापन की तैयारी की, और करवा चौथ का विधिपूर्वक व्रत रखा। उसके पति को जीवनदान मिला, और वह स्वस्थ हो गया।

राजा के घर में जब यह चमत्कार हुआ, तो राजा ने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवाया कि करवा चौथ का व्रत सभी स्त्रियाँ करें और सुहाग की रक्षा करें। इस प्रकार करवा चौथ का महत्व बढ़ा, और हर स्त्री अपने पति की लंबी उम्र के लिए यह व्रत रखने लगी।

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करवा चौथ के व्रत का उद्यापन भी महत्वपूर्ण होता है, खासकर तब जब नवविवाहिता अपना पहला व्रत करती है। उद्यापन के लिए मायके से चीनी के चौदह करवे, जिनमें पाँच-पाँच पताशे और रुपये रखे जाते हैं, सास, ननद, और जिठानी के लिए भेजे जाते हैं। इसके साथ ही साड़ी, ब्लाउज, और पैर पड़ाई के रुपये भी दिए जाते हैं। इसके अलावा, खांड का करवा, लोटे में चावल, दामाद के कपड़े, और मिट्टी का करवा पानी से भरकर दिया जाता है।

व्रत के अंत में महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं और उसके बाद ही अन्न ग्रहण करती हैं। इस व्रत में फलाहार भी वर्जित होता है। उद्यापन के बाद परिवार की सभी महिलाएं मिलकर व्रत की सफलता की कामना करती हैं।

करवा चौथ का व्रत, न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है। चौथ माता का आशीर्वाद लेकर महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं, और यह पर्व समाज में प्रेम, समर्पण और परिवार की एकता का प्रतीक है।

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डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |

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