कोणार्क का मंदिर, जिसे सूर्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, अपनी अद्भुत स्थापत्य कला और मानवीय प्रयासों के उत्कर्ष के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 60 किलोमीटर पूरब में स्थित यह मंदिर भारत के प्रमुख सांस्कृतिक धरोहरों में से एक है। प्रतिवर्ष लाखों भारतीय और विदेशी पर्यटक इस मंदिर का दर्शन करने आते हैं, जिससे इसे बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होती है।
मंदिर का इतिहास और निर्माण
यह भव्य मंदिर 13वीं सदी के मध्य में गंगा वंश के सम्राट नरसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है, जो सूर्य भगवान के रथ के रूप में निर्मित किया गया है। मंदिर के बाहर रथ के 16 विशाल पहिए और 7 घोड़े हैं, जो सूर्य भगवान की गति का प्रतीक हैं। माना जाता है कि मंदिर के निर्माण के दौरान चुंबक का प्रयोग हुआ था, जिससे सूर्य देव की प्रतिमा आकाश में झूलती प्रतीत होती थी।
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अद्वितीय कलाकृति और स्थापत्य कला
कोणार्क का मंदिर उड़ीसा की प्राचीन स्थापत्य कला का एक ज्वलंत उदाहरण है। मंदिर की दीवारों पर हाथियों, घोड़ों, और अन्य जीवों की हजारों मुद्राएँ उत्कीर्ण की गई हैं। हर एक आकृति अनूठी है और इसमें कला की सूक्ष्मता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। यहाँ की दीवारों पर उड़ीसा के तत्कालीन समाज और रीति-रिवाजों के भी चित्र हैं, जो उस समय की सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को दर्शाते हैं।
धार्मिक और सामाजिक महत्त्व
मंदिर के चित्रांकन से यह स्पष्ट होता है कि उस समय उड़िया समाज का व्यापारिक संबंध दूर देशों से था। विशेष रूप से महिलाओं की स्वतंत्रता और उनकी सामाजिक भागीदारी का भी यहाँ उल्लेख मिलता है। वे शिकार और मल्लयुद्ध जैसे कार्यों में भी सक्रिय थीं।
मंदिर के निर्माण से जुड़ी किंवदंतियाँ
कोणार्क मंदिर के निर्माण से जुड़ी कई किंवदंतियाँ हैं। कहा जाता है कि इसे 1200 शिल्पियों ने 12 वर्षों में बनाया था और इसके निर्माण में उस समय का पूरा राजस्व खर्च हो गया था। महाशिल्पी विशु महाराणा और उनके पुत्र धर्मपद की कहानी भी इस मंदिर से जुड़ी है। धर्मपद ने मंदिर के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, और अपनी बुद्धिमत्ता से मंदिर के शीर्ष पर त्रिपटधर स्थापित किया।
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मंदिर की विशेष संरचना

कोणार्क मंदिर का मुख्य भाग 220 फीट लंबा और 128 फीट ऊँचा है। इसका श्रोतागार, नाट्य मंदिर और अन्य भाग उड़ीसा की स्थापत्य कला के अद्भुत उदाहरण हैं। मुख्य द्वार पर हाथियों और घोड़ों की विशाल मूर्तियाँ सजाई गई हैं। मंदिर की भीतरी दीवारों पर कमल के फूलों के चित्र और विभिन्न जीव-जंतुओं की आकृतियाँ इसे और भी मनोहारी बनाती हैं।
पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र
कोणार्क का मंदिर भुवनेश्वर और पुरी के बीच स्थित है, और दोनों स्थानों से इसे सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। यहाँ पर्यटकों के ठहरने के लिए उड़ीसा पर्यटन विभाग द्वारा ‘पंथ निवास’ की व्यवस्था है। इस मंदिर की अद्वितीयता और इसकी कलात्मकता हर मौसम में पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रहती है।
कोणार्क का सूर्य मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि यह भारतीय स्थापत्य कला और सांस्कृतिक धरोहर का अद्वितीय उदाहरण है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक महत्त्व और अद्वितीय कलाकृतियाँ इसे विश्वभर में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाती हैं। भारत के इस गर्वित धरोहर पर समस्त देशवासियों को गर्व है।
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महत्वपूर्ण जानकारियां – Information
State: Odisha
Country: India
Nearest City/Town: Puri
Best Season To Visit: Winter (October – February)
Temple Timings: Morning: 6:00 am – 8:00 pm
Photography: Allowed
Entry Fees: Rs. 40 per person
कैसे पहुचें – How To Reach
Road: Konark is approximately 35 kilometers via Puri-Konark Marine Drive, a scenic coastal route. Buses, auto-rickshaws, and taxis are easily available from Puri.
Nearest Railway: Puri Railway Station
Air: The nearest airport is Biju Patnaik Airport in Bhubaneswar
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