अगर आप दक्षिण भारत की यात्रा पर निकलते हो तो आपकी दक्षिण भारत की यात्रा महाबलिपुरम् के बिना अधूरी मानी जाती है। मद्रास (अब चेन्नई) से लगभग 60 किलोमीटर दक्षिण में स्थित, यह स्थल प्राचीन भारत की स्थापत्य कला और धार्मिक धरोहर का अद्भुत उदाहरण है। महाबलिपुरम् का निर्माण पल्लव राजाओं द्वारा किया गया था, और यह कभी पुर्तगालियों का प्रमुख बंदरगाह भी माना जाता था।
धार्मिक स्थल और शांति का अनुभव

समुद्र के किनारे स्थित महाबलिपुरम् धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यहाँ पहुचने पर यहाँ के अद्भुत मंदिरों के आकर्षण आपको किसी अदृश्य शक्ति की तरह अपनी और खिचेंगे। समुद्र-तटीय प्राकृतिक सौंदर्य और शिल्पकारों की अद्वितीय कारीगरी का संगम इस स्थान को और भी विशेष बनाता है। पांडवों के वनवास के दौरान यहाँ अज्ञातवास करने की किंवदंती भी इसे ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है।
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प्रस्तर शिल्प और शिल्पकला का चमत्कार
महाबलिपुरम् की चट्टानों और प्रस्तर शिल्पों में कलाकारों की दीर्घकालीन साधना स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। विशाल शिव मंदिर, जिसे एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है, आज भी अपने अद्भुत शिल्प-सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर समुद्र की लहरों और समय के आघातों के बावजूद आज भी गर्व से खड़ा है। इसके स्तंभ और मूर्तियाँ प्राचीन भारतीय शिल्पकला की श्रेष्ठता का प्रतीक हैं।
पाँच रथ: पांडवों की यादगार

महाबलिपुरम् के प्रमुख आकर्षणों में पाँच रथ शामिल हैं, जिन्हें पाँच पांडवों के नाम से जाना जाता है – युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव। इन रथों को एक ही चट्टान को काटकर निर्मित किया गया है और इनकी निर्माण शैली में अद्भुत वैविध्य देखने को मिलता है। द्रौपदी के नाम पर सबसे छोटा रथ बनाया गया है, जो कलाकारों की अद्भुत शिल्पकला का नमूना है।
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समुद्र-तटीय शिवालय और अन्य धार्मिक स्थल

महाबलिपुरम् का समुद्र-तटीय शिवालय भारतीय वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है। इसके अलावा, कृष्ण-मंदिर, जिसमें भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को धारण करने का चित्र अंकित है, भी यहाँ का एक प्रमुख आकर्षण है। मंदिरों के स्तंभों पर अंकित वाराह और महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमाएँ शिल्पकला की दृष्टि से अत्यंत आकर्षक हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक
महाबलिपुरम् के तट-मंदिर में बैठे हुए जब आप यहाँ की सांस्कृतिक और धार्मिक संपदा का अनुभव करते हैं, तब यह स्पष्ट होता है कि भारत के विभिन्न हिस्सों की धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का यह स्थल प्रतीक है। उत्तरी भारत से जुड़ी किंवदंतियों का चित्रण दक्षिण भारतीय शिल्पकारों द्वारा किया गया है, जो इस देश की सांस्कृतिक विविधता और एकता को दर्शाता है।
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महाबलिपुरम् का अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व
यह स्थल न केवल भारतीयों के लिए बल्कि विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। यहाँ आकर यह भ्रम दूर होता है कि भारतीय कला और संस्कृति का वैश्विक स्तर पर कम महत्व है। महाबलिपुरम् की प्रस्तर शिल्प और मूर्तियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि भारतीय शिल्पकारों की कारीगरी विश्व-स्तर की है।
महाबलिपुरम् की स्थापत्य और शिल्पकला अद्वितीय है और यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के महत्त्वपूर्ण स्थलों में से एक है। यहाँ की कला, धार्मिक महत्त्व और प्राकृतिक सौंदर्य हर व्यक्ति के दिल को छूने की क्षमता रखते हैं।
महत्वपूर्ण जानकारियां – Information
State: Tamil Nadu
Country: India
Nearest City/Town: Mamallapuram
Best Season To Visit: Between November to February
Temple Timings: Morning: 6:00 am – 6:00 pm
Photography: Allowed
Entry Fees: Rs.75 per person
कैसे पहुचें – How To Reach
Road: Mahabalipuram is well-connected to Chennai via the East Coast Road (ECR)
Nearest Railway: Chengalpattu Railway Station
Air: The nearest airport is Chennai International Airport
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डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |
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