महाभारत काल के प्रसिद्ध शंख

महाभारत काल के प्रसिद्ध शंख

शंख का महत्त्व हम सभी जानते हैं। माना जाता है कि शंख की ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक कोई नकारात्मक शक्ति प्रवेश नहीं कर सकती। प्राचीन काल में शंख को न सिर्फ पवित्रता का प्रतीक माना जाता था, बल्कि यह शौर्य का भी द्योतक था। प्रत्येक योद्धा के पास अपना शंख होता था, और किसी भी युद्ध या पवित्र कार्य का आरंभ शंखनाद से ही किया जाता था। महाभारत में भी प्रत्येक योद्धा के पास अपना शंख था, और कुछ शंखों के नाम महाभारत में विशेष रूप से वर्णित हैं। आइए, महाभारत के कुछ प्रसिद्ध शंखों के बारे में जानें।

महाभारत में सभी प्रमुख योद्धाओं के शंखों का नाम दिया गया है। आइये उनपर एक दृष्टि डाल लेते हैं:

महाभारत में प्रमुख योद्धाओं के शंखों का विवरण इस प्रकार है:

  • पाञ्चजन्य: यह श्रीकृष्ण का प्रसिद्ध शंख था। श्रीकृष्ण ने इसे समुद्र में शंखासुर नामक असुर का वध करने के बाद प्राप्त किया था। इस शंख का नाद शत्रुओं के ह्रदय में भय उत्पन्न करता था।

  • गंगनाभ: यह शंख गंगापुत्र भीष्म का था, जिसे उन्होंने अपनी माता गंगा से प्राप्त किया था। इसका नाद अत्यधिक भयानक होता था और शत्रुओं के दिलों में डर पैदा करता था।

  • हिरण्यगर्भ: यह सूर्यपुत्र कर्ण का शंख था, जिसे उन्हें सूर्यदेव से प्राप्त हुआ था। इसका अर्थ “सृष्टि का आरम्भ” होता है, जो कर्ण के महत्व को दर्शाता है।

  • अनंतविजय: यह महाराज युधिष्ठिर का शंख था। इसकी ध्वनि अनंत तक जाती थी और यह उनके साम्राज्य की अनंतता का प्रतीक था।

  • विदारक: यह दुर्योधन का शंख था, जिसका अर्थ है “विदीर्ण करने वाला”। इसकी ध्वनि शत्रुओं के दिलों में अत्यधिक भय उत्पन्न करती थी।

  • पौंड्र: यह महाबली भीम का विशाल शंख था, जिसे उठाना भीम के अलावा किसी के बस की बात नहीं थी। इसकी ध्वनि से शत्रुओं का आधा बल समाप्त हो जाता था।

  • देवदत्त: यह अर्जुन का शक्तिशाली शंख था, जो वरुणदेव से उन्हें प्राप्त हुआ था। इसका नाद शत्रुओं को युद्धभूमि से भागने पर मजबूर कर देता था।

  • सुघोष: यह नकुल का शंख था, जिसका नाद नकारात्मक शक्तियों का नाश कर देता था।

  • मणिपुष्पक: यह सहदेव का शंख था, जो मणियों से जड़ित और अत्यंत दुर्लभ था। इसे अश्विनीकुमारों से प्राप्त किया गया था।

  • यञघोष: यह दिव्य शंख धृष्टद्युम्न का था, जो कि अग्नि से निकला था और जब यह बजता था तो इसकी ध्वनि से पांडवों की सेना संचालित होती थी।

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श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय में इन शंखों का उल्लेख है, जहाँ श्रीकृष्ण, अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर, नकुल, और सहदेव ने अपने-अपने शंखों का नाद किया था।

अर्थात: श्रीकृष्ण भगवान द्वारा पांचजन्य नामक शंख, अर्जुन द्वारा देवदत्त और भीमसेन ने पौंड्र नामक शंख बजाया। युधिष्ठिर द्वारा अनंतविजय शंख, नकुल द्वारा सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंख का नाद किया।

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