महाभारत में ऐसा वृतांत है कि ऋषि वेदव्यास जी ने हिमालय की तलहटी मे स्थित एक पवित्र गुफा के अंदर तपस्या में लिन होकर तथा ध्यान योग में बुद्धि को स्थित करके सम्पूर्ण महाभारत का आदि से अन्त तक स्मरण कर अपने मन ही मन में इस दिव्य ग्रंथ महाभारत की रचना कर डाली थी। इसी रोचक घटना को आज मे आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ
ऋषि वेदव्यास की व्याकुलता और ब्रह्मा जी का समाधान
महाभारत जैसा अद्वितीय महाकाव्य रचने की इच्छा लेकर ऋषि वेदव्यास बड़े ही व्याकुल दिखाई पड़ रहे थे। इस असमंजस की स्थिति में उन्होंने ब्रह्म देव का आवाहन किया। जैसे ही उन्होंने उन्हें पुकारा, पलक झपकते ही परमपिता ब्रह्मा वहाँ उपस्थित हो गए। बड़ी ही गंभीरता के साथ ऋषि वेदव्यास ने ब्रह्म देव को प्रणाम किया और अपने मन की चिंता उनके समक्ष रखी।
“हे सृष्टि रचयिता, भगवन! मैंने एक श्रेष्ठ काव्य की रचना की है, जिसमें उपनिषद, वेद, इतिहास, पुराण, भूत, भविष्य और वर्तमान का वर्णन है। इसमें बुढ़ापा, मृत्यु, भय, व्याधि, आश्रम और वर्णों का धर्म, पुराणों का सार, तपस्या, ब्रह्मचर्य, पृथ्वी, सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र, तारा, युगों का वर्णन, अध्यात्म, न्याय, चिकित्सा, शिक्षा, दान, देवता और मनुष्यों की उत्पत्ति का उल्लेख है। लेकिन समस्या यह है कि पूरी पृथ्वी पर इसे लिखने वाला कोई नहीं मिल रहा है। यही मेरी चिंता का विषय है।”
ब्रह्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “हे श्रेष्ठ महर्षि, आप तत्वज्ञान सम्पन्न हैं। आपके द्वारा रचित काव्य विश्व में प्रसिद्ध होगा, और इससे श्रेष्ठ रचना कोई दूसरा नहीं कर सकेगा। अब आप शोक को त्यागिए और इस महाग्रंथ को लिखने के लिए श्री गणेश जी का स्मरण कीजिए।” यह कहकर ब्रह्मदेव अंतर्ध्यान हो गए।
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गणेश जी का आवाहन और महाभारत की रचना
तत्पश्चात ऋषि वेदव्यास ने गणेश जी का ध्यान किया, और भक्तवत्सल भगवान गणेश तुरंत प्रकट हुए। वेदव्यास जी ने गणेश जी से प्रार्थना की, “भगवन, मैंने मन ही मन महाभारत की रचना की है। मैं इसे बोलता जाऊंगा, कृपया आप इसे लिखते जाइए।”
गणेश जी बोले, “ठीक है, लेकिन एक शर्त पर, यदि मेरी कलम एक क्षण के लिए भी रुकी, तो मैं लिखना छोड़ दूंगा।”
एक क्षण विचार करके वेदव्यास जी बोले, “ठीक है प्रभु, किन्तु आपसे एक निवेदन है कि बिना समझे मत लिखिएगा।”
गणेश जी ने “तथास्तु” कहकर लिखना आरंभ कर दिया। ग्रंथ लिखने के दौरान, बीच-बीच में वेदव्यास जी कुछ ऐसे कठिन श्लोकों की रचना कर देते थे कि गणेश जी उसे समझने के लिए रुकते, और उतने में ही वेदव्यास जी दूसरे श्लोकों की रचना कर देते थे।
महाभारत ग्रंथ ज्ञानरूप अंजन की सलाई से अज्ञान के अंधकार में भटकते हुए लोगों की आँखें खोलने वाला है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक ज्ञान की खोज की अभिलाषा से महाभारत का अध्ययन करता है, उसके सभी पाप नष्ट होने लगते हैं, क्योंकि इसमें देवऋषि, ब्रह्मऋषि, देवता आदि के परम पवित्र कर्मों का वर्णन है।
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