मंगलवार का व्रत हिन्दू धर्म में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से भगवान हनुमान को समर्पित है, जिनकी पूजा और व्रत से सभी कष्टों का निवारण होता है। इस व्रत का पालन करने से भक्तों को रक्त विकारों से मुक्ति मिलती है, सर्व सुख की प्राप्ति होती है, और राज्य से सम्मान तथा संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से उन भक्तों के लिए उपयोगी है जो अपने जीवन में कठिनाइयों और बाधाओं का सामना कर रहे हैं।
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मंगलवार व्रत की विधि
मंगलवार व्रत की विधि बहुत ही सरल और अनुशासित होती है। भक्त को मंगलवार के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान आदि करके शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजा के समय भगवान हनुमान की प्रतिमा या चित्र के समक्ष लाल वस्त्र धारण करके लाल पुष्पों को अर्पित करना चाहिए। गेहूं और गुड़ का भोजन करना उत्तम माना जाता है, और इसे दिन-रात में केवल एक बार ग्रहण करना चाहिए। यह व्रत लगातार इक्कीस सप्ताह तक किया जाता है, जिससे समस्त दोषों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। व्रत की पूजा के अंत में हनुमानजी की कथा अवश्य सुननी चाहिए और उनकी आरती गाकर व्रत का समापन करना चाहिए।
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मंगलवार व्रत कथा
बहुत समय पहले एक निर्धन ब्राह्मण दंपत्ति थे, जिनकी कोई संतान नहीं थी। ब्राह्मण और उसकी पत्नी इस कारण अत्यधिक दुःखी रहते थे। संतान प्राप्ति के लिए वे विभिन्न देवताओं की पूजा और व्रत किया करते थे, परंतु उन्हें कहीं से भी सफलता नहीं मिल रही थी। ब्राह्मण ने निश्चय किया कि वह भगवान हनुमान की तपस्या करेगा और उनसे संतान की कामना करेगा।
ब्राह्मण ने वन की ओर प्रस्थान किया और वहाँ जाकर कठिन तपस्या आरंभ कर दी। वह दिन-रात भगवान हनुमान की पूजा में लीन रहने लगा और उनसे एक पुत्र प्राप्ति की प्रार्थना करता था। इधर उसकी पत्नी घर पर रहकर मंगलवार का व्रत करती थी और हर मंगलवार को हनुमान जी के नाम पर भोजन बनाकर पहले भगवान को भोग अर्पित करती, फिर खुद भोजन ग्रहण करती।
हनुमानजी की कृपा
एक बार, किसी कारणवश ब्राह्मणी मंगलवार के दिन भोजन न बना सकी और हनुमानजी को भोग भी नहीं लगा पाई। उसने अपने मन में निश्चय किया कि वह अगले मंगलवार को ही भोजन करेगी। इसके बाद वह पूरे छह दिनों तक भूखी-प्यासी पड़ी रही और मंगलवार के दिन वह मूर्छित हो गई। उसकी भक्ति और लगन देखकर हनुमानजी अत्यंत प्रसन्न हो गए। उन्होंने ब्राह्मणी को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा, “तुम्हारी भक्ति और निष्ठा से मैं बहुत प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हें एक सुंदर पुत्र प्रदान करता हूँ, जो तुम्हारी सेवा करेगा और तुम्हारा नाम रोशन करेगा।”
अगले ही दिन ब्राह्मणी के घर में एक सुंदर बालक का जन्म हुआ। ब्राह्मणी ने बालक का नाम ‘मंगल’ रखा। बालक के जन्म से घर में हर्षोल्लास का माहौल बन गया। ब्राह्मणी को अपनी साधना का फल मिला और वह अत्यंत प्रसन्न हुई। कुछ समय बाद ब्राह्मण जब वन से घर लौटा, तो उसने अपने घर में सुंदर बालक को खेलते देखा। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ और उसने अपनी पत्नी से पूछा, “यह बालक कौन है?”
पत्नी ने उत्तर दिया, “यह बच्चा पवनपुत्र हनुमानजी के आशीर्वाद से मुझे प्राप्त हुआ है। मैंने इसकी प्राप्ति के लिए लगातार मंगलवार का व्रत किया और फलस्वरूप श्री हनुमानजी ने मुझे यह पुत्र प्रदान किया है।”
शंका और सत्य का प्रकट होना
ब्राह्मण ने अपनी पत्नी की बातों पर विश्वास नहीं किया और सोचा कि उसकी पत्नी ने यह बालक किसी और से प्राप्त किया है। वह यह सोचने लगा कि उसकी पत्नी व्यभिचारिणी है और यह बालक उसका नहीं है। उसके मन में छल और संदेह उत्पन्न हो गया।
एक दिन ब्राह्मण पानी लेने कुएं पर गया और उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह बालक मंगल को भी साथ ले जाएगा। वह मंगल को लेकर कुएं पर पहुँचा और वहाँ उसने क्रोध में आकर उसे कुएं में धकेल दिया। फिर वह घर वापस आया और अपनी पत्नी से कहा कि उसने बालक को कुएं में डाल दिया है। पत्नी ने जब यह सुना, तो वह दुखी हो गई। लेकिन तभी मंगल मुस्कराता हुआ घर आ गया।
यह देखकर ब्राह्मण आश्चर्यचकित हो गया। उसने सोचा, “यह बालक कैसे जीवित हो सकता है?” रात्रि को हनुमानजी ने ब्राह्मण को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा, “तुमने जो संदेह किया वह गलत है। यह बालक तुम्हारे और तुम्हारी पत्नी की संतान है। मैंने इस बालक को तुम्हें प्रदान किया है। अब तुम अपने मन से इस शंका को निकाल दो और अपनी पत्नी को अपशब्द कहना बंद करो।”
ब्राह्मण ने जब यह सत्य जाना तो वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने अपनी पत्नी से माफी मांगी। इसके बाद पति-पत्नी दोनों ने मंगल का व्रत रखकर हनुमानजी की कृपा प्राप्त की और अपने जीवन को सुखमय बना लिया।
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व्रत के लाभ और महत्त्व
जो व्यक्ति नियमपूर्वक मंगलवार का व्रत करता है और इस कथा को सुनता या पढ़ता है, उसे भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त होती है। उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, और उसके जीवन से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस व्रत से भक्तों को रक्त विकार, मानसिक तनाव, और शारीरिक बीमारियों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, जो व्यक्ति संतान सुख की प्राप्ति के लिए यह व्रत करता है, उसे अवश्य संतान सुख की प्राप्ति होती है।
मंगलवार के व्रत में लाल वस्त्र धारण करना, लाल पुष्प चढ़ाना और हनुमानजी के प्रिय पदार्थों का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस व्रत से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है और हनुमानजी की कृपा से जीवन की सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
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मंगलवार की आरती
व्रत के अंत में भक्तजन हनुमानजी की आरती करते हैं। आरती गाने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और भक्तों के मन में आत्मिक शांति का अनुभव होता है। हनुमानजी की आरती का भाव यह है कि उनके आशीर्वाद से भक्तों के जीवन से सभी प्रकार की नकारात्मकता और बाधाएँ दूर हो जाती हैं। भक्तों की कठिनाइयाँ समाप्त होती हैं और जीवन में नयी ऊर्जा का संचार होता है।
मंगलवार की आरती इस प्रकार है
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे।
रोग दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनी पुत्र महा बलदाई ।
सन्तन के प्रभु सदा सहाई ॥
दे बीड़ा रघुनाथ पठाये।
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई ||
लंका जारि असुर संहारे।
सियारामजी के काज संवारे ॥
लक्ष्मण मूर्च्छित पड़े सकारे।
लाय संजीवन प्राण उबारे॥
पैठि पाताल तोरि जम कारे।
अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाएँ भुजा असुर संहारे।
दाहिने भुजा संत जन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारें।
जै जै जै हनुमान उचारें ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरति करत अंजना माई ॥
जो हनुमान जी आरती गावै।
बसि बैकुंठ परमपद पावै ॥
मंगलवार का व्रत रखने से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक शांति प्राप्त होती है। भगवान हनुमान की कृपा से भक्त के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और उसे सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। इस कथा को पढ़ने या सुनने से व्यक्ति के जीवन में शुभता का संचार होता है और उसके जीवन की सभी समस्याएँ दूर हो जाती हैं।
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