मोहिनी एकादशी: पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का दिन

मोहिनी एकादशी: पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का दिन

मोहिनी एकादशी, जो वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी के रूप में मनाई जाती है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी व्रत माना गया है। यह एकादशी भगवान विष्णु के मोहिनी रूप से जुड़ी हुई है, जब भगवान विष्णु ने देवताओं की रक्षा के लिए मोहिनी का रूप धारण किया था और अमृत का वितरण किया था। यह दिन समस्त प्रकार के पापों से मुक्ति का दिन माना जाता है। जो भी व्यक्ति इस दिन व्रत करता है, उसके जीवन के सभी कष्टों का नाश हो जाता है, और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मोहिनी एकादशी का व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है जो अपने पिछले जन्मों के पापों से मुक्ति चाहते हैं और जीवन में शांति और समृद्धि की कामना रखते हैं। इस व्रत के प्रभाव से न केवल वर्तमान जन्म के पापों का नाश होता है, बल्कि यह व्यक्ति को अगले जन्मों में भी पापों से मुक्त रखता है। इस दिन भगवान पुरुषोत्तम (राम) की पूजा की जाती है, जो संपूर्ण जगत के पालनहार माने जाते हैं। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के भक्त उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाकर, धूप-दीप से पूजा-अर्चना करते हैं और उन्हें मीठे फलों का भोग लगाते हैं।

इस दिन भक्तजन रात्रि में भगवान के समीप रहकर कीर्तन करते हैं और भगवद्-भक्ति में लीन रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले सभी प्रकार के निंदित कार्यों से छुटकारा मिल जाता है, और वह धर्म के मार्ग पर अग्रसर होता है।

इसे जरूर पढ़ें: जन्म के साथ ही हमारी मृत्यु प्रत्येक क्षण घटित होने लग जाती है

बहुत समय पहले, सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की नगरी स्थित थी। इस नगरी में धृतनाभ नामक राजा का राज्य था, जो अपनी प्रजा के प्रति न्यायप्रिय और धर्मपरायण राजा के रूप में प्रसिद्ध था। राजा के राज्य में एक धनी वैश्य रहता था, जो विष्णु भगवान का परम भक्त और धर्मात्मा व्यक्ति था। वैश्य के पाँच पुत्र थे, लेकिन उसका बड़ा पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी और नीच कर्मों में लिप्त था। वह जुआ खेलता, मद्यपान करता, परस्त्री गमन करता और वेश्याओं का संग करता था।

धृष्टबुद्धि के नीच कर्मों से उसके माता-पिता दुखी थे। उन्होंने उसे कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन वह अपने गलत कामों से बाज नहीं आया। आखिरकार, माता-पिता ने उसे घर से निकालने का फैसला किया। धृष्टबुद्धि को कुछ धन, वस्त्र, और आभूषण देकर घर से बाहर कर दिया गया। उसने उन आभूषणों को बेचकर कुछ समय तो गुजारा किया, लेकिन जल्द ही वह धनहीन हो गया और चोरी करने लगा।

चोरी करते हुए वह पकड़ में आया और पुलिस ने उसे कारावास में डाल दिया। जब उसकी दंड अवधि समाप्त हो गई, तो उसे नगरी से निष्कासित कर दिया गया। धृष्टबुद्धि अब दर-दर भटकने लगा। उसका जीवन अब अत्यंत कठिनाइयों से भरा हुआ था। भूख और प्यास से बेहाल, वह जंगल में घूमने लगा और वहाँ पशु-पक्षियों का शिकार करके अपना पेट भरता। लेकिन एक दिन ऐसा भी आया जब उसे शिकार नहीं मिला और वह भूख से बेहाल हो गया।

मुनि के आश्रम में उद्धार की खोज

भूखा-प्यासा धृष्टबुद्धि कौडिन्य मुनि के आश्रम पहुँच गया। मुनि का आश्रम शांति और आध्यात्मिकता का स्थल था, जहाँ कई भक्तजन अपनी समस्याओं का समाधान पाने आते थे। धृष्टबुद्धि ने वहाँ पहुँचकर मुनि के चरणों में गिरकर प्रार्थना की, “हे मुनिवर, मैं एक महापापी हूँ, और मेरी आत्मा अज्ञानता और पापों से घिरी हुई है। मैं आपकी शरण में हूँ। कृपया मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मैं अपने पापों से मुक्त हो सकूँ और मोक्ष की प्राप्ति कर सकूँ।”

कौडिन्य मुनि ने उसकी बात ध्यानपूर्वक सुनी और फिर कहा, “हे वत्स, यदि तुम वास्तव में अपने पापों से मुक्ति चाहते हो, तो तुम वैशाख शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे अनंत जन्मों के पाप भस्म हो जाएंगे, और तुम विष्णु लोक की प्राप्ति कर सकोगे।” मुनि के उपदेश को सुनकर धृष्टबुद्धि ने ठान लिया कि वह मोहिनी एकादशी का व्रत पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करेगा।

व्रत का पालन और पापों का अंत

धृष्टबुद्धि ने मुनि के बताए अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत किया। उसने उपवास रखा, भगवान विष्णु की पूजा की, और उनके नाम का कीर्तन किया। व्रत के प्रभाव से धीरे-धीरे उसके मन और शरीर से सारे पाप धुल गए। उसकी आत्मा अब पवित्र हो चुकी थी, और उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त हुई। मोहिनी एकादशी का व्रत पूर्ण करने के बाद, धृष्टबुद्धि को भगवान विष्णु के दिव्य लोक, विष्णुलोक की प्राप्ति हुई। उसके समस्त पाप नष्ट हो गए, और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।

इसे जरूर पढ़ें: जब तक मनुष्य की दृष्टि दूसरों के दोषों पर केंद्रित रहती है, तब तक उसे अपने दोष दिखाई नहीं देते

इस व्रत की महिमा अपरम्पार है। मोहिनी एकादशी के व्रत का माहात्म्य सुनने मात्र से भी सहस्त्रों गौदान का फल प्राप्त होता है। जो भी व्यक्ति इस व्रत को पूरी श्रद्धा से करता है, वह जीवन के समस्त दुखों और पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक में स्थान प्राप्त करता है। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है, और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Follow Us On Social Media

भाग्य खुलने के गुप्त संकेत