आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस पवित्र एकादशी का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि यह तिथि पापरूपी हाथी को महावत रूपी अंकुश से नियंत्रित करने के समान मानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करना विशेष फलदायी होता है। पापांकुशा एकादशी का व्रत रखने से समस्त पापों का नाश हो जाता है और व्रती को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। यह व्रत न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि भक्त के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी लेकर आता है।
इस एकादशी के दिन, भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। विष्णु जी को फूल, फल, दीप, धूप और नैवेद्य अर्पित कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन कराकर, दक्षिणा देकर विदा करना भी इस व्रत का एक आवश्यक अंग माना जाता है। इससे दान और पुण्य का फल प्राप्त होता है, जो जीवन में समृद्धि और आंतरिक शांति लाता है। पापांकुशा एकादशी की महिमा इतनी अनंत है कि इसे करने से मनुष्य के पिछले जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं और वह मृत्यु के बाद विष्णु लोक में जाता है, जहां उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पापांकुशा एकादशी 2024 तिथि, दिन और पूजा का समय
तिथि | 13 अक्टूबर 2024 से सुबह 9:08 पर आरम्भ होगा और अगले दिन 14 अक्टूबर 2024 को सुबह 6:41 तक रहेगा |
दिन | इतवार और सोमवार |
पूजा का शुभ मुहूर्त | सुबह 07:47 बजे से दोपहर 12:07 तक |
इसे जरूर पढ़ें: हवन की सही विधि
पापांकुशा एकादशी की कथा
प्राचीन काल में विन्ध्याचल पर्वत के घने जंगलों में क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था। उसके नाम के अनुसार ही उसका स्वभाव अत्यंत क्रूर और हिंसक था। क्रोधन ने अपना जीवन हिंसा, लूटपाट, मिथ्या भाषण, शराब सेवन और वेश्यागमन में ही व्यतीत कर दिया था। वह निष्ठुरता से जंगल में जानवरों का शिकार करता और निर्दोष जीवों को मारने में उसे किसी प्रकार का दुख या पछतावा नहीं होता था। उसकी निर्दयता का कोई अंत नहीं था, और इस प्रकार वह अपने जीवन में अनगिनत पापों को अपने कंधों पर लादता चला गया।
क्रोधन का यह जीवन तब तक चलता रहा जब तक कि एक दिन यमराज ने उसके अंतिम समय के निकट होने का संकेत देखा। यमराज ने अपने दूतों को क्रोधन को लेने के लिए विन्ध्याचल के जंगलों में भेजा। जब यमदूत क्रोधन के पास पहुंचे, तो उन्होंने उसे सूचित किया, “तुम्हारा अंत समय निकट है, और हमें यमराज ने तुम्हें लेने के लिए भेजा है। कल तुम्हारी मृत्यु निश्चित है।” इस सूचना से क्रोधन भयभीत हो गया। उसने सोचा कि इतने पापों को करने के बाद उसे नर्क में कठोर दंड भोगना पड़ेगा, और यह विचार ही उसे अंदर तक हिला गया।
आत्मा में भय और दिल में पश्चाताप के साथ, क्रोधन जंगल छोड़कर एकमात्र आशा के साथ अंगिरा ऋषि के आश्रम की ओर भागा। अंगिरा ऋषि अपने तपोबल और ज्ञान के लिए विख्यात थे, और क्रोधन ने सोचा कि शायद वे उसे इस भयंकर संकट से उबार सकते हैं। जब वह ऋषि के पास पहुँचा, तो वह पूरी तरह से घबराया हुआ था। उसने रोते हुए ऋषि के चरणों में गिरकर उनसे अपनी प्राण रक्षा की याचना की। उसने बड़े विनम्र भाव से ऋषि से कहा, “हे ऋषिवर, मैंने अपने जीवन में अनगिनत पाप किए हैं। अब मेरा अंत समय निकट है, और मैं यमदूतों के हाथों मरने से डर रहा हूँ। कृपया मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मैं अपने पापों से मुक्ति पा सकूँ।”
अंगिरा ऋषि ने उसकी स्थिति को समझा और उसकी दयनीय हालत देखकर उन पर दया आई। ऋषि ने कुछ क्षणों के लिए ध्यान किया और फिर बोले, “हे क्रोधन, तुमने अपने जीवन में बहुत पाप किए हैं, परंतु यदि तुम सच्चे हृदय से पश्चाताप करोगे, तो तुम्हें मुक्ति का मार्ग मिल सकता है। आज आश्विन शुक्ल पक्ष की पवित्र पापांकुशा एकादशी है। अगर तुम पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ इस एकादशी का व्रत रखो और भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करो, तो तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो सकते हैं और तुम्हें विष्णु लोक की प्राप्ति हो सकती है।”
यह सुनकर क्रोधन को थोड़ी राहत मिली। उसने बिना किसी देरी के तुरंत ही व्रत की तैयारी की। अंगिरा ऋषि के मार्गदर्शन में, उसने विधिपूर्वक पापांकुशा एकादशी का व्रत किया और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की। उसने भगवान विष्णु से सच्चे दिल से प्रार्थना की, “हे विष्णु भगवान, मैंने अपने जीवन में अनेक पाप किए हैं। कृपया मुझे क्षमा करें और मुझे मुक्ति का मार्ग दिखाएं।”
क्रोधन की पूजा में इतनी भक्ति और श्रद्धा थी कि भगवान विष्णु उस पर प्रसन्न हो गए। उनकी कृपा से क्रोधन के समस्त पाप समाप्त हो गए। जब यमदूत उसे लेने के लिए आए, तो वे चकित रह गए। उन्होंने देखा कि क्रोधन के चारों ओर दिव्य प्रकाश फैल गया है और उसके समस्त पाप धुल गए हैं। भगवान विष्णु के दूत आकर क्रोधन को विष्णुलोक ले गए। यमदूत हतप्रभ रह गए और हाथ मलते रह गए क्योंकि उनके हाथ से क्रोधन जैसा पापी भी भगवान की कृपा से बच गया था।
इसे जरूर पढ़ें: द्रौपदी कूप, यही पर द्रौपदी ने दुशासन के खून से अपने केश धोये थे
पापांकुशा एकादशी का महत्व और फल
पापांकुशा एकादशी का महत्व अत्यधिक है। इसे करने से व्रती के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो अपने जीवन में किए गए पापों से छुटकारा पाना चाहते हैं। भगवान विष्णु इस दिन अपने भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं और उन्हें न केवल पापों से मुक्त करते हैं, बल्कि उन्हें वैकुंठ धाम का मार्ग भी प्रदान करते हैं।
यह व्रत करने से मनुष्य के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। पापांकुशा एकादशी के दिन व्रती को उपवास के साथ-साथ भगवान विष्णु की पूजा, दान-पुण्य और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराकर, उन्हें दक्षिणा देकर विदा करना व्रत का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिससे व्रती को पुण्य और आध्यात्मिक लाभ मिलता है।
पापांकुशा एकादशी वह दिव्य तिथि है, जब पापों का नाश हो सकता है और मोक्ष की प्राप्ति संभव है। यह व्रत भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने का अद्वितीय अवसर है। पापों के भार से मुक्त होने और जीवन में सुख-समृद्धि लाने के लिए इस व्रत का पालन अत्यंत आवश्यक है। पापांकुशा एकादशी की कथा भी हमें यह सिखाती है कि चाहे मनुष्य कितना भी पापी क्यों न हो, सच्चे मन से किए गए पश्चाताप और भक्ति के माध्यम से उसे मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
इसे जरूर पढ़ें: माँ ताराचंडी मंदिर एक अद्भुत शक्तिपीठ, जो स्थित है सासाराम में
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |
Leave a Reply