सूतजी बोले— “हे ऋषियों! मैं आपको पद्मिनी एकादशी के व्रत की महिमा और उसकी कथा सुनाने जा रहा हूँ। यह व्रत मलमास या पुरुषोत्तम मास की शुक्ल एकादशी को किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से राधा-कृष्ण तथा शिव-पार्वती के पूजन का विधान है। इस एकादशी का पालन करने से मनुष्य को अद्भुत फल की प्राप्ति होती है।”
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रावण का दिग्विजय
प्राचीन काल की बात है, जब लंकापति रावण, जो अपने बल और बुद्धिमत्ता के लिए प्रसिद्ध था, दिग्विजय करने निकला। वह अजेय समझा जाता था, लेकिन उसका यह अहंकार उसे संकट में डालने वाला था। रावण ने कई राजाओं को पराजित किया और अपनी विजय पताका लहराई। लेकिन जब वह कार्त्तवीर्य सहस्रर्जुन से भिड़ा, तो उसका सामर्थ्य उसके अहंकार के सामने टिक न सका।
कार्त्तवीर्य सहस्रर्जुन, जो अपनी वीरता और शक्ति के लिए जाना जाता था, ने रावण को हराया। रावण को हार का सामना करना पड़ा और वह सहस्त्रर्जुन के कारागार में बंदी बना रहा। कई दिनों तक वह इस अपमान को सहन करता रहा।
मुनि अगस्त्य की सहायता
इस कठिन समय में, रावण को बंधन-मुक्त करने के लिए अगस्त्य मुनि की कृपा की आवश्यकता पड़ी। मुनि अगस्त्य, जो ज्ञान और तप से भरपूर थे, ने रावण की दुर्दशा को देखा और उसकी सहायता के लिए आगे आए। उन्होंने सहस्त्रर्जुन से बातचीत की और उसकी रिहाई का मार्ग प्रशस्त किया।
इस घटना के बाद, देवर्षि नारद ने रावण की हार पर बहुत प्रसन्नता व्यक्त की। उन्हें यह जानने की जिज्ञासा हुई कि रावण को इस पराजय का सामना क्यों करना पड़ा। उन्होंने पुलस्त्य मुनि से पूछा कि आखिरकार रावण इतना शक्तिशाली होते हुए भी कैसे हार गया।
पद्मिनी एकादशी का रहस्य
पुलस्त्य मुनि ने नारद जी को समझाया, “हे नारद! रावण की पराजय का कारण केवल यही है कि कार्त्तवीर्य अर्जुन को पराजित करने की शक्ति विष्णु के सिवा किसी अन्य में नहीं है। इसके पीछे एक गहरी कथा है।”
“कार्त्तवीर्य अर्जुन की माता पद्मिनी और पिता कृतवीर्य ने पुत्र कामना से गंधमादन पर्वत पर कठोर तपस्या की। उन्होंने महान साधिका अनुसूया देवी की प्रेरणा से पद्मिनी नामक एकादशी का व्रत किया। यह व्रत उन्होंने विधिपूर्वक किया, जिससे भगवान विष्णु प्रसन्न हुए। उन्होंने उन्हें दर्शन दिए और अर्जुन जैसे परमवीर पुत्र तथा अजेय होने का वरदान दिया।”
“यही कारण है कि रावण को कार्त्तवीर्य सहस्रर्जुन के सामने झुकना पड़ा।”
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पद्मिनी एकादशी का महत्व
पुलस्त्य मुनि की बात सुनकर देवर्षि नारद ने महसूस किया कि यह व्रत केवल एक साधारण व्रत नहीं है, बल्कि यह उन सभी के लिए एक मार्गदर्शन है जो अपने जीवन में विजय प्राप्त करना चाहते हैं। उन्होंने यह निर्णय लिया कि इस व्रत की महिमा को सभी के सामने लाना चाहिए, ताकि हर कोई इस व्रत के द्वारा भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त कर सके।
नारद जी ने यह भी बताया कि पद्मिनी एकादशी का व्रत केवल पुत्र की कामना करने वालों के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए लाभकारी है। जो लोग इस दिन विशेष रूप से राधा-कृष्ण और शिव-पार्वती का पूजन करते हैं, वे सभी पापों से मुक्त होते हैं और उनके सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
कथा का निष्कर्ष
इस प्रकार, पद्मिनी एकादशी का व्रत न केवल अर्जुन को महानता प्रदान करता है, बल्कि सभी भक्तों को भी उनके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्रदान करता है। जो लोग इस व्रत को पूरी श्रद्धा से करते हैं, उनके जीवन में सुख-समृद्धि की कोई कमी नहीं होती।
इति पद्मिनी एकादशी व्रत कथा सम्पूर्ण।
श्री मन नारायण-नारायण-नारायण। भज मन नारायण-नारायण-नारायण। पद्मिनी एकादशी की जय!
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