विष्णु, शंकर, गणेश, सूर्य और दुर्गा को हिन्दू धर्म में पंच-देव कहा जाता है। गृहस्थ-आश्रम में इनकी नित्य पूजा का विशेष महत्त्व है; पंच-देवों की कृपा से ही व्यक्ति को जीवन मे धन, लक्ष्मी और सुख प्राप्त होता है।
पूजा के दौरान क्या नहीं करना चाहिए
- भगवान गणेश और भैरव को तुलसी नहीं अर्पण चाहिए।
- दुर्गाजी को दूर्वा नहीं चढ़ानी चाहिए।
- सूर्य देव को शंख के जल से अर्ध्य नहीं देना चाहिए।
- बिना स्नान किए तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए, वरना भगवान तुलसी-पत्र स्वीकार नहीं करते।
- रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रांति और संध्याकाल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए।
- रविवार को दूर्वा नहीं तोड़नी चाहिए।
- केतकी का फूल भगवान शिव को अर्पित नहीं करना चाहिए।
- तांबे के बर्तन में चंदन कभी नहीं रखना चाहिए।
- दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए, ऐसा करने से रोगी होने की संभावना बढ़ती है।
- देवताओं को चंदन का पतला लेप नहीं चढ़ाना चाहिए।
- चर्म-पात्र या प्लास्टिक पात्र में गंगाजल नहीं रखना चाहिए।
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पूजा में फूल और पत्रों का उपयोग
- कमल का फूल पाँच रात्रियों तक जल छिड़ककर चढ़ा सकते हैं।
- बिल्व पत्र दस रात्रियों तक जल छिड़ककर चढ़ा सकते हैं।
- तुलसी की पत्तियाँ ग्यारह रात्रियों तक जल छिड़ककर चढ़ा सकते हैं।
पूजन विधि और समय
- हिंदू धर्म में देवी-देवताओं का पूजन दिन में पाँच बार करने का विधान है:
- ब्रह्म-वेला में सुबह 5 से 6 बजे तक प्रथम पूजन और आरती।
- सुबह 9 से 10 बजे तक द्वितीय पूजन और आरती।
- दोपहर में तीसरा पूजन और आरती।
- शाम 4 से 5 बजे तक चौथा पूजन और आरती।
- रात 8 से 9 बजे तक पाँचवाँ पूजन और आरती।
- पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके करनी चाहिए, विशेषकर सुबह 6 से 8 बजे के बीच।
- ऊनी आसन पर बैठकर पूजा करनी चाहिए।
- पूजाघर में सुबह और शाम एक घी का और एक तेल का दीपक रखें।
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मूर्तियों से संबंधित नियम
- पूजाघर में मूर्तियों की ऊंचाई 1, 3, 5, 7, 9, 11 इंच तक होनी चाहिए।
- घर में खड़े गणेशजी, सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी की मूर्तियाँ नहीं होनी चाहिए।
- केवल प्रतिष्ठित मूर्ति रखें, उपहार, कांच, लकड़ी और फाइबर की मूर्तियाँ नहीं।
- खंडित या जली-कटी फोटो, टूटा कांच तुरंत हटा दें।
- मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें या आभूषण नहीं रखें, और मंदिर में पर्दा आवश्यक है।
- माता-पिता या पित्रों की फोटो मंदिर में नहीं रखनी चाहिए, इन्हें नैऋत्य कोण में स्थापित करें।
परिक्रमा के नियम
- विष्णु की चार, गणेश की तीन, सूर्य की सात, दुर्गा की एक, और शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं।
कलश स्थापना
- प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर में कलश स्थापित करना चाहिए, श्रीफल युक्त जल से भरे हुए कलश से समृद्धि आती है।
- यदि कलश में श्रीफल उग जाता है तो वह सुख, समृद्धि और लक्ष्मीजी के वास का संकेत है।
- तुलसी का पूजन भी आवश्यक है।
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घर और व्यक्ति से संबंधित नियम
- मकड़ी के जाले और दीमक से घर का बचाव करें, ये हानिकारक होते हैं।
- खड़ा झाड़ू कभी न रखें, न ही झाड़ू को पैर से लांघें।
- रात में जूठे बर्तन न रखें, अगर रखना हो तो पानी से भरकर ढक दें।
- घर में नियमित रूप से कपूर जलाएं, यह वातावरण को शुद्ध करता है।
- प्रतिदिन घर में घी का दिया जलाएं।
- गोमूत्र युक्त जल से पोंछा लगाने से वास्तु दोष समाप्त होते हैं।
- सेंधा नमक (रॉक साल्ट) रखने से सुख-समृद्धि बढ़ती है।
- पीपल वृक्ष के स्पर्श से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
- साबुत धनिया, हल्दी की पाँच गाँठें, 11 कमलगट्टे और साबुत नमक तिजोरी में रखने से बरकत होती है।
- दक्षिणावर्त शंख लक्ष्मी और शांति का प्रतीक है, लेकिन पूजा स्थान पर दो शंख नहीं होने चाहिए।
- घर में केसर के छींटे देते रहें, यह धनात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है।
- मोती, शंख, पाँच गोमती चक्र, तीन हकीक पत्थर, ताम्र सिक्का, और नागकेसर एक थैली में भरकर रखने से श्रीवृद्धि होती है।
आचमन के नियम
- आचमन के बाद जूठे हाथ सिर के पीछे न पोंछें, यह भाग अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
अन्य महत्वपूर्ण जानकारियाँ
- पंचामृत: दही, दूध, घी, शहद तथा चीनी ये पाँच अमृत तत्व होते हैं। इन सबको मिलाकर पंचामृत बनता है।
- पंचरत्न: हीरा, सोना, पद्मराग, नीलमणि तथा मोती।
- सतनजा (सप्तधान): गेहूँ, जौ, तिल, चावल, मक्की, बाजरा तथा ज्वार।
- अष्टधातु: सोना, चाँदी, पीतल, ताँबा, राँगा, लोहा, काँसा तथा सीसा।
- नवरत्न: मूँगा, मोती, हीरा, पुखराज, माणिक, नीलम, गोमेद, वैदूर्यमणि तथा पन्ना।
- महादान: लोहा, पृथ्वी, सोना, सप्तधान्य, गऊ, घी तथा नमक।
- सौभाग्य सामग्री: मेंहदी, सिन्दूर, काजल, चूड़ी, बिन्दी, चुटकी तथा पायल ।
- उद्यापन: व्रत की समाप्ति को कहते हैं।
- पारणा: व्रत की पूर्ति को कहते हैं।
- सूतक: सूतक में पूजा-पाठ आदि कार्य 10 दिन तक नहीं करते।
- पातक: पातक में पूजा आदि कार्य 13 दिन तक नहीं करते।
निष्कर्ष
पंच-देवों (सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव एवं विष्णु) की पूजा, पूजन सामग्री और नियमों के यथाशक्ति पालन से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। इन धार्मिक नियमों का पालन न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि यह हमारे दैनिक जीवन में संतुलन और समृद्धि भी लाता है। पूजा के इन नियमों से हम आत्मिक और भौतिक दोनों ही प्रकार से लाभान्वित होते हैं।
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