एक बार राजा परीक्षित शिकार के लिए वन में गए। हिरण का पीछा करते-करते वे पैदल ही काफी दूर निकल गए। उस समय उनकी आयु 60 वर्ष की हो चुकी थी, इसलिए वे थक गए और भूख भी लगने लगी। उसी समय उनकी दृष्टि एक मुनि पर पड़ी, जिनका नाम शमिक था। शमिक मुनि मौन व्रत में थे। राजा परीक्षित ने उनसे कुछ प्रश्न किया, पर मुनि मौन होने के कारण कुछ नहीं बोले। भूख और थकान के कारण राजा परीक्षित को क्रोध आ गया। उन्होंने यह ध्यान नहीं दिया कि मुनि मौन साधना में लीन हैं। क्रोधित होकर, राजा ने अपमान स्वरूप एक मृत सर्प धनुष की नोक से उठाकर मुनि के कंधे पर डाल दिया। मुनि ने इस अपमानजनक कृत्य पर कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं दी और शांतिपूर्वक बैठे रहे। इसके बाद राजा परीक्षित अपनी राजधानी लौट गए।
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परीक्षित को ऋषि श्रृंगी का श्राप
ऋषि शमीक के पुत्र का नाम श्रृंगी था, जो अत्यंत तेजस्वी और शक्तिशाली था। जब श्रृंगी को यह ज्ञात हुआ कि राजा परीक्षित ने मौन साधना में लीन और निश्चल अवस्था में उनके पिता का अपमान किया है, तो वह क्रोध से आग-बबूला हो गया। आक्रोशित श्रृंगी ने तुरंत जल हाथ में लेकर राजा परीक्षित को शाप दिया, “जिस व्यक्ति ने मेरे निर्दोष पिता के कंधे पर मृत सर्प डाला है, उसकी मृत्यु आज से ठीक सातवें दिन तक्षक नाग के डसने से हो जाएगी।
जब राजा परीक्षित को यह बात ज्ञात हुई, तो वे चिंतित और सतर्क हो गए। यह खबर आग की तरह पूरे राज्य में फैल गई कि सात दिनों के भीतर भयंकर तक्षक नाग के डसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हो जाएगी। इस गंभीर संकट से बचाव के लिए राजा ने अपनी सुरक्षा हेतु कश्यप नामक एक महापंडित और सिद्ध विद्वान को नियुक्त किया, ताकि वह किसी भी संभावित अनिष्ट से उनकी रक्षा कर सके।
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ब्राह्मण और तक्षक नाग की मुलाकात
सातवें दिन, जब तक्षक नाग राजा परीक्षित को डसने के लिए आ रहा था, उसने रास्ते में काश्यप नामक एक ब्राह्मण को देखा। तक्षक ने पूछा, “ब्राह्मण देवता! आप इतनी जल्दी में कहाँ जा रहे हैं?” काश्यप ने उत्तर दिया, “मैं वहां जा रहा हूँ जहां आज तक्षक नाग राजा परीक्षित को डसेगा। मैं अपने मंत्रों से उन्हें तुरंत जीवित कर दूँगा, और मेरे पहुँचने पर तक्षक उन्हें डस भी नहीं सकेगा।” तक्षक ने कहा, “मैं ही तक्षक हूँ। आप मेरे डसने के बाद राजा को क्यों जीवित करना चाहते हैं? मेरी शक्ति देखिए, मेरे डसने के बाद आप उन्हें जीवित नहीं कर पाएंगे।” यह कहकर तक्षक ने एक वृक्ष को डस लिया, और वह वृक्ष तुरंत जलकर राख हो गया।
काश्यप ब्राह्मण ने अपनी विद्या के बल से उसी समय उस वृक्ष को फिर से हरा-भरा कर दिया। तक्षक ने तब ब्राह्मण को प्रलोभन देना शुरू किया और कहा, “जो चाहो मुझसे मांग लो।” काश्यप ने उत्तर दिया, “मैं धन के लिए वहाँ जा रहा हूँ।” तक्षक ने कहा, “तुम राजा से जितना धन लेना चाहते हो, वह मुझसे ले लो और यहीं से लौट जाओ।” तक्षक की यह बात सुनकर काश्यप ब्राह्मण ने मुँहमाँगा धन स्वीकार किया और वापस लौट गया।
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परीक्षित की मृत्यु
इसके बाद, तक्षक नाग अपनी माया से छलपूर्वक महल में पहुँचा और परीक्षित को डसकर उनके जीवन का अंत कर दिया।
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