रमा एकादशी: पापों का नाश और विष्णु लोक का मार्ग

रमा एकादशी: पापों का नाश और विष्णु लोक का मार्ग

रमा एकादशी व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है, और यह व्रत अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। भारतीय संस्कृति में एकादशी व्रत को मोक्ष प्राप्ति का सरल और श्रेष्ठ मार्ग माना गया है, विशेषकर रमा एकादशी, जो भगवान केशव के प्रति भक्ति, सेवा, और आत्मसमर्पण का प्रतीक है। इस व्रत के महत्त्व की व्याख्या इस प्रकार की जाती है कि जो भी व्यक्ति विधिपूर्वक इस एकादशी का पालन करता है, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं, चाहे वे पाप कितने भी घोर क्यों न हों। अंततः वह व्यक्ति विष्णु लोक को प्राप्त करता है, जहाँ उसे मोक्ष और अनंत सुख की प्राप्ति होती है।

इस दिन व्रतधारी भगवान केशव का विशेष पूजन करते हैं। भगवान का पूजन शास्त्रों में वर्णित विधियों के अनुसार किया जाता है, जिसमें समर्पण और श्रद्धा का विशेष स्थान होता है। भगवान केशव को विभिन्न सामग्रियों से स्नान कराकर, फूल, चंदन, नैवेद्य, और दीप से आरती की जाती है। पूजन के उपरांत प्रसाद वितरित कर, ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और उन्हें दक्षिणा दी जाती है।

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बहुत समय पहले, मुचकुन्द नामक एक धर्मात्मा और दानी राजा राज्य करता था। राजा मुचकुन्द को धर्म और पवित्रता में अत्यधिक आस्था थी। वह एकादशी व्रत की महिमा को भली-भाँति समझता था और इस व्रत का नियमित पालन करता था। उसका मानना था कि एकादशी व्रत जीवन के समस्त पापों का नाश करने वाला है और यही कारण था कि राजा न केवल स्वयं इस व्रत का पालन करता, बल्कि अपनी पूरी प्रजा को भी इसका पालन करने की प्रेरणा देता था।

राजा मुचकुन्द की एक कन्या थी, जिसका नाम चंद्रभागा था। चंद्रभागा भी अपने पिता की तरह एकादशी व्रत का बहुत सम्मान करती थी। वह इस व्रत को अपने जीवन का अनिवार्य अंग मानती थी और उसकी आस्था इतनी दृढ़ थी कि वह प्रत्येक एकादशी को अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ उपवास करती थी।

चंद्रभागा का विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ था। विवाह के बाद शोभन अपने ससुराल में रहने लगा। शोभन बहुत ही सौम्य और विनम्र स्वभाव का था, परंतु वह शारीरिक रूप से थोड़ा कमजोर था। जब एकादशी का दिन आया, तो राजा मुचकुन्द के राज्य में सभी लोगों ने व्रत का पालन किया। शोभन ने भी इस व्रत का पालन करने का निश्चय किया, परंतु उसकी कमजोर शारीरिक स्थिति के कारण, वह उपवास की कठिनाई सहन नहीं कर सका।

उस दिन, पूरे राज्य में एकादशी व्रत का माहौल था। सभी भक्तजनों ने भगवान केशव की पूजा-अर्चना की और दिनभर उपवास रखा। शोभन भी अपनी पत्नी चंद्रभागा के साथ व्रत में शामिल हुआ। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतने लगा, शोभन को भूख और थकान ने घेर लिया। उसके शरीर की कमजोरी बढ़ने लगी और अंततः वह भूख और थकान से व्याकुल होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया।

शोभन की मृत्यु से राजा मुचकुन्द, रानी, और उनकी पुत्री चंद्रभागा अत्यंत दुःखी हो गए। चंद्रभागा अपने पति की मृत्यु का शोक सहन नहीं कर पा रही थी। उसने भगवान केशव से प्रार्थना की और यह मानते हुए कि यह एकादशी व्रत के पीछे कोई अद्भुत लीला छिपी है, उसने अपने पति की आत्मा की शांति के लिए पूजा जारी रखी।

शोभन की दिव्य स्थिति

रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर एक दिव्य स्थान प्राप्त हुआ। वहाँ उसे एक अद्भुत नगरी में निवास मिला, जहाँ शत्रुओं का कोई भय नहीं था। उस नगरी में अपार धन-धान्य की वर्षा हो रही थी और वहाँ की दिव्य अप्सराएँ उसकी सेवा में तत्पर थीं। शोभन को यह दिव्य स्थान रमा एकादशी व्रत के पुण्य के कारण प्राप्त हुआ था। वह वहाँ न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ था, बल्कि अत्यंत संतुष्ट और सुखी जीवन व्यतीत कर रहा था।

एक दिन, राजा मुचकुन्द किसी कारणवश मंदराचल पर्वत पर घूमने गए। जब वह वहाँ टहल रहे थे, तो अचानक उनकी दृष्टि एक दिव्य नगरी पर पड़ी। इस नगरी की दिव्यता और सौंदर्य को देखकर राजा मुचकुन्द अत्यंत आश्चर्यचकित हुए। जब वह और निकट गए, तो उन्होंने देखा कि वहाँ उनका दामाद शोभन निवास कर रहा था। शोभन को इस दिव्य स्थिति में देखकर राजा मुचकुन्द को विश्वास हो गया कि यह सब रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से ही संभव हुआ है।

राजा मुचकुन्द ने शोभन से बातचीत की और उसकी दिव्य स्थिति का कारण पूछा। शोभन ने राजा को बताया कि एकादशी व्रत के कारण ही उसे यह स्थान प्राप्त हुआ है। राजा ने इस अद्भुत घटना की जानकारी अपने राज्य में पहुँचने पर अपनी पुत्री चंद्रभागा को दी।

चंद्रभागा का मंदराचल पर्वत पर आगमन

जब चंद्रभागा ने अपने पिता से यह समाचार सुना कि उसका पति शोभन मंदराचल पर्वत पर दिव्य नगरी में निवास कर रहा है, तो वह अत्यंत प्रसन्न हुई। उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे, और वह भगवान के प्रति अपनी गहन भक्ति के लिए आभार व्यक्त करने लगी। उसने अपने पति को पुनः देखने की तीव्र इच्छा व्यक्त की और मंदराचल पर्वत जाने का निश्चय किया।

चंद्रभागा ने भगवान केशव की भक्ति और व्रत का पालन किया, और मंदराचल पर्वत पर पहुँची। जब वह वहाँ पहुँची, तो उसने अपने पति शोभन को उसी दिव्य नगरी में निवास करते हुए देखा, जैसा उसके पिता ने बताया था। वहाँ शोभन की सेवा में रम्भा और अन्य अप्सराएँ लगी हुई थीं।

पति-पत्नी का पुनर्मिलन अत्यंत भावुक और आनंद से भरा था। चंद्रभागा और शोभन अब मंदराचल पर्वत पर साथ-साथ रहने लगे। वे दोनों सुख-समृद्धि और दिव्यता से भरे जीवन का आनंद लेने लगे, जहाँ कोई कष्ट, दुख या शत्रु नहीं था।

इस प्रकार, रमा एकादशी व्रत के पुण्य ने शोभन को दिव्य लोक में स्थान दिलाया, और चंद्रभागा की भक्ति और श्रद्धा ने उसे अपने पति के साथ पुनः मिलाया।

रमा एकादशी व्रत का महत्त्व अत्यधिक है। यह व्रत न केवल जीवन के पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि व्यक्ति को अंततः विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। भगवान केशव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का यह व्रत जीवन में दिव्यता और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।

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