समुद्र मंथन (संस्कृत: समुद्रमंथन ’समुद्र का मंथन’) हिंदू पौराणिक कथाओं के सबसे प्रसिद्ध प्रकरणों में से एक है। समुद्र मंथन से 14 रत्न तथा सबसे महत्वपूर्ण अमृत की उत्पत्ति की हुई थी आज मे इसी घटना का वृतांत आपके सामने लेकर आया हूँ।
देवताओं और असुरों का अमृत प्राप्ति का संकल्प
समुद्र मंथन, हिंदू पौराणिक कथाओं के सबसे प्रसिद्ध प्रकरणों में से एक है। इस घटना में 14 रत्नों और अमृत की उत्पत्ति हुई थी। श्री हरि विष्णु की सलाह पर, देवता और दानव मेरु पर्वत पर एकत्रित हुए और अमृत प्राप्ति की योजना बनाई। श्री हरि ने दोनों को मिलकर समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया, जिससे अमृत प्राप्त हो सके।
मंदरांचल पर्वत और शेषनाग की सहायता
नारायण के निर्देश पर मंदरांचल पर्वत को मंथन के लिए चुना गया। देवताओं और दानवों ने पर्वत को उखाड़ने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे। तब श्री हरि के आदेश पर महाबली शेषनाग ने पूरे पर्वत को एक झटके में उखाड़ दिया।
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समुद्र मंथन की शुरुआत
देवता और दानव मंदरांचल पर्वत को समुद्र के पास लेकर गए और समुद्र से मंथन की अनुमति मांगी। समुद्र ने मंथन के बदले अमृत में अपना हिस्सा मांगा, जिसे देवताओं और असुरों ने स्वीकार कर लिया। इसके बाद, श्री हरि ने कछुए का रूप धारण कर मंदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर रखा और वासुकि नाग को मथानी की डोरी बनाया। समुद्र मंथन प्रारंभ हुआ, जिसमें असुर वासुकि के मुख की ओर और देवता पूंछ की ओर खड़े थे।
समुद्र से 14 रत्नों की उत्पत्ति
समुद्र मंथन से 14 रत्न प्राप्त हुए:
- लक्ष्मी देवी: भगवान विष्णु ने इन्हें अपना वर चुना।
- कौस्तुभ मणि: विष्णु भगवान ने इसे लिया।
- पारिजात वृक्ष: इंद्र ने इसे नंदनवन में लगाया।
- सुरा (मदिरा): असुरों के लिए।
- धन्वंतरी: देवताओं को प्राप्त हुए।
- चंद्र: देवताओं को प्राप्त हुए।
- कामधेनू गाय: राजा बली ने इसे लिया।
- ऐरावत हाथी: इंद्र को मिला।
- अप्सराएँ: स्वर्ग चली गईं।
- उच्चैःश्रवा: राजा बली ने इसे अपने लिए रखा।
- हलाहल विष: भगवान शिव ने इसका पान किया।
- विष्णु का धनुष: विष्णु भगवान ने इसे लिया।
- शंख: विष्णु भगवान ने इसे लिया।
- अमृत: देवताओं और असुरों के बीच विवाद का कारण बना।
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हलाहल विष और नीलकंठ
मंथन के दौरान हलाहल विष निकला, जिससे सृष्टि संकट में पड़ गई। भगवान शिव ने विष का पान कर इसे सुरक्षित किया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा।
अमृत की उत्पत्ति और मोहिनी रूप
अंत में, धन्वंतरि देव अमृत लेकर प्रकट हुए, और असुरों ने इसे अपने कब्जे में कर लिया। असुरों को अमृत पिलाने के लिए श्री हरि ने मोहिनी रूप धारण किया। मोहिनी के सौंदर्य से मोहित असुरों ने अमृत का पात्र उन्हें सौंप दिया। मोहिनी ने चालाकी से असुरों को मदिरा और देवताओं को अमृत पिलाया।
राहु और केतु की उत्पत्ति
स्वरभानु नामक असुर ने देवताओं के बीच बैठकर अमृत पिया, लेकिन सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया। मोहिनी रूप में श्री हरि ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया, जिससे राहु और केतु का जन्म हुआ। अंततः देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ और असुर पराजित होकर पाताल लोक में छिप गए।
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डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |
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