सारनाथ: भगवान बुद्ध के प्रथम उपदेश की पवित्र भूमि

सारनाथ: भगवान बुद्ध के प्रथम उपदेश की पवित्र भूमि

सारनाथ का खंडहर, जो बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए श्रद्धा और भक्ति का केंद्र बना हुआ है, यह लगभग 2500 वर्षों के उत्थान-पतन, विकास, और बदलाव का साक्षी है। यह स्थान हिंदुओं की प्राचीन नगरी वाराणसी से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों (लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर) में से एक, यह ऐतिहासिक स्थल अपने धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है।

सारनाथ का प्राचीन नाम और महत्व

बौद्ध साहित्य में यह स्थल अपने प्राचीन नाम ‘इसीपत्तन’, ‘ऋषिपत्तन’, या ‘मृगदाव’ से उल्लिखित है। बौद्धग्रंथ ‘महावस्तु’ के अनुसार, यहाँ 500 बुद्ध एवं ऋषियों के शरीर निर्वाण के बाद गिरे थे, जिसके कारण इसे ‘ऋषिपत्तन’ कहा गया। काशीराज के मृगों को अभयदान देने के कारण इसे ‘मृगदाव’ भी कहा जाता है। पुरातत्त्वविद् कनिंघम के अनुसार, सारनाथ को ‘सारंगनाथ’ का अपभ्रंश या संक्षिप्त रूप माना गया है। जैनियों के अनुसार, श्रेयांसनाथ के कारण इसे ‘सारनाथ’ कहा गया, और जैन साहित्य में इसे ‘सिंहपुरी’ के नाम से भी जाना जाता है।

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बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए सारनाथ का महत्व

यह स्थान महात्मा बुद्ध द्वारा पंचवर्गीय भिक्षुओं को दिए गए प्रथम धर्मोपदेश का स्थल है। यह वही स्थान है जहाँ से लगभग 2500 वर्ष पूर्व अशाढ़ पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध का धर्मचक्र प्रवर्तन हुआ था। उनका अष्टांग मार्ग और चार आर्य सत्य भारतवर्ष में यहीं से प्रसारित हुए

सम्राट अशोक और सारनाथ

सम्राट अशोक के शासनकाल में ‘ऋषिपत्तन’ अत्यधिक उन्नत अवस्था में था। अशोक ने बौद्ध धर्म में दीक्षित होकर यहाँ कई स्तूपों का निर्माण कराया। सारनाथ में प्रवेश करते ही ईंटों से बना ‘चौखंडी स्तूप’ मिलता है, जहाँ पंचवर्गीय भिक्षुओं ने भगवान बुद्ध का पहला उपदेश सुना था।

सारनाथ के प्रमुख स्तूप और स्मारक

सारनाथ में स्थित ‘धर्मराजिका स्तूप’ का निर्माण बुद्ध के अवशेषों के ऊपर हुआ था। हालांकि, 1794 ई. में राजा चेतसिंह के दीवान जगतसिंह के लोगों ने इसे तोड़कर इसका मलबा ले लिया और बुद्ध के अवशेषों को गंगा में फेंक दिया। इसके अलावा, यहाँ ‘धर्मेश स्तूप’ भी स्थित है, जो अपने गोलाकार आकार और विविध अलंकरणों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी ऊँचाई 46 मीटर और चौड़ाई 30 मीटर है।

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बौद्ध विहारों का स्थापत्य और कला

सारनाथ में स्थित बौद्ध विहारों के खंडहर स्थापत्य कला के महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं। इनमें ‘धर्मचक्र जिन विहार’ विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जिसका निर्माण बारहवीं सदी में रानी कुमार देवी ने कराया था। मृगदाव के मध्य स्वर्ण सदृश ‘मूल गंधकुटी’ नामक एक बौद्ध मंदिर भी था, जिसका वर्णन चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किया है।

अशोकस्तंभ: मौर्य कला की उत्कृष्टता

सारनाथ के संग्रहालय में स्थित अशोकस्तंभ का शीर्ष मौर्यकालीन मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। 2 मीटर ऊँचा यह शीर्ष खिले कमल के आकार में है, और इसके ऊपर पीठ-से-पीठ सटाकर बैठे चार सिंहों की आकृतियाँ हैं। यह स्तंभ आज भारत का राष्ट्रीय चिह्न भी है।

सारनाथ की यात्रा

सारनाथ बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए एक अद्वितीय तीर्थ स्थल है। मौर्यकाल की कला की उपलब्धियों का यह स्थल एक अविस्मरणीय और अद्भुत नमूना है। पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए यहाँ ठहरने की उत्तम व्यवस्था है, जिसमें बिड़ला द्वारा निर्मित धर्मशाला और पर्यटन विभाग के अन्य आवासीय विकल्प शामिल हैं। आज भी साधक इस पवित्र भूमि पर आकर भगवान बुद्ध की स्मृति को श्रद्धा से नमन करते हैं।

सारनाथ, जो कभी विस्मृति के गर्भ में विलीन हो गया था, आज फिर से अपनी खोई हुई महिमा को प्राप्त कर रहा है। यह स्थल न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि सभी धार्मिक और सांस्कृतिक प्रेमियों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण है। यहाँ की यात्रा एक आध्यात्मिक अनुभव के साथ-साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर की अद्वितीय झलक प्रस्तुत करती है।

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महत्वपूर्ण जानकारियां – Information
State: Uttar Pradesh
Country: India
Nearest City/Town: Varanasi
Best Season To Visit:
October to March
Temple Timings: 9:00 am – 5:00 pm
Photography: Allowed
Entry Fees: Rs.25 per person

कैसे पहुचें – How To Reach
Road: You can take GT road or Grand Trunk road.
Nearest Railway: Varanasi Junction
Air: Lal Bahadur Shastri International Airport

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डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |

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