सोमवार का व्रत

सोमवार का व्रत

सोमवार का व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है और हिन्दू धर्म में इसका विशेष महत्त्व है। यह व्रत भक्तों की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करता है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है। इस व्रत को विशेष रूप से उन लोगों द्वारा किया जाता है जो भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं और उनसे अपने जीवन की बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करते हैं।

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सोमवार व्रत की विधि

सोमवार का व्रत सामान्यतः दिन के तीसरे पहर तक किया जाता है। इस व्रत में भक्त प्रातःकाल उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। इसके बाद शिव-पार्वती का पूजन किया जाता है। इस व्रत में फलाहार और पारायण के नियम बहुत कठोर नहीं होते, परन्तु भक्त केवल एक समय का भोजन करते हैं और व्रत का पालन करते हैं। सोमवार व्रत की तीन प्रमुख श्रेणियाँ हैं:

  1. साधारण प्रति सोमवार व्रत
  2. सौम्य प्रदोष व्रत
  3. सोलह सोमवार व्रत

इन तीनों व्रतों में पूजा की विधि एक जैसी होती है, जिसमें शिव-पार्वती का पूजन करने के पश्चात् कथा सुनना अत्यंत आवश्यक होता है।

सोमवार व्रत कथा

प्राचीन समय में एक धनी साहूकार था, जो धन-धान्य से परिपूर्ण था, परंतु उसकी कोई संतान नहीं थी। पुत्र न होने के कारण साहूकार हमेशा चिंता में डूबा रहता था और हर सोमवार को शिवजी का व्रत और पूजन करता था। वह सायंकाल को शिव मंदिर जाकर शिवलिंग के सामने दीपक प्रज्वलित करता था। साहूकार की इस भक्ति से देवी पार्वती ने शिवजी से आग्रह किया कि वह साहूकार की मनोकामना पूरी करें और उसे संतान प्रदान करें।

शिवजी ने पार्वती जी को समझाया कि संसार कर्मक्षेत्र है, जहाँ हर किसी को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। साहूकार के भाग्य में संतान सुख नहीं लिखा था, लेकिन पार्वती जी के आग्रह पर शिवजी ने उसे एक पुत्र प्राप्त होने का वरदान दिया। परंतु उस पुत्र की आयु केवल बारह वर्ष की होगी, जिसके बाद उसकी मृत्यु निश्चित थी। साहूकार यह सब बातें सुनकर भी शांत रहा और उसने शिवजी का व्रत और पूजन करना जारी रखा।

समय बीता और साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई। दसवें महीने एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ। घर में खुशी का माहौल छा गया, लेकिन साहूकार ने उसकी बारह वर्ष की आयु जानकर मन में कोई विशेष हर्ष नहीं दिखाया। वह इस सत्य से परिचित था कि उसका पुत्र केवल बारह साल का होगा। समय बीतने पर जब पुत्र ग्यारह वर्ष का हुआ, तो उसकी माता ने उसके विवाह के लिए साहूकार से कहा। साहूकार ने विवाह की जगह पुत्र को पढ़ने के लिए काशी भेजने का निर्णय लिया।

यात्रा और विवाह की घटना

साहूकार ने अपने साले को बुलाया और बहुत सा धन देकर अपने पुत्र को काशी पढ़ने के लिए भेजा। यात्रा के दौरान मामा-भानजा यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जा रहे थे। रास्ते में एक शहर पड़ा जहाँ राजा की कन्या का विवाह होने जा रहा था। वर पक्ष के लोग चिंता में थे क्योंकि राजकुमार एक आँख से काना था। उन्होंने सेठ के सुन्दर पुत्र को देखा और उसे विवाह कार्य में वर के रूप में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया।

लड़के और उसके मामा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और विवाह का सारा कार्य बिना किसी विघ्न के सम्पन्न हो गया। जब लड़का जाने लगा, तो उसने राजकुमारी की चुनरी पर यह लिख दिया कि तेरा असली पति मैं हूँ और मैं काशी पढ़ने जा रहा हूँ, जबकि जिसे तुम्हारे साथ भेजा जाएगा, वह काना है।

जब राजकुमारी ने यह संदेश पढ़ा तो उसने असली वर के बिना जाने से इनकार कर दिया। राजकुमारी के माता-पिता ने बारात को वापस भेज दिया। उधर सेठ का पुत्र और उसका मामा काशी पहुँच गए और लड़के ने पढ़ाई शुरू कर दी।

बारह वर्ष की अवधि और मृत्यु

जब लड़के की आयु बारह वर्ष की हो गई, तो यज्ञ की तैयारी की गई। उस दिन लड़के ने अपने मामा से कहा कि उसे अच्छा महसूस नहीं हो रहा है। मामा ने उसे अंदर जाकर आराम करने के लिए कहा, पर थोड़ी देर में ही लड़के की मृत्यु हो गई। मामा ने पहले यज्ञ पूरा किया और फिर शोक मनाया। उसी समय शिव-पार्वती वहाँ से गुजर रहे थे। पार्वती जी ने मामा के रोने की आवाज सुनी और शिवजी से उस बालक को जीवनदान देने का आग्रह किया। शिवजी ने पार्वती जी की प्रार्थना स्वीकार की और बालक को जीवनदान दिया।

लड़के की वापसी और सुखद जीवन

लड़का और मामा काशी से लौटे और रास्ते में उसी शहर में पहुँचे जहाँ उसका विवाह हुआ था। वहाँ उसके ससुराल वालों ने उसे पहचान लिया और उसका भव्य स्वागत किया। वे उसे राजकुमारी के साथ विदा कर दिया गया। जब लड़का अपने घर पहुँचा, तो उसके माता-पिता ने उसे सकुशल देख प्रसन्नता जताई। उन्होंने शिवजी का धन्यवाद किया और सोमवार व्रत का पालन करते रहने का संकल्प लिया।

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सोमवार व्रत का महत्त्व

सोमवार व्रत का पालन करने से भक्त की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस व्रत की महिमा अत्यधिक है और इसे करने वाले को शिवजी की कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है और व्यक्ति के जीवन से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

जो भी व्यक्ति श्रद्धापूर्वक सोमवार का व्रत करता है या इस कथा को सुनता है, उसकी सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं और जीवन में उसे अपार सुख-संपत्ति प्राप्त होती है। शिवजी की कृपा से उसके जीवन में सभी प्रकार की बाधाएँ दूर हो जाती हैं।

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डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |

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