बड़ सायत अमावस (वट सावित्री पूजन): कथा और महत्व

बड़ सायत अमावस (वट सावित्री पूजन): कथा और महत्व

बड़ सायत अमावस, जिसे वट सावित्री पूजन भी कहा जाता है, ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से बड़ (वट) के पेड़ की पूजा की जाती है। यह पर्व विवाहित महिलाओं के लिए अपने पतियों की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए मनाया जाता है।

बड़ सायत अमावस की पूजा विधि

इस दिन बड़ के पेड़ की पूजा करने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:

  • पानी
  • मौली (रक्षा सूत्र)
  • रोली
  • चावल
  • गुड़
  • भीगा हुआ चना
  • फूल
  • सूत

इन सामग्रियों को मिलाकर बड़ पर लपेटा जाता है और उसके चारों ओर फेरी दी जाती है। महिलाएं बड़ के पत्तों से गहने बनाकर पहनती हैं और इस दिन बड़ सायत अमावस की कथा सुनती हैं। इसके साथ ही, भीगे हुए चनों में रुपये रखकर बायना निकालने की परंपरा भी है। बायना निकालने के बाद, हाथ फेरकर सास के पैर छूकर बायना दिया जाता है।

यदि किसी की बहन या बेटी गाँव में हो, तो उसका भी बायना निकालने के लिए भेजना चाहिए। इस दिन की पूजा से भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और परिवार में समृद्धि एवं सुख-शांति का माहौल रहता है।

इसे जरूर पढ़ें: स्वस्तिक, 9 निधियाँ और ऋद्धि-सिद्धि का महत्व

बड़ सायत अमावस (वट सावित्री) की कहानी

कथा की शुरुआत भद्र देश के एक धर्मात्मा राजा अश्वपति से होती है। राजा के पास कोई संतान नहीं थी, जिससे वह बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने बड़े-बड़े पण्डितों को बुलाया और उनसे प्रार्थना की कि वे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे उन्हें संतान का सुख मिल सके।

संतान सुख की खोज

पण्डितों ने राजा को बताया कि उनके पास एक पुत्री का योग है, लेकिन वह 12 वर्ष की आयु में विधवा हो जाएगी। यह सुनकर राजा ने चिंतित होकर कहा, “क्या मेरा नाम नहीं रहेगा?” ज्ञानी पण्डितों ने राय दी कि राजा को यज्ञ-हवन कराना चाहिए।

इसके बाद राजा ने यज्ञ कराए, जिसके फलस्वरूप उसकी पत्नी गर्भवती हुई। जब कन्या का जन्म हुआ, तो पण्डितों ने कहा कि कन्या के 12 वर्ष की उम्र में विधवा होने का योग है। इसलिए उन्होंने सलाह दी कि उसे पार्वती देवी और बड़ सायत अमावस की पूजा करानी चाहिए।

सावित्री का विवाह

राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री का नाम सावित्री रखा। जब सावित्री बड़ी हुई, तो उसका विवाह सत्यवान नामक युवक से कर दिया गया। सत्यवान के सास-ससुर अंधे थे, और सावित्री ने उनकी सेवा में कोई कमी नहीं रखी।

सावित्री का संकट

सावित्री जानती थी कि जिस दिन वह 12 वर्ष की होगी, उसी दिन उसके पति सत्यवान की मृत्यु होगी। उसने अपने पति को सावधानी से बताया कि वह उस दिन उसके साथ जंगल जाना चाहती है। सत्यवान ने कहा, “तू मेरे साथ चलेगी तो मेरे अंधे माँ-बाप की कौन सेवा करेगा? अगर वे कहेंगे, तो मैं तुम्हें ले चलूँगा।”

जंगल में दुखद घटना

सत्यवान के माता-पिता ने अनुमति दी और सावित्री अपने पति के साथ जंगल गई। जंगल में जाकर वह लकड़ी तोड़ने लगी, जबकि सत्यवान पेड़ की छाया में सो गया। उसी समय एक साँप ने उसे डस लिया, और सत्यवान की मृत्यु हो गई।

सावित्री की करुणा

सावित्री अपने पति की गोद में बैठकर रोने लगी। उसकी करुण पुकार सुनकर महादेव और पार्वती देवी वहाँ से गुजर रहे थे। सावित्री ने उनके चरणों को पकड़कर विनती की, “कृपया मेरे पति को जीवित कर दीजिए।”

महादेव और पार्वती ने उसे बताया कि आज बड़ सायत अमावस है, और यदि वह बड़ की पूजा करेगी, तो उसके पति जीवित हो जाएंगे। सावित्री ने अपनी श्रद्धा से बड़ की पूजा शुरू कर दी। उसने बड़ के पत्तों का गहना बनाया, जो हीरे-मोती के समान चमकने लगे।

धर्मराज का आगमन

इतने में धर्मराज का दूत आया और सत्यवान को ले जाने लगा। सावित्री ने धर्मराज के पैर पकड़ लिए और कहा, “कृपया मेरे पति को मत ले जाइए।” धर्मराज ने कहा, “तुम वर मांगों, मैं तुझे कुछ दूंगा।” सावित्री ने कहा, “मेरे माँ-बाप संतानहीन हैं, कृपया उन्हें पुत्र प्रदान करें।” धर्मराज ने यह वरदान स्वीकार किया। फिर उसने कहा, “मेरे सास-ससुर अंधे हैं, कृपया उन्हें दृष्टि दें।” धर्मराज ने यह भी स्वीकार किया।

सावित्री की दृढ़ता

परंतु सावित्री ने धर्मराज का पीछा नहीं छोड़ा। उसने कहा, “मुझे 100 पुत्र चाहिए।” धर्मराज ने कहा, “तथास्तु।” फिर जब धर्मराज सत्यवान को ले जाने लगे, तो सावित्री ने कहा, “हे महाराज! यदि आप मेरे पति को ले जाएंगे, तो मुझे पुत्र कैसे मिलेंगे?”

धर्मराज ने कहा, “हे सती! तुम्हारा सुहाग तो नहीं था, लेकिन बड़ सायत अमावस और पार्वती की पूजा करने से तुम्हारा पति जीवित हो जाएगा।”

अमावस का महत्व

उसके बाद धर्मराज ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि जेठ की अमावस आएगी, तब बड़ की पूजा करना और बड़ के पत्तों का गहना पहनना। सावित्री ने उसी प्रकार बड़ सायत अमावस की पूजा की और अपने पति को पुनः जीवित पाया।

इस प्रकार, बड़ सायत अमावस की कथा न केवल सावित्री की दृढ़ता और भक्ति का उदाहरण है, बल्कि यह हमें सिखाती है कि सच्चे प्रेम और श्रद्धा से किए गए प्रयासों से किसी भी संकट का सामना किया जा सकता है। इस दिन की पूजा से सभी भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और परिवार में सुख-शांति का वातावरण बनता है। बड़ सायत अमावस के इस पर्व को मनाने का उद्देश्य है पति की लंबी उम्र और सुखद जीवन की कामना करना। इसलिए, इस दिन बड़ की पूजा करें, सावित्री की कथा सुनें, और अपने परिवार के साथ इस पर्व का आनंद लें।

इसे जरूर पढ़ें: श्री दुर्गा चालीसा

डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित की गई है और इसे केवल जानकारी के रूप में लिया जाना चाहिए। ये सभी बातें मान्यताओं पर आधारित है | adhyatmiaura.in इसकी पुष्टि नहीं करता |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Follow Us On Social Media

भाग्य खुलने के गुप्त संकेत